मेरठ: चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से संबद्ध 24 महाविद्यालयों की घोर लापरवाही की वजह से करीब 3 हजार बीएड के छात्र-छात्राओं के करिअर पर तलवार लटक गई है. मेरठ, गाजियाबाद, बागपत समेत गौतमबुद्धनगर के ग्रेटर नोएडा में संचालित 24 कॉलेजों ने छात्र-छात्राओं को बीएड में प्रवेश दिया. फीस भी इनसे वसूली गई. लेकिन, करीब तीन हजार छात्र-छात्राओं का रिकॉर्ड यूनिवर्सिटी को भेजना ही मुनासिब नहीं समझा. इसकी वजह से पिछले साल 2021 के रिजल्ट का ही कोई अता-पता नहीं है. इस बारे में छात्र-छात्राओं का कहना है कि उन्होंने तो समय से फीस जमा की. उन्हें कोरोना की वजह से कहा गया कि परीक्षा नहीं होगी और अगले सत्र में समय आने पर प्रवेश मिलेगा.
कोरोना के चलते छात्र-छात्राओं को अगले सत्र में प्रमोट कर दिया गया था. लेकिन, इस बार जब अगले सत्र में प्रवेश की प्रक्रिया को व परीक्षा फॉर्म भरने का नंबर आया तो छात्र-छात्राओं को पता चला कि विश्वविद्यालय को कोई जानकारी ही नहीं है कि इन चिह्नित कॉलेजों में कौन स्टूडेंट हैं. इस बारे में विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक अश्विनी कुमार का कहना है कि विश्वविद्यालय को कई कॉलेजों की तरफ से फॉर्म भरवाकर ही नहीं भेजे गए तो परीक्षा कैसे करवा देंगे.
उन्होंने कहा कि हर विषय में समय-समय पर जानकारी साझा की जाती है. विश्वविद्यालय की ऑफिसियल वेबसाइट है. वे कहते हैं कि बीएड को अप्रूव्ड करने के लिए एक काउंसिल है. काउंसिल की जो गाइडलाइन होती हैं यूनिवर्सिटी उनको फॉलो करती है. विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक अश्विनी कुमार कहते हैं कि कॉलेजों को समय-समय पर चेतावनी दी जाती है कि वे तय समय पर स्टूडेंट्स के डॉक्युमेंट्स यूनिवर्सिटी को उपलब्ध कराएं. उन्होंने कहा कि हम वही करते हैं जो काउंसिल हमें कहती है, उसके अलावा हम कोई निर्णय नहीं लेते.
इस बारे में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग के सहायक कुलसचिव सत्यप्रकाश सिंह का कहना है कि यूनिवर्सिटी एक्ट 1973 के तहत यूनिवर्सिटीज की जो पॉवर और ड्यूटीज हैं, वे परीक्षा कराना और डिग्री देना हैं. जहां तक प्रवेश का सवाल है ये कार्य महाविद्यालय का है कि कौन छात्र अहर्ता रखता है या नहीं. वे कहते हैं कि जब कोई छात्र परीक्षा फॉर्म भरता है तो यूनिवर्सिटी ये जांच करती है कि वो छात्र परीक्षा के योग्य है या नहीं. उन्होंने कहा कि इस केस में काफी कॉलेज ऐसे रहे हैं, जिन्होंने न ही कोई प्रवेश फॉर्म विश्वविद्यालय को भेजे न ही स्क्रूटनी ही इनकी हो पाई.
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उन्होंने कहा कि कई बार नोटिस भी महाविद्यालयों के लिए जारी की गई कि वे फॉर्म जमा कर दें. लेकिन, नहीं किए गए. उन्होंने बताया कि ऐसे कॉलेजों के सेकेंड ईयर के फॉर्म रोकने के अलावा और कोई उपाय ही नहीं है. सहायक कुलसचिव सत्यप्रकाश सिंह ने कहा कि ज्यादा समय नहीं दिया जा सकता, क्योंकि परीक्षाएं समय पर करानी हैं. इस सब के लिए कॉलेज स्टूडेंट्स को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते. हर चीज का समय निर्धारित होता है. कुछ ऐसे कॉलेजों व छात्र-छात्राओं को अपनी बात कहने को समय दिया गया.
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