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मेरठ के इस पत्ता मोहल्ले में पत्तल परंपरा को आज भी जीवित रखे हैं दो भाई - मेरठ की न्यूज

मेरठ में दो भाइयों ने पत्तल परंपरा को अभी तक जीवित रखा है. आखिर यह पत्तल परंपरा है क्या चलिए आगे जानते हैं.

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Published : Jul 1, 2023, 3:54 PM IST

Updated : Jul 1, 2023, 5:19 PM IST

मेरठः आज हम आपको शहर के एक खास उत्पाद के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी किसी जमाने में कई शहरों में डिमांड होती थी. इस उत्पाद के नाम से पूरा मोहल्ला ही जाना जाने लगा. वक्त के साथ डिमांड घटी तो कई बदलाव आ गए. जहां ढेरों दुकानें इस उत्पाद को कभी बेचती थी अब महज एक दुकान ही बची है. इस दुकान में दो भाई इस परंपरा को आज भी जीवित रखे हुए हैं. हम बात करे हैं मेरठ के पत्ता मोहल्ले में बिकने वाली हरी पत्तल की.

मेरठ में अभी भी जीवित है पत्तल परंपरा.

यहां की एक दुकान में दो भाई महेश कुमार और योगेंद्र कुमार पत्तल परंपरा को अभी भी जीवित रखे हैं. दोनों बताते हैं कि यह काम उनकी चौथी पीढ़ी देख रही है. कभी यहां कई शहरों से तांगों से लोग पत्तल लेने आते थे. कभी यहां से तैयार पत्तल दिल्ली के सदर बाजार तक जाता था. पूरा मोहल्ला ही यही काम करता था. इस वजह से इसे पत्ता मोहल्ले के नाम से जाना जाता था. उन्होंने बताया कि पहले ऋषिकेश, धामपुर, हरिद्वार, बिजनौर समेत कई जगह से पत्ते आते थे, जिनकी पत्तलें तैयार कर बेचीं जाती थीं.

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औषधीय गुणों से भरपूर है पत्तल.

महेश ने बताया कि आज जितनी भी डिस्पोजल क्रॉकरी चलती है, पहले ऐसा कुछ भी नहीं था. ये सभी आइटम केमिकल से बनते हैं इसलिए नुकसानदायक होते हैं. ये पत्ते औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं. चाट, मटर टिक्की कुछ भी खाओ इस पत्ते पर मुंह में कोई समस्या नहीं होने वाली. इसके कई फायदे भी हैं. उन्होंने बताया कि अब यह पत्ता ओडिशा से मंगवाया जाता है. यह पर्यावरण को शुद्ध रखता है. यह कई वर्षों तक खराब नहीं होता है. उन्होंने बताया कि कभी इस पत्ता मोहल्ले में 40 दुकानें हुआ करतीं थीं. डिमांड घटने पर धीरे-धीरे दुकानें घटने लगी. लोग अपनी दुकानें और कारोबार बेचकर दूसरे शहरों में चले गए.

महेश और योगेंद्र बताते हैं कि लेकिन वे आज भी यहीं पर रुके हुए हैं. यह हमारी विरासत है. उनका कहना है कि वे इस परंपरा को लुप्त नहीं होने देंगे. उम्मीद है कि सरकार इस पर कभी न कभी तो ध्यान देगी. दोनों ने बताया कि कभी एक बोरी पत्ता 225 रुपए में मिल जाता था. अब दूसरे राज्यों को कर चुकाने के बाद 950 रुपए का पड़ता है. मजबूरी में महंगा माल बेचना पड़ता है. शादी, त्रेयोदशी संस्कार आदि के लिए लोग आर्डर करते हैं. आर्डर पर माल बनाते हैं. उन्होंने कहा कि सावन मास में शिव भक्तों के लिए लगने वाले कैंप के लिए काफी आर्डर मिल चुके हैं.


ऐसे बनाते हैं पत्तल
महेश बताते हैं कि पत्तल और दोना ढाक और शाल के पत्ते से बनता है. मालधन के पत्ते की भी काफी डिमांड रहती है. इसे जिलेभर के कैटर आर्डर देकर तैयार कराते हैं. गाजियाबाद से भी काफी आर्डर मिलते हैं. उन्होंने बताया की पत्तल नीम की तीलियों से तैयार की जाती है. नीम की तीलियां जनवरी और फरवरी में मिलती हैं. ढाक के पत्ते को सुखाकर स्टोर कर लेते हैं. जरूरत पर काम में लाते हैं. ये पत्ते टिकाऊ रहते हैं. डिमांड पर इस पत्तल को तैयार करते हैं. उन्होंने बताया कि कई शुभ कार्यों में अब पत्तल पर ही भोजन परोसना पसंद किया जा रहा है. शादियों में हरे पत्तों की काफी डिमांड रहती है.


