मिर्जापुर: विंध्याचल धाम में स्थित मां विंध्यवासिनी देवी के मंदिर सहित परिसर में विराजमान सभी देवी-देवताओं को बुधवार के दिन चिलचिलाती धूप की परवाह किए बगैर भक्तों ने मिट्टी और पीतल के मटके में पक्का घाट से गंगा जल लाकर मंदिर की धुलाई की. बताया जाता है चैत्र नवरात्र और पुर्णिमा के बाद धामवासी और श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान कर वहां से जल लाकर मां और उनके मंदिर परिसर की धुलाई करते है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. मान्यता है कि गंगाजल से मंदिर का शुद्धिकरण करने व भूत, प्रेत की विदाई करने से दुष्ट आत्माओं से मुक्ति मिलती है. धुलाई के बाद माता रानी की विशेष पूजा अर्चना कर कोरोना महामारी से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना भी की गई है
सैकड़ों साल की परपंरा आज भी कायम
आदिशक्ति मां विंध्यवासिनी के धाम में वार्षिक पूजन के दौरान माता का घटाभिषेक कर कोरोना के नाश व दुष्ट आत्माओं को भगाने की कामना की गई. साथ ही मन्दिर परिसर की भी गंगाजल धुलाई किया गया. दरअसल, चैत्र मास शुक्ल पक्ष में होने वाले वासंतिक नवरात्र मेला के दौरान माता विंध्यवासिनी के धाम में किये गये तंत्र मन्त्र साधना के बाद परंपरा के अनुसार विन्ध्याचल धाम का शुद्धिकरण गंगा जल से किया जाता है. कोरोना को देखते हुए इस बार हर घर से एक भक्त गंगा के पवित्र जल को घड़े में भर कर मंदिर के समस्त देवी देवताओं के अभिषेक में शामिल हुए, जबकि कोरोना काल के पहले पूरे परिवार के लोग शामिल होते थे. भक्तों ने मंदिर को धोने के साथ ही पूरे धाम की भी सफाई की.
नए बर्तनों से लाया जाता है गंगा जल
श्रीविंध्य पंडा समाज के सदस्यों ने बताया कि यह परंपरा सैकड़ों साल से चला रहा है चैत नवरात्रि और पूर्णिमा बीतने के बाद विंध्याचल के लोग और आए हुए श्रद्धालु गंगा में स्नान कर नए बर्तन में पानी लाकर माता रानी के साथ पूरे मंदिर की धुलाई की जाती है. कोरोना को देखते हुए इस बार सभी से एक घर एक परिवार के लिए कहा गया था. माता के दरबार में तंत्र -मन्त्र के साधक आकर साधना में लीन होकर माता रानी की कृपा पाते है. नवरात्र में प्रतिदिन देश के कोने-कोने से भक्तो का तांता जगत जननी के दरबार में लगता है. साधना के दौरान साधक धाम में भूत- प्रेत का आहवान करते है.
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