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बिजली नहीं पनचक्की से चलती है अंग्रेजों के जमाने की आटा चक्की

उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में आज भी भोला गंग नहर पर बनी पनचक्की पर दूर-दूर से ग्रामीण आकर गेहूं की पिसाई करवाते हैं. यह पनचक्की अंग्रेजों के जमाने से चलती आ रही है और आज भी वैसे ही कार्य कर रही है.

अंग्रेजों के जमाने से चलती आ रही है पनचक्की.
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Published : Sep 29, 2019, 5:13 PM IST

मेरठ: जिले की भोला गंग नहर स्थित पनचक्की पर आज भी ग्रामीण दूर-दूर से आकर यहां गेहूं की पिसाई कराते हैं. यह पनचक्की अंग्रेजों के जमाने की है. यहां आज भी पुरानी तकनीक से ही गेहूं की पिसाई का कार्य कर आटा तैयार किया जाता है.

अंग्रेजों के जमाने से चलती आ रही है पनचक्की.

अंग्रेजों के जमाने से चल रही है पनचक्की
जिले के भोला झाल गंग नहर पर अंग्रेजों के समय से ही पनचक्की बनी हुई है. इसकी देखभाल अब सिंचाई विभाग करता है. इस पनचक्की में आज भी ग्रामीण अपने गेहूं की पिसाई कराने के लिए आते हैं. यहां आज भी पुरानी तकनीक से ही गेहूं की पिसाई कर आटा तैयार किया जाता है.पानी के तेज बहाव से यहां चक्की के पाट घूमते हैं, जिससे गेहूं की पिसाई होती है. यहां छह चक्की स्थापित हैं, जिनमें से फिलहाल चार ही काम कर रही हैं.

बिजली की चक्की के मुकाबले अधिक पौष्टिक होता है पनचक्की का आटा
अमानुल्लापुर गांव के ग्रामीण मांगेराम का कहना है कि वह इसी पनचक्की पर अपने गेहूं की पिसाई कराकर आटा तैयार कराते हैं. उनके पिता भी यहीं से गेहूं की पिसाई कराते थे. इस चक्की से तैयार आटा बिजली की चक्की के मुकाबले अधिक पौष्टिक होता है. इस आटे से बनी रोटी का स्वाद भी अधिक स्वादिष्ट होता है. यह आटा अधिक दिनों तक सुरक्षित रहता है. आसपास के दर्जनों गांव के अधिकतर लोग यहीं पर गेहूं से आटा तैयार कराते हैं. पनचक्की से तैयार आटे की रोटी अधिक मुलायम और स्वादिष्ट होती है.

ये भी पढ़ें:- कानून मंत्री बृजेश पाठक ने कहा, जलालपुर उपचुनाव जीतकर बसपा को करेंगे धराशायी

सिंचाई विभाग हर साल इस पनचक्की का ठेका देता है. इस बार यह ठेका मुझे मिला है. दिन में पांच-छह कुंतल गेहूं की पिसाई पनचक्की द्वारा लोग कराते हैं. एक निश्चित स्पीड पर चक्की के पाट घूमते हैं. जिस कारण यहां गेहूं की पिसाई के बाद आटा गर्म नहीं होता है. गर्म होने से उसकी क्वालिटी पर फर्क पड़ता है. यही कारण है कि यहां तैयार आटा अधिक दिनों तक सुरक्षित रहता है.
-ओमपाल, चक्की संचालक

मेरठ: जिले की भोला गंग नहर स्थित पनचक्की पर आज भी ग्रामीण दूर-दूर से आकर यहां गेहूं की पिसाई कराते हैं. यह पनचक्की अंग्रेजों के जमाने की है. यहां आज भी पुरानी तकनीक से ही गेहूं की पिसाई का कार्य कर आटा तैयार किया जाता है.

अंग्रेजों के जमाने से चलती आ रही है पनचक्की.

अंग्रेजों के जमाने से चल रही है पनचक्की
जिले के भोला झाल गंग नहर पर अंग्रेजों के समय से ही पनचक्की बनी हुई है. इसकी देखभाल अब सिंचाई विभाग करता है. इस पनचक्की में आज भी ग्रामीण अपने गेहूं की पिसाई कराने के लिए आते हैं. यहां आज भी पुरानी तकनीक से ही गेहूं की पिसाई कर आटा तैयार किया जाता है.पानी के तेज बहाव से यहां चक्की के पाट घूमते हैं, जिससे गेहूं की पिसाई होती है. यहां छह चक्की स्थापित हैं, जिनमें से फिलहाल चार ही काम कर रही हैं.

