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World Asthma Day : अस्थमा पर पूर्ण नियंत्रण के लिए प्रीवेंटिव इन्हेलर का प्रयोग कारगर, विशेष से जानिए कारण - दमा के मरीजों का इलाज

वायु प्रदूषण व धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण देश में लगातार अस्थमा (दमा) के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. दमा का इलाज संभव है, लेकिन इसके लिए संयम के साथ इन्हेलर के प्रयोग पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.

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Published : May 2, 2023, 9:55 AM IST

अस्थमा पर पूर्ण नियंत्रण के लिए प्रीवेंटिव इन्हेलर का प्रयोग कारगर, विशेष से जानिए कारण.

मेरठ : हर साल मई माह के पहले मंगलवार को दुनिया भर में विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष विश्व अस्थमा दिवस की थीम "दमा का उपचार सभी के लिए' रखी गई है. फिलवक्त बच्चों में भी अस्थमा तेजी से पनप रहा है. दमा से उत्पन्न होने वाली सांस की नलियों की बीमारी है, जिसमें किन्ही भी उत्प्रेरक के संपर्क में आने पर सांस की नली में सिकुड़न व सूजन आ जाना, मरीज की छाती में कसावट, सांस लेने में तकलीफ, खांसी व घबराहट का महसूस होना यह इसके प्राथमिक लक्षण हैं. इसके कारण और निवारण पर हमने खास चर्चा की प्रसिद्ध छाती व सांस रोग विशेषज्ञ डॉ. वीरोत्तम तोमर से. जानिए निरन्तर बढ़ रही इस बीमारी की रोकथाम कैसे की जा सकती है.

डॉ. वीरोत्तम तोमर के अनुसार देश में वायु प्रदूषण व धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण छोटे बच्चों से लेकर वयस्कों में दमे की शिकायत लगातार बढ़ रही है. पूरे विश्व में करीब 339 मिलियन लोग दमा से पीड़ित हैं. अपने देश में दमा तेजी से लोगों में फैल रहा है. पूरे विश्व में दमा रोग से होने वाली मौतों में अकेले 42 प्रतिशत मृत्यु भारत में हो रही हैं. इससे भी गम्भीर बात देश में मुश्किल से एक तिहाई लोग ही इसका उपचार ठीक से करा पाते हैं.

माता पिता से बच्चों में पहुंच सकता है दमा

अगर माता-पिता में से कोई भी एलर्जी या दमा रोग है तो ऐसे में उनके बच्चे में भी 25 प्रतिशत संभावना रहती हैं कि उन बच्चों को भी दमा हो सकता है. अगर माता-पिता दोनों में दमा रोग या एलर्जी रहती है तो 50 प्रतिशत संभावना हो जाती है कि उनके बच्चों में भी दमा रोग आ सकता है.

अगर घर में हो रहा यह सब तो हो जाएं सावधान

जो माताएं अपने शिशुओं को स्तनपान नहीं कराती हैं. बच्चों में जंक फ़ूड, जैसे पिज़्ज़ा बर्गर चाइनीज फ़ूड लेने की जो आदत बढ़ी है. इससे भी देखा गया है कि दमे की शिकायत बढ़ रही है. डॉ. वीरोत्तम बताते हैं कि इसी तरह घरों में रहन सहन भी दमे को दावत दे रहा है. उन्होंने बताया कि एक छोटे से घर में इन्वर्टर और बैटरी भी रखी है, फ्रीज है, किचन भी उसी के अंदर है, उसकी गन्ध भी हो रही है जो कार्पेट हम लगा रहे हैं, जो पर्दे घरों में होते हैं उनमें अगर जो सीलन है. घर में अगर सूर्य की रोशनी पूरी तरह से नहीं रहती हैं. हवा का आदान प्रदान ठीक से नहीं होता है और पालतू जानवर भी हम रखे हुए हैं जिनमें कुत्ते, बिल्ली, चिड़िया आदि तो इन सबसे भी दमे के रोगियों की संख्या बढ़ रही है. यह बीमारी अधिकतर मौसम के परिवर्तन रात और दिन के परिवर्तन तथा विभिन्न उत्प्रेरक जैसे फैक्ट्री में रासायनिक गैसों के संपर्क में आने से व मानसिक तनाव से भी हो सकती है.

