मेरठ: नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ हुए हिंसक प्रदर्शन पर की गई पुलिस की कार्रवाई पर एडवोकेट रियासत अली ने सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि पुलिस ने जिन लोगों के ऊपर गोली चलाई है, उसमें 6 लोगों की मौत हो गई. इस मामले में कोर्ट में पुलिस वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है.
रियासत अली ने कहा कि हमारा पैनल मेरठ में काम कर रहा है. जो लोग प्रदर्शनकारियों के नाम पर फंसाए गए हैं, उनकी बेल हम लोगों ने लगाई है. सबकी बेल खारिज होकर हाईकोर्ट जा रही है. वहीं PFI से जुड़े सदस्यों की गिरफ्तारी के सवाल पर रियासत अली ने कहा कि यह सही नहीं है. उत्तर प्रदेश पुलिस के पास पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) से जुड़े लोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है.
उन्होंने कहा कि अदालत में पुलिस द्वारा पेश किए गए सबूत ठोस नहीं हैं. उन सबूतों में किसी व्यक्ति का नाम या किसी संगठन का नाम नहीं है, जिसके माध्यम से यह साबित किया जा सकता है कि जिन लोगों को कथित रूप से गिरफ्तार किया गया है, उनके पीएफआई के साथ संबंध हैं. इस तरह के सबूत उन्हें दोषी साबित नहीं करते हैं, क्योंकि उनका कानून में कोई मूल्य नहीं है और हमें उम्मीद है कि हमें अदालत से न्याय मिलेगा.
महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा और राज्य दमन (डब्ल्यूएसएस) की पांच सदस्यीय टीम ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी जिले मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली और बिजनौर का दौरा किया. टीम ने सीएए विरोध प्रदर्शन के दौरान अपने परिवार को खो चुके लोगों से भी मुलाकात की, जो 18, 19 और 20 दिसंबर 2019 को हुआ था.
डब्ल्यूएसएस की सदस्य अनुराधा ने कहा कि हमने देखा कि रिकॉर्ड पर पुलिस कार्रवाई का एक पैटर्न दिखाई देता है. विरोध प्रदर्शनों को रोकने के नाम पर पुलिस को सशस्त्र किया गया और मारने की तैयारी की गई, सिर और छाती पर तत्काल शॉट को प्राथमिकता दी गई थी.
अनुराधा ने कहा कि हम सरकार को मामले और पुलिस अत्याचारों की जांच करने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की एक टीम का गठन करने और मुस्लिम युवकों के खिलाफ झूठे मुकदमे वापस लेने, मौतों और हिरासत के सभी मामलों पर एफआईआर दर्ज करने की मांग करते हैं.
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