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Maliana Massacre Case : जस्टिस श्रीवास्तव कमेटी की रिपोर्ट से सच आएगा सामने : याकूब सिद्दीकी

मलियाना नरसंहार मामले में न्याय की कसक अभी बाकी है. निचली अदालत द्वारा 40 आरोपियों को बरी करना वादी पक्ष को हताश करने वाला बताया जा रहा है. वादी पक्ष मामले को ऊपरी अदालत में ले जाने की बात कह रहा है. साथ ही राजनीतिक दलों से भी सहयोग की अपील कर रहा है.

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Published : Apr 5, 2023, 2:35 PM IST

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Maliana Massacre Case : जस्टिस श्रीवास्तव कमेटी की रिपोर्ट से सच आएगा सामने : याकूब सिद्दीकी.

मेरठ : मलियाना नरसंहार मामले में कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए हिंसा के 40 आरोपियों को बरी कर दिया है. ऐसे में अब मलियाना देशभर में फिर एक बार चर्चा में है. 23 मई 1987 को हुए इस कांड के बाद अगले दिन 93 लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज कराने वाले याकूब सिद्दीकी की मांग है कि अब जस्टिस श्रीवास्तव आयोग की रिपोर्ट सरकार सार्वजनिक करे ताकि दुनिया जान सके कि क्या रिपोर्ट उस वक्त तैयार की गई थी जो कि कभी सामने ही नहीं आई. हिंसा मामले में मुकदमा लिखाने वाले याकूब ने ईटीवी भारत से एक्सक्लुसिव बातचीत कई बड़े खुलासे किए हैं.

बीते दिनों कोर्ट के फैंसले के बाद से मेरठ के मलियाना की हर गली में देशभर के तमाम मीडिया संस्थानों के मीडियाकर्मी किसी न किसी पीड़ित के घर का पता वहां से आते जाते लोगों से पूछते देखे जा सकते हैं. हिंसा के एक दिन बाद 24 मई 1987 को 93 लोगों के विरुद्ध नामजद और कुछ अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज तब हुआ था. याकूब सिद्दीकी ही वह शक्स हैं जिन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा न्याय पाने के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने में ही लगा दिया. हिंसा में मारे गए लोगों और पीड़ितों व उनके परिवारों के लिए कोर्ट में लड़ाई लड़ी. याकूब उस वक्त जवान थे अब बुजुर्ग हो चुके हैं. जानेंगे तमाम सबूत हाथ में और कोर्ट का फैंसला जो आया उसके बाद वह दुखी हैं. एफआईआर दर्ज कराने वाले मोहम्मद याकूब अली ने ईटीवी भारत से बताया कि उन्होंने 93 हिंदुओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था वहीं कुछ अज्ञात में भी थे.

याकूब कहते हैं कि पहले तो जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को देने में तब 10 वर्ष गुजार दिए थे. उसके बावजूद वह रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई. याकूब कहते हैं कि इस नरसंहार के बाद देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी तब यहां आए थे और उन्होंने निर्देश दिया था कि एक कमेटी का सरकार गठन करे. इसके बाद सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीएल श्रीवास्तव की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन हुआ था. आयोग ने जनवरी 1988 में सरकार को पीएसी को मलियाना से हटाने को कहा था. जिसके बाद गांव से तब पीएसी हटाई गई थी. तब आयोग द्वारा कुल मिलाकर 84 सार्वजनिक गवाहों समेत 14 हिंदुओं, 70 मुस्लिमों से पूछताछ की गई थी. इसके अलावा पांच आधिकारिक गवाहों से भी पूछताछ की गई थी, लेकिन इसे कभी सार्वजनिक नहीं किया गया.

याकूब बताते हैं कि उस वक्त 106 मकान मलियाना में जले थे. कचहरी में पूरे एक महीने तक जस्टिस श्रीवास्तव ने न्यायालय लगाई थी, जिसमें तमाम गवाहों को पेश किया गया, तमाम लोगों से उन्होंने बयान दर्ज किए थे. आयोग की रिपोर्ट तो आज तक सामने आई ही नहीं. इसके बाद जब वह न्याय के लिए इस मामले में कोर्ट गए तो प्राथमिकी रिपोर्ट ही गायब कर दी गई. करिब 10 वर्षों तक ऐसे ही भागदौड़ होती रही. उस वक्त उनकी उम्र 31 साल थी और आज उनकी उम्र 66 साल है. बहरहाल अभी इंसाफ नहीं मिला है.


