मेरठः कल्प वृक्ष या कल्पतरु को देवलोक का पौधा कहा जाता है. इसें इच्छाएं पूरी करने वाला वृक्ष यानी विश ट्री भी कहा जाता है. लुप्त हो रहे इस पौधे को बचाने के लिए मेरठ का शोभित विश्वविद्यालय आगे आया है. टिश्यू कल्चर विधि से कल्पवृक्ष के अलग-अलग हिस्सों से पौधे तैयार किए जाने को लेकर रिसर्च जारी है.
दरअसल, मेरठ की शोभित यूनिवर्सिटी में कई वर्षो से कल्पवृक्ष को टिश्यू कल्चर विधि से बचाने के लिए प्रयास जारी हैं. पिछले कई वर्षों से कल्पतरु की शाखाओं, जड़ों और तनों से प्लांट तैयार करने की कोशिश की जा रही है. इस बारे में विश्वविद्यालय के बॉयोटेक्नोलोजी विभाग के प्रोफेसर संदीप कुमार तेवतिया ने बताया कि काफी हद तक कामयाबी मिल गई है और आगे भी प्रयास जारी हैं.
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में लगे कल्पतरु वृक्ष के छह वर्ष पूरे हो चुके हैं. टिश्यू कल्चर विधि से इस पर शोध जारी है. डेढ़ साल से इसी पर रिसर्च चल रही है. प्रोफेसर संदीप कहते हैं कि लैब में अब इसे ईजाद करने में सफलता मिल गई है. आने वाले समय में निश्चित ही अनेक पौधे तैयार कर देंगे. कल्पवृक्ष को स्वर्ग या जन्नत का वृक्ष भी कहा जाता है. प्रोफेसर संदीप बताते हैं कि इस महत्वपूर्ण पेड़ या पौधे का जिक्र पुराण और कुरान में भी है. इस पर 5 साल से कार्य कर रहे हैं. यह प्लांट विलुप्तप्राय प्लांट है जो कि प्रदूषण बढ़ने से खत्म होते जा रहे हैं.
मान्यता व महत्व
ऐसी मान्यता है कि इस पौधे की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी ज़ब बारिश नहीं होती है तो भगवान इंद्र की पूजा लोग करते थे. कल्पतरु के बारे में कहा जाता है कि यह अपने अंदर वाटरहोल्डिंग क्षमता रखता है. माना जाता है कि 200 लीटर पानी एक बड़ा कल्पवृक्ष होल्ड करने की शक्ति रखता है. इसके फल को वेजिटेबल के रूप में भी खाया जाता है. इसकी पत्तियों को भी उपयोग में लाया जाता है.
साउथ अफ्रीका से मेरठ लाया गया पौधा
प्रोफेसर संदीप कहते हैं कि विश्वविद्यालय में जो पेड़ कल्पवृक्ष का है वह प्लांट साऊथ अफ्रीका में होता था. वहां से इसे लाया गया है. उनके मुताबिक इंडिया ने चावल और जौ के बीज साऊथ अफ्रीका को दिए थे वहां से उसके बदले में कल्पवृक्ष के पौधे दिए गए थे.
ढाई सौ वर्ष पुराना कल्पवृक्ष प्रयागराज में है
शोधकर्ताओं का दावा देश में कुल 86 कल्प वृक्ष हैं. शोध छात्र मुजीब बताते हैं कि देश के अंदर सिर्फ 86 कल्पवृक्ष है जो कि अलग अलग स्थानों पर लगे हुए हैं. प्रोफेसर संदीप बताते हैं कि अभी उन्होंने लगभग डेढ़ सौ पौधे विकसित कर लिए हैं, लेकिन ज़ब इस शोध को पूरा कर लिया जाएगा तो कह सकते हैं कि लाखों पौधे हर वर्ष तैयार कर लेंगे. उन्होंने बताया कि प्रयागराज में लगा कल्पवृक्ष 250 वर्ष पुराना है. इस प्लांट की 5 से 6 पत्तियों को नियमित चबाने से मलेरिया टायफाइड से बचा जा सकता है.
लैब में तैयार कृत्रिम मिट्टी में उगाए पौधे
उन्होंने बताया कि यह गर्म इलाके का प्लांट है. इसके लिए पहले आर्टिफिशियल मिट्टी तैयार की गई. इसमें वो तमाम तत्व डाले गए जो कि मिट्टी में होते हैं. दक्षिण भारत और पूर्वी यूपी में भी कुछ पुराने पेड़ उपलब्ध हैं. लैब में तैयार पौधों को खुले वातावरण में लाने की तैयारी है, जहां बैक्टीरिया आदि भी मिलना स्वाभाविक हैं.अभी तक इसे सिंथेटिक भोजन और पोषण दे रहे थे, लेकिन अब इन्हें मिट्टी में लगाया जा सकता हैं. अभी इसकी पत्तियों और जड़ों से टिश्यू कल्चर विधि से पौधे विकसित किए जा रहे हैं.
कुलपति यह बोले
शोभित विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर जयनंद ने बताया कि जैसा कि हमारे शास्त्रों में लिखा हुआ है कि इस पेड़ के नीचे जाकर कोई भी इच्छा मांगी जाती है तो वह पूर्ण हो जाती है. यह वृक्ष आज के समय में लगभग विलुप्त हो चुका है. यहां जो वृक्ष है, उसे साऊथ अफ्रीका से लाया गया है. अब उस वृक्ष के तने के टिश्यू से पौधे तैयार करने का कार्य लैब में जारी है. इसको लेकर जो कुछ शास्त्रों में लिखा है उसे जानने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जब तक इस पेड़ पर फल नहीं आता तब तक शोध जारी रहेगा. शोध पूरा होने के बाद इसे पूरे देश के लिए तैयार किाय जाएगा. अभी इस पर शोध जारी है.
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