ये भी पढ़ेंः सीएम योगी 24 घंटे में रोक सकते हैं फ्रांस के दंगे, जर्मन प्रोफेसर ने किया ट्वीट

मेरठः आज हम आपको शहर के एक खास उत्पाद के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी किसी जमाने में कई शहरों में डिमांड होती थी. इस उत्पाद के नाम से पूरा मोहल्ला ही जाना जाने लगा. वक्त के साथ डिमांड घटी तो कई बदलाव आ गए. जहां ढेरों दुकानें इस उत्पाद को कभी बेचती थी अब महज एक दुकान ही बची है. इस दुकान में दो भाई इस परंपरा को आज भी जीवित रखे हुए हैं. हम बात करे हैं मेरठ के पत्ता मोहल्ले में बिकने वाली हरी पत्तल की.

मेरठ में अभी भी जीवित है पत्तल परंपरा.

यहां की एक दुकान में दो भाई महेश कुमार और योगेंद्र कुमार पत्तल परंपरा को अभी भी जीवित रखे हैं. दोनों बताते हैं कि यह काम उनकी चौथी पीढ़ी देख रही है. कभी यहां कई शहरों से तांगों से लोग पत्तल लेने आते थे. कभी यहां से तैयार पत्तल दिल्ली के सदर बाजार तक जाता था. पूरा मोहल्ला ही यही काम करता था. इस वजह से इसे पत्ता मोहल्ले के नाम से जाना जाता था. उन्होंने बताया कि पहले ऋषिकेश, धामपुर, हरिद्वार, बिजनौर समेत कई जगह से पत्ते आते थे, जिनकी पत्तलें तैयार कर बेचीं जाती थीं.

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औषधीय गुणों से भरपूर है पत्तल.

महेश ने बताया कि आज जितनी भी डिस्पोजल क्रॉकरी चलती है, पहले ऐसा कुछ भी नहीं था. ये सभी आइटम केमिकल से बनते हैं इसलिए नुकसानदायक होते हैं. ये पत्ते औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं. चाट, मटर टिक्की कुछ भी खाओ इस पत्ते पर मुंह में कोई समस्या नहीं होने वाली. इसके कई फायदे भी हैं. उन्होंने बताया कि अब यह पत्ता ओडिशा से मंगवाया जाता है. यह पर्यावरण को शुद्ध रखता है. यह कई वर्षों तक खराब नहीं होता है. उन्होंने बताया कि कभी इस पत्ता मोहल्ले में 40 दुकानें हुआ करतीं थीं. डिमांड घटने पर धीरे-धीरे दुकानें घटने लगी. लोग अपनी दुकानें और कारोबार बेचकर दूसरे शहरों में चले गए.

महेश और योगेंद्र बताते हैं कि लेकिन वे आज भी यहीं पर रुके हुए हैं. यह हमारी विरासत है. उनका कहना है कि वे इस परंपरा को लुप्त नहीं होने देंगे. उम्मीद है कि सरकार इस पर कभी न कभी तो ध्यान देगी. दोनों ने बताया कि कभी एक बोरी पत्ता 225 रुपए में मिल जाता था. अब दूसरे राज्यों को कर चुकाने के बाद 950 रुपए का पड़ता है. मजबूरी में महंगा माल बेचना पड़ता है. शादी, त्रेयोदशी संस्कार आदि के लिए लोग आर्डर करते हैं. आर्डर पर माल बनाते हैं. उन्होंने कहा कि सावन मास में शिव भक्तों के लिए लगने वाले कैंप के लिए काफी आर्डर मिल चुके हैं.


ऐसे बनाते हैं पत्तल
महेश बताते हैं कि पत्तल और दोना ढाक और शाल के पत्ते से बनता है. मालधन के पत्ते की भी काफी डिमांड रहती है. इसे जिलेभर के कैटर आर्डर देकर तैयार कराते हैं. गाजियाबाद से भी काफी आर्डर मिलते हैं. उन्होंने बताया की पत्तल नीम की तीलियों से तैयार की जाती है. नीम की तीलियां जनवरी और फरवरी में मिलती हैं. ढाक के पत्ते को सुखाकर स्टोर कर लेते हैं. जरूरत पर काम में लाते हैं. ये पत्ते टिकाऊ रहते हैं. डिमांड पर इस पत्तल को तैयार करते हैं. उन्होंने बताया कि कई शुभ कार्यों में अब पत्तल पर ही भोजन परोसना पसंद किया जा रहा है. शादियों में हरे पत्तों की काफी डिमांड रहती है.


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Last Updated : Jul 1, 2023, 5:19 PM IST
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