मुकदमे के वादी याकूब ने बताया कि उन्हें कानून पर भरोसा है और था. उम्मीद थी कि इंसाफ होगा, लेकिन जो कोर्ट का फैसला आया है वह उससे दुखी हैं. 106 मकान जले थे, पीएसी लगाई गई, सेना को लगाया गया, कर्फ्यू लगा, प्रधानमंत्री स्वयं दौरा करने आए. 1987 में ही मरने वालों के परिवारवालों को भी 20 -20 हजार रुपये का मुआवजा भी दिया गया. कुल 36 मरने वाले लोगों के परिजनों को उस वक्त मुआवजा दिया गया था. जो लोग जख्मी हुए थे उन्हें प्रत्येक को 500-500 रुपये का मुआवजा सरकार ने दिया था. वह भी ज़ख्मी हुए थे उन्हें भी 500 रुपये मिले थे. इसके अलावा सरकार ने सभी के घर बनवाने के लिए आर्थिक मदद दी.


याकूब का कहना है कि जैसा कि निर्णय आया है जब आरोपियों ने हमें मारा नहीं, पुलिस ने हमें छेड़ा नहीं तो आखिर इतनी मौतें कैसे हुईं. क्या हमने खुद अपनी गर्दन काट लीं. खुद हम जलकर मर गए, खुद हमने अपने घर तोड़े, आखिर हमें मार कर कौन गया. याकूब कहते हैं कि 38 मरने वाले लोगों के पोस्टमार्टम रिपोर्ट लगी थीं. 36 ऐसे लोगों की रिपोर्ट लगी थी जो कि गम्भीर जख्मी हालत में लोग थे. लोगों ने गवाही भी दी हैं. हमें लगता है कि सबूत तो पर्याप्त हैं. याकूब कहते हैं कि पीड़ित परिवार के सभी लोग मेहनत मजदूरी करने वाले लोग हैं. उन्हें एकजुट करके बीते 35 साल से न्याय की आस में मुकदमा लड़ रहे हैं. तमाम तकलीफें झेली हैं. लोगों ने अपनी गाढ़ी कमाई मुक़दमे में इंसाफ के लिए कुर्बान की है. हम अभी रुकेंगे नहीं. हम हाईकोर्ट जाएंगे, सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. हमें देश के कानून पर भरोसा है. हम निचली अदालत के फैसले को चुनौती देंगे.

राजनेताओं पर अनसुनी का आरोप : किसी भी सरकार ने किसी भी प्रदेश के बड़े राजनेता ने उनका साथ नहीं दिया. जबकि हर किसी की चौखट पर जाकर मदद के लिए गुहार लगाई गई. पूर्व में मुलायम सिंह यादव, मायावती समेत बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं से भी गुहार लगाई. इसके अलावा चिठ्ठी लिखी हैं, खूब गुहार लगाई है, अखिलेश यादव से भी मिले हैं. किसी ने मदद नहीं की. इन नेताओं से कहना है कि अब जो आगे की कार्रवाई होगी उसमें उनका साथ दें.

यह भी पढ़ें : AIMIM के यूपी सचिव का इस्तीफा, प्रदेश अध्यक्ष पर लगाए गंभीर आरोप

Maliana Massacre Case : जस्टिस श्रीवास्तव कमेटी की रिपोर्ट से सच आएगा सामने : याकूब सिद्दीकी.

मेरठ : मलियाना नरसंहार मामले में कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए हिंसा के 40 आरोपियों को बरी कर दिया है. ऐसे में अब मलियाना देशभर में फिर एक बार चर्चा में है. 23 मई 1987 को हुए इस कांड के बाद अगले दिन 93 लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज कराने वाले याकूब सिद्दीकी की मांग है कि अब जस्टिस श्रीवास्तव आयोग की रिपोर्ट सरकार सार्वजनिक करे ताकि दुनिया जान सके कि क्या रिपोर्ट उस वक्त तैयार की गई थी जो कि कभी सामने ही नहीं आई. हिंसा मामले में मुकदमा लिखाने वाले याकूब ने ईटीवी भारत से एक्सक्लुसिव बातचीत कई बड़े खुलासे किए हैं.

बीते दिनों कोर्ट के फैंसले के बाद से मेरठ के मलियाना की हर गली में देशभर के तमाम मीडिया संस्थानों के मीडियाकर्मी किसी न किसी पीड़ित के घर का पता वहां से आते जाते लोगों से पूछते देखे जा सकते हैं. हिंसा के एक दिन बाद 24 मई 1987 को 93 लोगों के विरुद्ध नामजद और कुछ अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज तब हुआ था. याकूब सिद्दीकी ही वह शक्स हैं जिन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा न्याय पाने के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने में ही लगा दिया. हिंसा में मारे गए लोगों और पीड़ितों व उनके परिवारों के लिए कोर्ट में लड़ाई लड़ी. याकूब उस वक्त जवान थे अब बुजुर्ग हो चुके हैं. जानेंगे तमाम सबूत हाथ में और कोर्ट का फैंसला जो आया उसके बाद वह दुखी हैं. एफआईआर दर्ज कराने वाले मोहम्मद याकूब अली ने ईटीवी भारत से बताया कि उन्होंने 93 हिंदुओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था वहीं कुछ अज्ञात में भी थे.