प्रीवेंटिव इन्हेंलर का प्रयोग बेहद ही उपयोगी

डॉ. तोमर ने बताया कि इस वर्ष विश्व अस्थमा दिवस की थीम है "दमा का उपचार सभी के लिए". उन्होंने बताया कि यह देखा जा रहा है कि भारत में अधिकतर मौतें दमा का सही उपचार न लेने से तथा इनहेलर्स की लेने की तकनीक ना जानने से भी हो रही हैं. तत्काल आराम देने वाले इन्हेलर के बजाय लगातार प्रीवेंटिव इन्हेंलर का प्रयोग जरूरी है. उन्होंने बताया कि इनहेलर दो प्रकार के होते हैं एक रिलीवर इन्हें तत्काल आराम करने वाले जबकि दूसरे प्रीवेंटिव इनहेलर बीमारी की रोकथाम वाले. ऐसे में इनहेलर के द्वारा दवाइयां सीधे फेफड़ों में पहुंचाई जाती हैं. जिससे शरीर के अन्य अंगों पर दवाई का कोई असर नहीं होता. वह बताते हैं कि इनके बारे में काफी भ्रांतियां भी हैं. डॉक्टर तोमर ने बताया कि इनहेलर ही दमा रोग का वास्तविक और व आधुनिक इलाज है. जिससे इस बीमारी को धीरे धीरे पूर्ण रूप से कंट्रोल में किया जा सकता है.


डॉ. तोमर के अनुसार आम धारणा यह है कि बच्चों को दमा नहीं होता, लेकिन यह सही नहीं है. बच्चों में दमा रोग अधिक पाया जा रहा है. क्योंकि बच्चों के फेफड़े पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते तो उनमें इस बीमारी का दुष्प्रभाव जल्दी आता है. अंतर इतना है कि छोटे बच्चों में सांस की अपेक्षा खांसी ज्यादा आती है तथा वह निढाल या निष्क्रिय रहता है. जबकि वयस्कों में सांस की बीमारी, फेफड़ों में कसावट, सांस में सीटी की आवाज आना मुख्य हैं.

जांच से हो सकता है फेफड़ों की क्षमता का सही आंकलन..

डॉ. तोमर ने बताया कि सांस कई कारणों से अवरुद्ध हो सकती है. जिसमें सीओपीडी, ह्रदय रोग, गुर्दा रोग व फेफड़ों फाईब्रोसिस कारण भी हो सकते हैं. इसकी सटीक जानकारी लेने के लिए कंप्यूटर द्वारा फेफड़े की जांच जिसको स्पायरोमेट्री भी कहते हैं. इसकी जांच कराना बेहद आवश्यक है. स्पायरोमेट्री या पीएफटी (पलमोनरी फंक्शन टेस्ट) के द्वारा फेफड़ों की कार्य क्षमता का सही-सही आकलन लगाकर इनहेलर द्वारा इस बीमारी का इलाज किया जाता है.

अस्थमा के शिकार हैं खिलाड़ी और सेलेब्रिटीज़

डॉ. विरोत्तम तोमर ने ईटीवी से बातचीत में बताया कि दमा गम्भीर रोग नहीं है, लेकिन हम इसे गम्भीर खुद बनाते हैं. अगर हम सचेत रहें चिकित्सक के बताए अनुसार इनहेलर रेगुलर तौर पर लेंगे रहन सहन और जीवन शैली को बदलेंगे तो हम पूर्ण रूप से स्वस्थ रह सकते हैं. कई ओलंपिक के गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी हैं. कई अभिनेता अभिनेत्री हैं जो खुद को फिट रखे हुए हैं, केवल और केवल इनहेलर के माध्यम से.