बिजली की चक्की के मुकाबले अधिक पौष्टिक होता है पनचक्की का आटा
अमानुल्लापुर गांव के ग्रामीण मांगेराम का कहना है कि वह इसी पनचक्की पर अपने गेहूं की पिसाई कराकर आटा तैयार कराते हैं. उनके पिता भी यहीं से गेहूं की पिसाई कराते थे. इस चक्की से तैयार आटा बिजली की चक्की के मुकाबले अधिक पौष्टिक होता है. इस आटे से बनी रोटी का स्वाद भी अधिक स्वादिष्ट होता है. यह आटा अधिक दिनों तक सुरक्षित रहता है. आसपास के दर्जनों गांव के अधिकतर लोग यहीं पर गेहूं से आटा तैयार कराते हैं. पनचक्की से तैयार आटे की रोटी अधिक मुलायम और स्वादिष्ट होती है.

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सिंचाई विभाग हर साल इस पनचक्की का ठेका देता है. इस बार यह ठेका मुझे मिला है. दिन में पांच-छह कुंतल गेहूं की पिसाई पनचक्की द्वारा लोग कराते हैं. एक निश्चित स्पीड पर चक्की के पाट घूमते हैं. जिस कारण यहां गेहूं की पिसाई के बाद आटा गर्म नहीं होता है. गर्म होने से उसकी क्वालिटी पर फर्क पड़ता है. यही कारण है कि यहां तैयार आटा अधिक दिनों तक सुरक्षित रहता है.
-ओमपाल, चक्की संचालक

Intro:मेरठ: अंग्रेजों के जमाने से यहां पनचक्की से होती है गेहूं की पिसाई
मेरठ। मेरठ जिले की भोला गंग नहर स्थित पनचक्की पर आज भी ग्रामीण दूर-दूर से आकर यहां अपने गेहूं की पिसाई कराते हैं। यह पनचक्की अंग्रेजों के जमाने की है। यहां आज भी पुरानी तकनीक से ही गेहूं की पिसाई का कार्य कर आटा तैयार किया जाता है। ग्रामीणों का कहना है की पनचक्की से तैयार आटे की रोटी अधिक मुलायम और स्वादिष्ट होती हैं।




Body:भोला झाल गंग नहर पर अंग्रेजों के समय से ही पनचक्की बनी हुई है इसकी देखभाल अब सिंचाई विभाग करता है। इस पनचक्की में आज भी ग्रामीण अपने गेहूं की पिसाई कराकर आटा तैयार कराने के लिए आते हैं। यहां आज भी पुरानी तकनीक से ही गेहूं की पिसाई कर आटा तैयार किया जाता है। पानी के तेज बहाव से यहां चक्की के पाट घूमते हैं, जिससे गेहूं की पिसाई होती है। यहां छह चक्की स्थापित है, जिनमें से फिलहाल चार ही काम कर रही हैं। अमानुल्लापुर गांव के ग्रामीण मांगेराम का कहना है कि वह इसी पनचक्की पर अपने गेहूं की पिसाई कराकर आटा तैयार कराते हैं। उनके पिता भी यही से गेहूं की पिसाई कराते थे। इस चक्की से तैयार आटा बिजली की चक्की के मुकाबले अधिक पौष्टिक होता है। इस आटे से बनी रोटी का स्वाद भी अधिक स्वादिष्ट होता है। यह आटा सुरक्षित भी अधिक दिनों तक रहता है। ग्रामीणों का कहना है कि आसपास के दर्जनों गांव के अधिकतर लोग यहीं पर गेहूं से आटा तैयार कर आते हैं।




Conclusion:पनचक्की के ठेकेदार ओमपाल का कहना है कि सिंचाई विभाग हर साल इस पनचक्की का ठेका छोड़ता है। इस बार यह ठेका उन्हें मिला है। ओमपाल के मुताबिक दिन में पांच-छह कुंतल गेहूं की पिसाई पनचक्की द्वारा लोग कराते हैं। एक निश्चित स्पीड पर चक्की के पाट घूमते हैं जिस कारण यहां गेहूं की पिसाई के बाद आटा गर्म नहीं होता। गर्म होने से उसकी क्वालिटी पर फर्क पड़ता है। यही कारण है कि यहां तैयार आटा अधिक दिनों तक सुरक्षित रहता है। वहीं इस आटे से तैयार होती सफेद और अधिक स्वादिष्ट होती है।

बाइट- मांगेराम, ग्रामीण
बाइट- ओमपाल, चक्की संचालक

अजय चौहान
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