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शिवरात्रि स्पेशल: इस मंदिर में हुई थी रावण की मंदोदरी से मुलाकात - meeruth news

महाशिवरात्रि और सावन के महीने में इस मंदिर में श्रद्धालु विशेष रूप से आकर जलाभिषेक कर मन्नतें मांगते हैं.

ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई मनोकामना जरूर पूरी होती है
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Published : Mar 5, 2019, 6:30 AM IST

मेरठ : शहर के सदर इलाके में स्थित श्री बिल्वेश्वर नाथ शिव मंदिर में स्थित शिवलिंग स्वयंभू है. मान्यता है कि यहां सच्चे मन से कर गई मनोकामना जरूर पूरी होती है. बताया जाता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी यहां शिवलिंग की नियमित पूजा करने आती थी, उसकी पूजा से प्रसन्न होकर शिव भगवान ने उन्हें इच्छित वर का वरदान दिया था. इस वरदान के बाद ही इसी मंदिर में रावण से मंदोदरी की मुलाकात हुई थी, जिसके बाद दोनों विवाह के बंधन में बंधे थे.

ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई मनोकामना जरूर पूरी होती है

प्राचीन पुराणों के अनुसार मेरठ का प्राचीन नाम मयराष्ट्र था.यह मय नाम के दानव की राजधानी थी और मय दानव की पुत्री का नाम मंदोदरी था. बताया जाता हैकि त्रेता युग में मंदोदरी विवाह से पहले अपनी सखियों के साथ इसी श्री बिल्वेश्वर नाथ शिव मंदिर में पूजा के लिए आती थी.मंदिर के पास ही एक सरोवर था, जिसे सती सरोवर के नाम से जाना जाता था.पूजा से पहले मंदोदरी इसी सरोवर में सखियों के संग स्नान करती थी और उसके बाद मंदिर जाकर शिव की पूजा करती थी.

मुंदिर के पुजारी पंड़ित हरीश चन्द्र जोशी का कहना है कि यह सिद्धपीठ है. ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई मनोकामना जरूर पूरी होती है.महाशिवरात्रि और सावन के महीने में इस मंदिर में श्रद्धालु विशेष रूप से आकर जलाभिषेक कर मन्नतें मांगते हैं. मंदिर के अंदर प्रवेश करने के लिए झुक कर जाना पड़ता है.मंदिर के अंदर पीतल के बड़े-बड़े घंटे टंगे हैं.इन घंटों की आवाज दूर तक सुनाई देती है.सावन में शिवरात्रि पर लाखों कांवड़िये मंदिर के शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं.सिद्ध पीठ होने के कारण रुद्राभिषेक भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आकर यहां कराते हैं.

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मेरठ : शहर के सदर इलाके में स्थित श्री बिल्वेश्वर नाथ शिव मंदिर में स्थित शिवलिंग स्वयंभू है. मान्यता है कि यहां सच्चे मन से कर गई मनोकामना जरूर पूरी होती है. बताया जाता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी यहां शिवलिंग की नियमित पूजा करने आती थी, उसकी पूजा से प्रसन्न होकर शिव भगवान ने उन्हें इच्छित वर का वरदान दिया था. इस वरदान के बाद ही इसी मंदिर में रावण से मंदोदरी की मुलाकात हुई थी, जिसके बाद दोनों विवाह के बंधन में बंधे थे.

ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई मनोकामना जरूर पूरी होती है

प्राचीन पुराणों के अनुसार मेरठ का प्राचीन नाम मयराष्ट्र था.यह मय नाम के दानव की राजधानी थी और मय दानव की पुत्री का नाम मंदोदरी था. बताया जाता हैकि त्रेता युग में मंदोदरी विवाह से पहले अपनी सखियों के साथ इसी श्री बिल्वेश्वर नाथ शिव मंदिर में पूजा के लिए आती थी.मंदिर के पास ही एक सरोवर था, जिसे सती सरोवर के नाम से जाना जाता था.पूजा से पहले मंदोदरी इसी सरोवर में सखियों के संग स्नान करती थी और उसके बाद मंदिर जाकर शिव की पूजा करती थी.