जानिए क्या करें, क्या न करें

उचित खानपान, डिब्बा- बंद खाद्य पदार्थो का कम से कम प्रयोग, ठंडा तीखा व मसालेदार भोजन को कम खाना, परफ्यूम इत्यादि से परहेज रखना चाहिए, धूम्रपान, अल्कोहल से परहेज रखकर, घर में रोएंदार पालतू जानवरों को न पालकर तथा प्रतिदिन प्राणायाम व व्यायाम करने से वह नियमित इन्हेलर व दवाई लेने से इसे पूरी तरह से काबू में रखा जा सकता है.

इन्हेलर का सही तरीका जानना बेहद जरूरी

डॉ. तोमर ने बताया कि कई बार देखा जाता है कि मरीज इनहेलर तो ले लेते हैं, लेकिन उन्हें सही तरीका नहीं पता होता है. ऐसे में जरूरी है अपने चिकित्सक से परामर्श करके जिस तरह का भी इनहेलर ले रहे हैं, पहले यह भी जान लें कि उसका उपयोग किस तरह से करना है. क्योंकि अक्सर देखने में आया है कि कुछ लोग इनहेलर ले लेते हैं, लेकिन उन्हें उपयोग का तरीका पता नहीं होता है. सामान्य तौर पर जब इनहेलर का उपयोग करें तो हमें उस वक्त 10 सेकंड तक अपनी सांस रोकनी चाहिए, ताकि दवाई फेफड़ों तक पहुंच सके.

मरीजों के लिए यह भी जरूरी

डॉ. वीरोत्तम के मुताबिक जिस तरह से दांतों की सुरक्षा के लिए हम रोजाना ब्रश करते हैं, मंजन करते हैं, आंखों की सुरक्षा के लिए चश्मे का उपयोग करते हैं. उसी तरह जिन्हें भी अस्थमा की शिकायत है उन्हें डॉक्टर्स की सलाह पर इनहेलर लेना उपयोगी है.

यह भी पढ़ें : लखनऊ में आयुष अस्पतालों के चिकित्सकों ने लोकेशन को लेकर की हेराफेरी

अस्थमा पर पूर्ण नियंत्रण के लिए प्रीवेंटिव इन्हेलर का प्रयोग कारगर, विशेष से जानिए कारण.

मेरठ : हर साल मई माह के पहले मंगलवार को दुनिया भर में विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष विश्व अस्थमा दिवस की थीम "दमा का उपचार सभी के लिए' रखी गई है. फिलवक्त बच्चों में भी अस्थमा तेजी से पनप रहा है. दमा से उत्पन्न होने वाली सांस की नलियों की बीमारी है, जिसमें किन्ही भी उत्प्रेरक के संपर्क में आने पर सांस की नली में सिकुड़न व सूजन आ जाना, मरीज की छाती में कसावट, सांस लेने में तकलीफ, खांसी व घबराहट का महसूस होना यह इसके प्राथमिक लक्षण हैं. इसके कारण और निवारण पर हमने खास चर्चा की प्रसिद्ध छाती व सांस रोग विशेषज्ञ डॉ. वीरोत्तम तोमर से. जानिए निरन्तर बढ़ रही इस बीमारी की रोकथाम कैसे की जा सकती है.

डॉ. वीरोत्तम तोमर के अनुसार देश में वायु प्रदूषण व धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण छोटे बच्चों से लेकर वयस्कों में दमे की शिकायत लगातार बढ़ रही है. पूरे विश्व में करीब 339 मिलियन लोग दमा से पीड़ित हैं. अपने देश में दमा तेजी से लोगों में फैल रहा है. पूरे विश्व में दमा रोग से होने वाली मौतों में अकेले 42 प्रतिशत मृत्यु भारत में हो रही हैं. इससे भी गम्भीर बात देश में मुश्किल से एक तिहाई लोग ही इसका उपचार ठीक से करा पाते हैं.

