मेरठ : मथुरा से भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करके रथ यात्रा के माध्यम से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पकड़ मजबूत करने के लिए इन दिनों प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव निकले हुए हैं. दूसरी पार्टियों के चुनावी पंप एंड शो की तरह शिवपाल यादव की भी इस चुनावी रथयात्रा का शोर दूर से ही सुनाई दे जाता है. सोशल मीडिया और जनसंचार माध्यमों से भी इस रथयात्रा की चर्चा आम लोगों तक पहुंच रही है. शिवपाल यादव यात्रा को भारी जनसमर्थन मिलने का दावा करते भी दिखाई देते हैं.
हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में इस यात्रा के कुछ दूसरे ही मायने हैं. उनका मानना है कि शिवपाल चाहते हैं कि बाकी दल उनपर ध्यान दें. खासकर अखिलेश यादव. शायद यही वजह है कि अपनी हर सभा में वे बार बार कहते सुने जाते हैं कि अखिलेश को उनसे गठबंधन करना चाहिए. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या ये राजनीतिक तौर पर दवाब बनाने की रणनीति है या फिर कुछ और.
हालांकि सियासी हलकों में इस रथयात्रा के औचित्य और इसके मायने तलाशने वाले शिवपाल की इस कवायद से कोई खास आशान्वित नहीं नजर आते. इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक हरि जोशी कहते हैं कि एक समय था, तब शिवपाल यादव की तूती बोलती थी. अब 2017 से यूपी की सत्ता में भाजपा के काबिज होने के बाद से इसके पक्ष में माहौल बनना शुरू हुआ तो फिर बनता ही चला गया.
इसमें सबसे अधिक नुकसान समाजवादी पार्टी को ही हुआ. पार्टी में जारी परिवार की रार भी इसकी एक वजह मानी जाती है. पर इसे भांपते हुए अब शिवपाल शायद परिवार के साथ जाने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं. शायद यही वजह है कि चुनावी सभाओं में बार-बार शिवपाल अपने भतीजे व समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को साथ आने का संकेत देते रहे हैं.
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यहां यह भी गौर करने वाली बात है कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया की परिवर्तन रथयात्रा के शुरुआती दिन से शिवपाल यादव का आदर सत्कार करने वाले अधिकतर वही चेहरे हैं जो कभी पूर्व में सपा की साइकिल पर सवार थे.
ऐसे में शिवपाल यादव की आगे की राजनीतिक पारी को लेकर राजनीतिक विश्लेषक हर्ष जोशी कहते हैं कि शिवपाल अब पहले की तरह मजबूत स्थिति में नहीं हैं. हाल ही में ओमप्रकाश राजभर की शिवपाल से मुलाकात के बाद भी छिटक कर सपा अध्यक्ष के साथ चुनाव लड़ने के एलान से शिवपाल यादव पर दबाव बढ़ा है.
हरि जोशी कहते हैं कि जहां तक सपा का सवाल है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह खुद भी बहुत मजबूत स्थिति में हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता. हालांकि वो कहते हैं कि मैनपुरी, इटावा, संभल समेत कुछ जिलों में सपा के साथ शिवपाल यादव की पार्टी का झंडा उठाने वाले कार्यकर्ता वहां हो सकते हैं. उनकी मानें यो मेरठ समेत पश्चिम के जिलों में जिनमें बागपत, मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, हापुड़, ग़ाज़ियाबाद, बुलंदशहर, बिजनौर, मथुरा, हाथरस, अलीगढ़ समेत आसपास के अन्य कई जिलों में सपा के मुकाबले राष्ट्रीय लोकदल को मजबूत माना जाता है.
हरी जोशी के अनुसार शिवपाल यादव भले ही रथयात्रा के जरिए चुनाव को रोचक बनाने की कोशिश कर रहे हों लेकिन अब वह बहुत कुछ कर पाएंगे, इसकी संभावना कम ही दिखाई देती है. वे कहते हैं कि अगर अकेले ये चुनाव में उतरे तो जिस तरह ओवैसी के यूपी में सक्रिय होने के बावजूद उनकी जो लचर स्थिति दिखाई दे रही है, ठीक वैसी ही स्थिति शिवपाल भी हो जाएगी.
फिलहाल राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि रथयात्रा के जरिए शिवपाल अपने लिए जमीन तो तलाश ही रहे हैं लेकिन सपा के पुराने कार्यकर्ताओं को अपने साथ लाकर वह अखिलेश को सिरदर्द भी दे रहे हैं. वो मानते हैं कि शिवपाल के बार-बार 'सपा से गठबंधन हमारी प्राथमिकता है' वाला बयान देकर वह सपा प्रमुख का ध्यान भी खींचना चाहते हैं.
पिछली बार जब प्रसपा अध्यक्ष मेरठ आए तो उन्होंने अपने बयान में कहा था कि मुख्यमंत्री बनना है तो अखिलेश सोचें. एक हो जाएं. 28 अक्टूबर की शाम को शिवपाल मेरठ जिले में रथयात्रा के साथ पहुंचने वाले हैं. तमाम कार्यकर्ताओं व नेताओं ने होर्डिंग वगैरह के माध्यम से रथयात्रा के आगमन से पूर्व तैयारियां पूरी कर लीं हैं.