मुंदिर के पुजारी पंड़ित हरीश चन्द्र जोशी का कहना है कि यह सिद्धपीठ है. ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई मनोकामना जरूर पूरी होती है.महाशिवरात्रि और सावन के महीने में इस मंदिर में श्रद्धालु विशेष रूप से आकर जलाभिषेक कर मन्नतें मांगते हैं. मंदिर के अंदर प्रवेश करने के लिए झुक कर जाना पड़ता है.मंदिर के अंदर पीतल के बड़े-बड़े घंटे टंगे हैं.इन घंटों की आवाज दूर तक सुनाई देती है.सावन में शिवरात्रि पर लाखों कांवड़िये मंदिर के शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं.सिद्ध पीठ होने के कारण रुद्राभिषेक भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आकर यहां कराते हैं.

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शिवरात्रि स्पेशल: रावण की इस मंदिर में हुई थी मंदोदरी से मुलाकात
मेरठ। शहर के पौराणिक शिव मंदिर श्री बिल्वेश्वर नाथ महादेव मंदिर के बारे में मान्यता है कि यह सिद्ध पीठ है। इसी मंदिर में रावण की पत्नी मंदोदरी पूजा करने आया करती थी। बताया जाता है कि इसी मंदिर में रावण की मंदोदरी की मुलाकात हुई थी। शिवरात्रि पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां आकर जलाभिषेक करते हैं और मनोकामना करते हैं। 
मेरठ शहर के सदर इलाके में स्थित श्री बिल्वेश्वर नाथ शिव मंदिर में स्थित शिवलिंग स्वयंभू है। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से कर गई मनोकामना जरूर पूरी होती है। बताया जाता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी यहां शिवलिंग की नियमित पूजा करने आती थी। उसकी पूजा से प्रसन्न होकर शिव भगवान ने उन्हें इच्छित वर का वरदान दिया था। इस वरदान के बाद ही इसी मंदिर में रावण से मंदोदरी की मुलाकात हुई थी, जिसके बाद दोनों विवाह के बंधन में बंधे थे। 
प्राचीन पुराणों के अनुसार मेरठ का प्राचीन नाम मयराष्ट्र था। यह मय नाम के दानव की राजधानी थी। मय दानव की पुत्री जिसका नाम मंदोदरी था उसका विवाह रावण से हुआ था। बताया जाता है कि त्रेता युग में मंदोदरी विवाह से पहले अपनी सखियों के साथ इसी श्री बिल्वेश्वर नाथ शिव मंदिर में पूजा के लिए आती थी। मंदिर के पास ही एक सरोवर था जिसे सती सरोवर के नाम से जाना जाता था। पूजा से पहले मंदोदरी इसी सरोवर में सखियों के संग स्नान करती थी और उसके बाद मंदिर जाकर शिव की पूजा करती थी। 
मुंदिर के पुजारी पंड़ित हरीश चन्द्र जोशी का कहना है कि यह सिद्धपीठ है। यहां मौजूद शिवलिंग स्वयंभू है। ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई मनोकामना जरूर पूरी होती है। इसी मंदिर में पूजा अर्चना कर मंदोदरी ने भगवान शिव से धरती के सबसे विद्वान और शक्तिशाली व्यक्ति को अपने पति के रूप में पाने की मनोकामना की थी। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मंदोदरी को इच्छित वर का वरदान दिया था। पंड़ित हरीश चंद्र जोशी के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इसी वरदान के कारण मंदोदरी के साथ रावण की पहली मुलाकात भी इसी मंदिर में हुई। महाशिवरात्रि और सावन के महीने में इस मंदिर में श्रद्धालु विशेष रूप से आकर जलाभिषेक कर मन्नतें मांगते हैं। इस मंदिर के द्वार बेहद छोटे हैं। मंदिर के अंदर प्रवेश करने के लिए झुक कर जाना पड़ता है। मंदिर के अंदर पीतल के बड़े-बड़े घंटे टंगे है। इन घंटों की आवाज दूर तक सुनाई देती है। मंदिर में शिव की कृपा से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती हैं। शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से अच्छा फल प्राप्त होता है। सावन में शिवरात्रि पर लाखों कांवड़िये मंदिर के शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। सिद्ध पीठ होने के कारण रुद्राभिषेक भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आकर यहां कराते हैं।

बाइट— पंड़ित  हरीश  चंद्र जोशी 

विजुुअल— मंदिर में महाशिवरात्रि पर जलाभिषेक करने पहुंचे श्रद्धालु 


अजय चौहान 
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