याकूब कहते हैं कि पहले तो जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को देने में तब 10 वर्ष गुजार दिए थे. उसके बावजूद वह रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई. याकूब कहते हैं कि इस नरसंहार के बाद देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी तब यहां आए थे और उन्होंने निर्देश दिया था कि एक कमेटी का सरकार गठन करे. इसके बाद सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीएल श्रीवास्तव की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन हुआ था. आयोग ने जनवरी 1988 में सरकार को पीएसी को मलियाना से हटाने को कहा था. जिसके बाद गांव से तब पीएसी हटाई गई थी. तब आयोग द्वारा कुल मिलाकर 84 सार्वजनिक गवाहों समेत 14 हिंदुओं, 70 मुस्लिमों से पूछताछ की गई थी. इसके अलावा पांच आधिकारिक गवाहों से भी पूछताछ की गई थी, लेकिन इसे कभी सार्वजनिक नहीं किया गया.

याकूब बताते हैं कि उस वक्त 106 मकान मलियाना में जले थे. कचहरी में पूरे एक महीने तक जस्टिस श्रीवास्तव ने न्यायालय लगाई थी, जिसमें तमाम गवाहों को पेश किया गया, तमाम लोगों से उन्होंने बयान दर्ज किए थे. आयोग की रिपोर्ट तो आज तक सामने आई ही नहीं. इसके बाद जब वह न्याय के लिए इस मामले में कोर्ट गए तो प्राथमिकी रिपोर्ट ही गायब कर दी गई. करिब 10 वर्षों तक ऐसे ही भागदौड़ होती रही. उस वक्त उनकी उम्र 31 साल थी और आज उनकी उम्र 66 साल है. बहरहाल अभी इंसाफ नहीं मिला है.


मुकदमे के वादी याकूब ने बताया कि उन्हें कानून पर भरोसा है और था. उम्मीद थी कि इंसाफ होगा, लेकिन जो कोर्ट का फैसला आया है वह उससे दुखी हैं. 106 मकान जले थे, पीएसी लगाई गई, सेना को लगाया गया, कर्फ्यू लगा, प्रधानमंत्री स्वयं दौरा करने आए. 1987 में ही मरने वालों के परिवारवालों को भी 20 -20 हजार रुपये का मुआवजा भी दिया गया. कुल 36 मरने वाले लोगों के परिजनों को उस वक्त मुआवजा दिया गया था. जो लोग जख्मी हुए थे उन्हें प्रत्येक को 500-500 रुपये का मुआवजा सरकार ने दिया था. वह भी ज़ख्मी हुए थे उन्हें भी 500 रुपये मिले थे. इसके अलावा सरकार ने सभी के घर बनवाने के लिए आर्थिक मदद दी.


याकूब का कहना है कि जैसा कि निर्णय आया है जब आरोपियों ने हमें मारा नहीं, पुलिस ने हमें छेड़ा नहीं तो आखिर इतनी मौतें कैसे हुईं. क्या हमने खुद अपनी गर्दन काट लीं. खुद हम जलकर मर गए, खुद हमने अपने घर तोड़े, आखिर हमें मार कर कौन गया. याकूब कहते हैं कि 38 मरने वाले लोगों के पोस्टमार्टम रिपोर्ट लगी थीं. 36 ऐसे लोगों की रिपोर्ट लगी थी जो कि गम्भीर जख्मी हालत में लोग थे. लोगों ने गवाही भी दी हैं. हमें लगता है कि सबूत तो पर्याप्त हैं. याकूब कहते हैं कि पीड़ित परिवार के सभी लोग मेहनत मजदूरी करने वाले लोग हैं. उन्हें एकजुट करके बीते 35 साल से न्याय की आस में मुकदमा लड़ रहे हैं. तमाम तकलीफें झेली हैं. लोगों ने अपनी गाढ़ी कमाई मुक़दमे में इंसाफ के लिए कुर्बान की है. हम अभी रुकेंगे नहीं. हम हाईकोर्ट जाएंगे, सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. हमें देश के कानून पर भरोसा है. हम निचली अदालत के फैसले को चुनौती देंगे.

राजनेताओं पर अनसुनी का आरोप : किसी भी सरकार ने किसी भी प्रदेश के बड़े राजनेता ने उनका साथ नहीं दिया. जबकि हर किसी की चौखट पर जाकर मदद के लिए गुहार लगाई गई. पूर्व में मुलायम सिंह यादव, मायावती समेत बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं से भी गुहार लगाई. इसके अलावा चिठ्ठी लिखी हैं, खूब गुहार लगाई है, अखिलेश यादव से भी मिले हैं. किसी ने मदद नहीं की. इन नेताओं से कहना है कि अब जो आगे की कार्रवाई होगी उसमें उनका साथ दें.

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