मेरठ : शहर के सदर इलाके में स्थित श्री बिल्वेश्वर नाथ शिव मंदिर में स्थित शिवलिंग स्वयंभू है. मान्यता है कि यहां सच्चे मन से कर गई मनोकामना जरूर पूरी होती है. बताया जाता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी यहां शिवलिंग की नियमित पूजा करने आती थी, उसकी पूजा से प्रसन्न होकर शिव भगवान ने उन्हें इच्छित वर का वरदान दिया था. इस वरदान के बाद ही इसी मंदिर में रावण से मंदोदरी की मुलाकात हुई थी, जिसके बाद दोनों विवाह के बंधन में बंधे थे.
प्राचीन पुराणों के अनुसार मेरठ का प्राचीन नाम मयराष्ट्र था.यह मय नाम के दानव की राजधानी थी और मय दानव की पुत्री का नाम मंदोदरी था. बताया जाता हैकि त्रेता युग में मंदोदरी विवाह से पहले अपनी सखियों के साथ इसी श्री बिल्वेश्वर नाथ शिव मंदिर में पूजा के लिए आती थी.मंदिर के पास ही एक सरोवर था, जिसे सती सरोवर के नाम से जाना जाता था.पूजा से पहले मंदोदरी इसी सरोवर में सखियों के संग स्नान करती थी और उसके बाद मंदिर जाकर शिव की पूजा करती थी.
मुंदिर के पुजारी पंड़ित हरीश चन्द्र जोशी का कहना है कि यह सिद्धपीठ है. ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई मनोकामना जरूर पूरी होती है.महाशिवरात्रि और सावन के महीने में इस मंदिर में श्रद्धालु विशेष रूप से आकर जलाभिषेक कर मन्नतें मांगते हैं. मंदिर के अंदर प्रवेश करने के लिए झुक कर जाना पड़ता है.मंदिर के अंदर पीतल के बड़े-बड़े घंटे टंगे हैं.इन घंटों की आवाज दूर तक सुनाई देती है.सावन में शिवरात्रि पर लाखों कांवड़िये मंदिर के शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं.सिद्ध पीठ होने के कारण रुद्राभिषेक भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आकर यहां कराते हैं.