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मेरठ: 85 सैनिकों के विद्रोह से शुरू हुई थी 1857 की क्रांति

मेरठ और क्रान्ति का अदभुत नाता है. 10 मई 1857 को क्रान्ति की जो ज्वाला मेरठ से फूटी थी, वो अंग्रेजों को भारत से भगाकर देश को आजादी दिलाने की गवाही बना. आज भी मेरठ के उस स्थल पर क्रान्ति से जुड़ी कई निशानियां मौजूद हैं. क्रान्ति का उद्गम स्थल बगावत का अहसास कराता है.

revolution of meerut
मेरठ से हुई थी 1857 क्रांति की शुरुआत.
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Published : Aug 15, 2020, 9:25 AM IST

मेरठ: भारत से अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव सन् 1857 में मेरठ में रखी गई, जो कि बाद में पूरे देश में आग की तरह फैल गई. देश के तमाम स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ भूमिका तैयार कर आखिर में 1947 को भारत को आजादी दिलाई. इस जंग में लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी.

मेरठ और क्रान्ति का अदभुत नाता है. 10 मई 1857 को क्रान्ति की जो ज्वाला मेरठ से फूटी थी, वो अंग्रेजों को भारत से भगाकर देश को आजादी दिलाने की गवाई बना. आज भी मेरठ के उस स्थल पर क्रान्ति से जुड़ी कई निशानियां मौजूद हैं. क्रान्ति का उद्गम स्थल बगावत का अहसास कराता है.

मेरठ कैंट इलाके में स्थित काली पलटन मंदिर में आज भी वो कुआं मौजूद है, जहां बाबा शिवचरण दास स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों को पानी पिलाया करते थे. 10 मई 1857 को ही मेरठ से आजादी के पहले आंदोलन की शुरूआत हुई थी, जो बाद में पूरे देश में फैल गई. 85 सैनिकों के विद्रोह से जो चिंगारी निकली. वह धीरे-धीरे ज्वाला बन गई. क्रांति की तैयारी सालों से की जा रही थी. नाना साहब, अजीमुल्ला, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे, कुंवर जगजीत सिंह, मौलवी अहमद उल्ला शाह और बहादुर शाह जफर जैसे नेता क्रांति की भूमिका तैयार करने में अपने-अपने स्तर से लगे थे.

मेरठ से हुई थी 1857 क्रांति की शुरुआत.

गाय और मांस की चर्बी लगा कारतूस चलाने से मना करने पर 85 सैनिकों ने जो विद्रोह किया. उनके कोर्ट मार्शल के बाद क्रांतिकारियों ने उग्र रूप अख्तियार किया था. गाय और सुअर की चर्बी से बने कारतूस चलाने से मना करने पर 85 सैनिकों के कोर्ट मार्शल की घटना ने क्रांति की तात्कालिक भूमिका तैयार कर दी थी. हिंदू और मुसलमान सैनिकों ने बगावत कर दी थी. कोर्ट मार्शल के साथ उनको 10 साल की सजा सुनाई गई. 10 मई 1857 को रविवार का दिन था. चर्च में सुबह की जगह शाम को अंग्रेज अधिकारियों ने जाने का फैसला किया. गर्मी इसका मुख्य कारण थी. कैंट एरिया से अंग्रेज अपने घरों से निकलकर सेंट जोंस चर्च पहुंचे. रविवार होने की वजह से अंग्रेजी सिपाही छुट्टी पर थे. कुछ सदर के इलाके में बाजार गए थे.

शाम करीब साढ़े पांच बजे क्रांतिकारियों और भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश सैनिक और अधिकारियों पर हमला बोल दिया. सैनिक विद्रोह की शुरूआत के साथ सदर, लालकुर्ती, रजबन आदि क्षेत्र में 50 से अधिक अंग्रेजों की मौत के साथ हुई. भारतीय पुलिस की ओर से सदर कोतवाल धन सिंह भी मौके पर पहुंचे. मेरठ से शुरू हुई क्रांति पंजाब, राजस्थान, बिहार, असम, तमिलनाडु और केरल में फैलती गई. मेरठ में क्रान्ति स्थल पर पहुंचने पर लोग आदर के साथ इस स्थल को प्रणाम करते हैं.

मेरठ: भारत से अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव सन् 1857 में मेरठ में रखी गई, जो कि बाद में पूरे देश में आग की तरह फैल गई. देश के तमाम स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ भूमिका तैयार कर आखिर में 1947 को भारत को आजादी दिलाई. इस जंग में लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी.

मेरठ और क्रान्ति का अदभुत नाता है. 10 मई 1857 को क्रान्ति की जो ज्वाला मेरठ से फूटी थी, वो अंग्रेजों को भारत से भगाकर देश को आजादी दिलाने की गवाई बना. आज भी मेरठ के उस स्थल पर क्रान्ति से जुड़ी कई निशानियां मौजूद हैं. क्रान्ति का उद्गम स्थल बगावत का अहसास कराता है.

मेरठ कैंट इलाके में स्थित काली पलटन मंदिर में आज भी वो कुआं मौजूद है, जहां बाबा शिवचरण दास स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों को पानी पिलाया करते थे. 10 मई 1857 को ही मेरठ से आजादी के पहले आंदोलन की शुरूआत हुई थी, जो बाद में पूरे देश में फैल गई. 85 सैनिकों के विद्रोह से जो चिंगारी निकली. वह धीरे-धीरे ज्वाला बन गई. क्रांति की तैयारी सालों से की जा रही थी. नाना साहब, अजीमुल्ला, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे, कुंवर जगजीत सिंह, मौलवी अहमद उल्ला शाह और बहादुर शाह जफर जैसे नेता क्रांति की भूमिका तैयार करने में अपने-अपने स्तर से लगे थे.

मेरठ से हुई थी 1857 क्रांति की शुरुआत.

गाय और मांस की चर्बी लगा कारतूस चलाने से मना करने पर 85 सैनिकों ने जो विद्रोह किया. उनके कोर्ट मार्शल के बाद क्रांतिकारियों ने उग्र रूप अख्तियार किया था. गाय और सुअर की चर्बी से बने कारतूस चलाने से मना करने पर 85 सैनिकों के कोर्ट मार्शल की घटना ने क्रांति की तात्कालिक भूमिका तैयार कर दी थी. हिंदू और मुसलमान सैनिकों ने बगावत कर दी थी. कोर्ट मार्शल के साथ उनको 10 साल की सजा सुनाई गई. 10 मई 1857 को रविवार का दिन था. चर्च में सुबह की जगह शाम को अंग्रेज अधिकारियों ने जाने का फैसला किया. गर्मी इसका मुख्य कारण थी. कैंट एरिया से अंग्रेज अपने घरों से निकलकर सेंट जोंस चर्च पहुंचे. रविवार होने की वजह से अंग्रेजी सिपाही छुट्टी पर थे. कुछ सदर के इलाके में बाजार गए थे.

शाम करीब साढ़े पांच बजे क्रांतिकारियों और भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश सैनिक और अधिकारियों पर हमला बोल दिया. सैनिक विद्रोह की शुरूआत के साथ सदर, लालकुर्ती, रजबन आदि क्षेत्र में 50 से अधिक अंग्रेजों की मौत के साथ हुई. भारतीय पुलिस की ओर से सदर कोतवाल धन सिंह भी मौके पर पहुंचे. मेरठ से शुरू हुई क्रांति पंजाब, राजस्थान, बिहार, असम, तमिलनाडु और केरल में फैलती गई. मेरठ में क्रान्ति स्थल पर पहुंचने पर लोग आदर के साथ इस स्थल को प्रणाम करते हैं.

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