माता पिता से बच्चों में पहुंच सकता है दमा

अगर माता-पिता में से कोई भी एलर्जी या दमा रोग है तो ऐसे में उनके बच्चे में भी 25 प्रतिशत संभावना रहती हैं कि उन बच्चों को भी दमा हो सकता है. अगर माता-पिता दोनों में दमा रोग या एलर्जी रहती है तो 50 प्रतिशत संभावना हो जाती है कि उनके बच्चों में भी दमा रोग आ सकता है.

अगर घर में हो रहा यह सब तो हो जाएं सावधान

जो माताएं अपने शिशुओं को स्तनपान नहीं कराती हैं. बच्चों में जंक फ़ूड, जैसे पिज़्ज़ा बर्गर चाइनीज फ़ूड लेने की जो आदत बढ़ी है. इससे भी देखा गया है कि दमे की शिकायत बढ़ रही है. डॉ. वीरोत्तम बताते हैं कि इसी तरह घरों में रहन सहन भी दमे को दावत दे रहा है. उन्होंने बताया कि एक छोटे से घर में इन्वर्टर और बैटरी भी रखी है, फ्रीज है, किचन भी उसी के अंदर है, उसकी गन्ध भी हो रही है जो कार्पेट हम लगा रहे हैं, जो पर्दे घरों में होते हैं उनमें अगर जो सीलन है. घर में अगर सूर्य की रोशनी पूरी तरह से नहीं रहती हैं. हवा का आदान प्रदान ठीक से नहीं होता है और पालतू जानवर भी हम रखे हुए हैं जिनमें कुत्ते, बिल्ली, चिड़िया आदि तो इन सबसे भी दमे के रोगियों की संख्या बढ़ रही है. यह बीमारी अधिकतर मौसम के परिवर्तन रात और दिन के परिवर्तन तथा विभिन्न उत्प्रेरक जैसे फैक्ट्री में रासायनिक गैसों के संपर्क में आने से व मानसिक तनाव से भी हो सकती है.

प्रीवेंटिव इन्हेंलर का प्रयोग बेहद ही उपयोगी

डॉ. तोमर ने बताया कि इस वर्ष विश्व अस्थमा दिवस की थीम है "दमा का उपचार सभी के लिए". उन्होंने बताया कि यह देखा जा रहा है कि भारत में अधिकतर मौतें दमा का सही उपचार न लेने से तथा इनहेलर्स की लेने की तकनीक ना जानने से भी हो रही हैं. तत्काल आराम देने वाले इन्हेलर के बजाय लगातार प्रीवेंटिव इन्हेंलर का प्रयोग जरूरी है. उन्होंने बताया कि इनहेलर दो प्रकार के होते हैं एक रिलीवर इन्हें तत्काल आराम करने वाले जबकि दूसरे प्रीवेंटिव इनहेलर बीमारी की रोकथाम वाले. ऐसे में इनहेलर के द्वारा दवाइयां सीधे फेफड़ों में पहुंचाई जाती हैं. जिससे शरीर के अन्य अंगों पर दवाई का कोई असर नहीं होता. वह बताते हैं कि इनके बारे में काफी भ्रांतियां भी हैं. डॉक्टर तोमर ने बताया कि इनहेलर ही दमा रोग का वास्तविक और व आधुनिक इलाज है. जिससे इस बीमारी को धीरे धीरे पूर्ण रूप से कंट्रोल में किया जा सकता है.


