मिर्जापुर: विंध्याचल धाम सदियों से भक्ति और साधना का केंद्र रहा है. विंध्य पर्वत पर मां विंध्यवासिनी के साथ ही मां काली विराजमान हैं. कहते हैं मां का यह रूप पूरे संसार में कहीं देखने को नहीं मिलता है. खेचरी मुद्रा यानी मुख आसमान की तरफ खोल विराजमान मां काली भक्तों की हर मनोकामना पूरी कर रही हैं. नवरात्रि की सप्तमी तिथि के दिन यहां श्रद्धालु पहुंच कर मां कालरात्रि स्वरूप का दर्शन-पूजन कर अपनी मन्नतें मांगते हैं और मां उनकी मनोकामना पूरी करती हैं.
मां के मुंह में प्रसाद का नहीं चलता पता
रक्तबीज नामक दानव को ब्रह्मा जी का वरदान था कि अगर उसका एक बूंद खून धरती पर गिरेगा तो उससे लाखों दानव पैदा होंगे. इसी दानव के वध के लिए महाकाली ने रक्त पान करने के लिए अपना मुंह खोल दिया जिससे एक बूंद भी खून धरती पर न गिरने पाये. रक्तबीज नामक दानव का वध करने के बाद से मां का एक रूप ऐसा भी है. कहा जाता है इस मुख में चाहे जितना प्रसाद चढ़ा दीजिए, आज तक इसका पता कोई नहीं कर पाया.
तीन रूपों में विराजमान हैं मां
विंध्य पर्वत पर स्थित मां विंध्यवासिनी का मंदिर देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है. यहां पर माता अपने तीन रूप में विराजमान हैं. महालक्ष्मी के रूप में मां विंध्यवासिनी, महाकाली के रूप में मां कालिखोह देवी और महासरस्वती के रूप में मां अष्टभुजा देवी विराजमान हैं. यही कारण है कि इसे महा शक्तियों का त्रिकोण भी कहा जाता है, जो श्रद्धालु यहां मां से कोई कामना करता है, मां उसे जरूर पूरा करती हैं.
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