मिर्जापुर: लंबे समय से दुर्दिन की मार झेल रहे जिले के पीतल उद्योग के दिन जल्द ही बहुरने वाले हैं. यहां के पीतल के बर्तन को नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान जैसे देशों में एक्सपोर्ट करने की तैयारी की जा रही है. वहीं इस एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए डिस्ट्रिक्ट एक्सपोर्ट हब के कान्सेप्ट पर डिस्टिक एक्सपोर्ट कमेटी भी बनाई गई है. अभी पीतल कारोबारी एक्सपोर्ट तो कर रहे हैं, लेकिन सारे ऑर्गनाइजेशन से न जुड़े होने के कारण वे डायरेक्ट एक्सपोर्ट नहीं कर पाते हैं. इनको डायरेक्ट एक्सपोर्ट कराने के लिए रजिस्टर्ड कराकर एक्सपोर्ट इंपोर्ट का लाइसेंस दिया जाएगा, ताकि यह डायरेक्ट एक्सपोर्ट कर अपनी कमाई को बढ़ा सकें.
मिर्जापुर जिले का पारंपरिक पीतल उद्योग शासन प्रशासन की उपेक्षा के कारण कई सालों से अंतिम सांसे गिन रहा है. स्टील के बर्तन का अधिक प्रयोग होने से पीतल बर्तन का उद्योग मंदी के कगार पर आ गया है, जो कुछ बचा भी था जीएसटी टैक्स और कोरोना ने कारोबारियों की कमर तोड़कर रख दी है. इस व्यवसाय में नई जान फूंकने के लिए एक्सपोर्ट की तैयारी की जा रही है.
60 हजार लोगों को मिलता है फायदा
पीतल नगरी के नाम से मशूहर मिर्जापुर शहर के कसरहट्टी और दुर्गा देवी मोहल्ला पीतल व्यवसाय का मुख्य केंद्र है. यहां आसपास से निकलने वाले टक-टक की आवाज सुनकर समझ जाते हैं कि ये पीतल के बर्तन बनाने वाला मोहल्ला है. जनपद में लगभग 800 छोटे-बड़े कारखाने स्थापित हैं. इससे 50 से 60 हजार लोग प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं. सरकार की उपेक्षा के कारण कई साल से यह उद्योग मंदी के कगार पर पहुंच चुका है. वहीं जो कुछ बचा भी था वह कोरोना काल ने खत्म कर दिया. लॉकडाउन के कारण शादियां न होने से शादी में उपहार के रूप में दिए जाने वाले बर्तन नहीं बिक पाए हैं.
खास किस्म का होता है बर्तन
देशभर में लोकप्रिय मिर्जापुर के पीतल के बर्तन को उसपर उकेरी जाने वाली कलाकृतियों के कारण भी बहुत लोकप्रियता मिलती है. यही वजह है कि यहां के बने बर्तन लोग वैवाहिक कार्यक्रमों में उपहार के रूप में देते हैं. पीतल के बर्तन में हण्डा, परात और लोटा दिए जाने की बहुत पुरानी परंपरा है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, यही वजह है कि यहां निर्माण व्यापक पैमाने पर होता है. मगर निरोग माने जाने वाले पीतल के बर्तन वजन में भारी होने के साथ ही महंगे भी पड़ने लगे हैं. स्टील का बर्तन हल्का होने के साथ सस्ता मिलने की वजह से लोग धीरे-धीरे पीतल बर्तन की जगह स्टील बर्तन प्रयोग करने लगे हैं, जिसकी वजह से यहां का पीतल कारोबार चौपट होने की राह पर है.
गरीबों को जिले में ही मिलेगा रोजगार
सरकार ने प्रमुख उद्योगों को लेकर एक जनपद एक उत्पाद योजना की शुरुआत की है. मिर्जापुर में कालीन के साथ ही अब पीतल के बर्तन को भी एक जनपद एक उत्पाद में शामिल हो जाने से संजीवनी मिलने वाली है. व्यापारियों ने बताया कि यहां पर लगभग 400 व्यापारी हैं, जो कि पीतल का व्यवसाय करते हैं. वहीं लगभग 50,000 मजदूर हैं, जो इस कारोबार से जुड़े हैं. इधर कई सालों से कारोबार सही नहीं चल रहा है. जीएसटी टैक्स और कोरोना की वजह से व्यवसाय खराब हो रहा है. व्यापारियों ने कहा कि यदि सरकार यहां से बर्तनों का एक्सपोर्ट कराती है तो बहुत सारे फायदे होंगे और एक बार फिर मिर्जापुर के पीतल बर्तन की पहचान वापस आ जाएगी. इससे मजदूर बाहर नहीं जाना चाहेंगे और गरीब मजदूरों को अपने घर और गांव में ही रोजगार उपलब्ध हो सकेगा.
विदेशों में पहुंच बनाएंगे जिले के बने बर्तन
पीतल उद्योग से जुड़े हजारों कामगारों, व्यवसायियों को पुनर्जीवित करने के लिए डिस्ट्रिक्ट एक्सपोर्ट कमेटी बनाई गई है. अभी यहां के व्यापारी सभी ऑर्गनाइजेशन से जुड़े होने के कारण डायरेक्ट एक्सपोर्ट नहीं कर पाते हैं, जिससे इनको बहुत ज्यादा फायदा नहीं मिलता है. इनको डायरेक्ट एक्सपोर्ट कराने के लिए सरकार एक्सपोर्ट इंपोर्ट का लाइसेंस दिलवाकर डायरेक्ट एक्सपोर्ट करने के लिए प्रमोट करने जा रही है. इसके बाद अब यहां के बने बर्तन पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों में भेजे जाएंगे, क्योंकि यहां पर पीतल के बर्तनों का ज्यादा प्रयोग किया जाता है. 'एक जनपद, एक उत्पाद' योजना के अंतर्गत पीतल उद्योग को शामिल करने से यहां के व्यापारी काफी खुश हैं.