डॉ. तोमर के अनुसार आम धारणा यह है कि बच्चों को दमा नहीं होता, लेकिन यह सही नहीं है. बच्चों में दमा रोग अधिक पाया जा रहा है. क्योंकि बच्चों के फेफड़े पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते तो उनमें इस बीमारी का दुष्प्रभाव जल्दी आता है. अंतर इतना है कि छोटे बच्चों में सांस की अपेक्षा खांसी ज्यादा आती है तथा वह निढाल या निष्क्रिय रहता है. जबकि वयस्कों में सांस की बीमारी, फेफड़ों में कसावट, सांस में सीटी की आवाज आना मुख्य हैं.

जांच से हो सकता है फेफड़ों की क्षमता का सही आंकलन..

डॉ. तोमर ने बताया कि सांस कई कारणों से अवरुद्ध हो सकती है. जिसमें सीओपीडी, ह्रदय रोग, गुर्दा रोग व फेफड़ों फाईब्रोसिस कारण भी हो सकते हैं. इसकी सटीक जानकारी लेने के लिए कंप्यूटर द्वारा फेफड़े की जांच जिसको स्पायरोमेट्री भी कहते हैं. इसकी जांच कराना बेहद आवश्यक है. स्पायरोमेट्री या पीएफटी (पलमोनरी फंक्शन टेस्ट) के द्वारा फेफड़ों की कार्य क्षमता का सही-सही आकलन लगाकर इनहेलर द्वारा इस बीमारी का इलाज किया जाता है.

अस्थमा के शिकार हैं खिलाड़ी और सेलेब्रिटीज़

डॉ. विरोत्तम तोमर ने ईटीवी से बातचीत में बताया कि दमा गम्भीर रोग नहीं है, लेकिन हम इसे गम्भीर खुद बनाते हैं. अगर हम सचेत रहें चिकित्सक के बताए अनुसार इनहेलर रेगुलर तौर पर लेंगे रहन सहन और जीवन शैली को बदलेंगे तो हम पूर्ण रूप से स्वस्थ रह सकते हैं. कई ओलंपिक के गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी हैं. कई अभिनेता अभिनेत्री हैं जो खुद को फिट रखे हुए हैं, केवल और केवल इनहेलर के माध्यम से.

जानिए क्या करें, क्या न करें

उचित खानपान, डिब्बा- बंद खाद्य पदार्थो का कम से कम प्रयोग, ठंडा तीखा व मसालेदार भोजन को कम खाना, परफ्यूम इत्यादि से परहेज रखना चाहिए, धूम्रपान, अल्कोहल से परहेज रखकर, घर में रोएंदार पालतू जानवरों को न पालकर तथा प्रतिदिन प्राणायाम व व्यायाम करने से वह नियमित इन्हेलर व दवाई लेने से इसे पूरी तरह से काबू में रखा जा सकता है.

इन्हेलर का सही तरीका जानना बेहद जरूरी

डॉ. तोमर ने बताया कि कई बार देखा जाता है कि मरीज इनहेलर तो ले लेते हैं, लेकिन उन्हें सही तरीका नहीं पता होता है. ऐसे में जरूरी है अपने चिकित्सक से परामर्श करके जिस तरह का भी इनहेलर ले रहे हैं, पहले यह भी जान लें कि उसका उपयोग किस तरह से करना है. क्योंकि अक्सर देखने में आया है कि कुछ लोग इनहेलर ले लेते हैं, लेकिन उन्हें उपयोग का तरीका पता नहीं होता है. सामान्य तौर पर जब इनहेलर का उपयोग करें तो हमें उस वक्त 10 सेकंड तक अपनी सांस रोकनी चाहिए, ताकि दवाई फेफड़ों तक पहुंच सके.

मरीजों के लिए यह भी जरूरी

डॉ. वीरोत्तम के मुताबिक जिस तरह से दांतों की सुरक्षा के लिए हम रोजाना ब्रश करते हैं, मंजन करते हैं, आंखों की सुरक्षा के लिए चश्मे का उपयोग करते हैं. उसी तरह जिन्हें भी अस्थमा की शिकायत है उन्हें डॉक्टर्स की सलाह पर इनहेलर लेना उपयोगी है.

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