मेरठ: पौराणिक कथाओं में कलयुग की शुरुआत द्वापर युग के अंत से मना गया है. ऐसी मान्यता है कि द्वापर युग के अंत में कलयुग बैल रूपी धर्म और गाय रूपी धरती को पीट रहा था. अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र राजा परीक्षित ने क्रोधित होकर उनके पीटने की वजह पूछी तो कलयुग ने न सिर्फ द्वापर युग अंत होने की बात कही, बल्कि कलयुग आने के संकेत दिए. राजा परीक्षित ने कलयुग को असत्य, मदिरा, काम, क्रोध चार जगहों पर रहने का आदेश दिया था. मान्यता है कि करीब 5000 साल पहले राजा परीक्षित की मृत्यु के बाद किला परीक्षितगढ़ की धरती से कलयुग का अवतरण हुआ था.
परीक्षितगढ़ से हुई थी कलयुग की शुरुआत
वैसे तो पुराणों में चारो युगों सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलयुग का विस्तार से वर्णन किया गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार कलयुग को एक श्राप भी कहा जाता है. इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को है कि कलयुग का उदय कब और कहां हुआ था. यह अपने आप में एक रहस्य है. ETV भारत की टीम कलयुग अवतरण के इस रहस्य को जानने के लिए द्वापर युग में अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र राजा परीक्षित की राजधानी रहे कस्बा परीक्षितगढ़ पहुंची. जहां श्रृंगी ऋषि का आश्रम बना हुआ है. मान्यता है कि इस आश्रम से कलयुग की शुरुआत हुई थी. आश्रम के कोने में गूलर के उस पेड़ पर ही कलयुग का उदय हुआ था.
पांडवों को लेकर महाप्रयाण के लिए निकल गए थे धर्मराज युधिष्ठिर
द्वापर युग में महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों ने कौरवों को पराजित कर हस्तिनापुर पर राज किया था. वहीं अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र परीक्षित को नए राज्य का राजपाठ दिया गया था. राजा परीक्षित के नाम पर उस राज्य का नाम परीक्षितगढ़ पड़ गया था. जहां महाभारत काल की कई यादें आज भी देखी जा सकती है. बताया जाता है कि धर्म राज युधिष्ठिर राजपाठ परीक्षित को सौंपकर सभी पांडवों और रानी द्रोपदी के साथ महाप्रयाण के लिए हिमालय पर्वत पर चले गए.
जानिए कैसे हुआ कलयुग का अवतरण
इसी दौरान धर्म भी बैल का रूप धारण कर सरस्वती नदी के किनारे गाय के रूप में बैठी पृथ्वी देवी से मिलने गए थे. पुराणों के मुताबिक बैल-गाय रूपी धर्म और पृथ्वी देवी के बीच बातचीत के दौरान पृथ्वी बहुत दुःखी थी. उनकी आंखों से आंसू छलक रहे थे. धर्म ने आंसुओं का कारण पूछा तो पृथ्वी ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण के स्वधाम चले जाने के बाद कलयुग ने मुझ पर कब्जा कर लिया है. पृथ्वी ने कहा कि श्रीकृष्ण सत्य, संतोष, ज्ञान, दया, त्याग, शौर्य, तेज, ऐश्वर्य, धैर्य, साहस, कीर्ति, स्थिरता, निर्भीकता एवं अहंकारहीनता के स्वामी थे. जब भी भगवान श्रीकृष्ण के चरण मुझ पर पड़ते थे तो मैं अपने आपको शौभाग्यशाली मानती थी, लेकिन उनके स्वधाम जाने के बाद मेरा शोभाग्य भी समाप्त हो गया है.
राजा परीक्षित से हुआ कलयुग का युद्ध
ETV भारत की टीम ने कलयुग अवतरण के रहस्य को जानने के लिए श्रृंगी ऋषि आश्रम के महंत स्वामी ब्रह्मगिरि महाराज से बात की. ETV भारत से बातचीत में उन्होंने बताया कि द्वापर युग के अंत में राक्षस रूपी कलयुग बैल रूपी धर्म और गाय रूपी पृथ्वी देवी को पीट रहा था. तभी वहां से राजा परीक्षित गुजरे तो उन्होंने धर्म और पृथ्वी को पहचान लिया. उन अत्याचार होता देख राजा परीक्षित ने राक्षस रूपी कलयुग पर क्रोधित हो गए. धनुष पर बाण चढ़ाकर कलयुग से पूछा हे दुष्ट गाय-बैल पर अत्याचार करने वाले तुम कौन हो. गाय-बैल को सताने के लिए तुम एक अपराधी हो. इसलिए तुम्हारा वध करना ही बेहतर है.
पाप, झूठ, कपट, चोरी का मूल कारण है कलयुग
राजा परीक्षित को क्रोधित होता देख कलयुग घुटने टेक क्षमा मांगने लगा. कलयुग राक्षसी वेश उतार कर राजा परीक्षित में चरणों में लिपट गया. वहीं शरण में कलयुग को राजा परीक्षित ने जीवन दान दे दिया. बल्कि अपने राज्य से निकल जाने का आदेश दिया. राजा ने कलयुग को कहा कि धरती पर अधर्म, झूठ, कपट, चोरी, पाप समेत अनेकों उपद्रवों का मूल कारण तू ही होगा. बताया जाता है कि कलयुग ने राजा परीक्षित को सम्पूर्ण धरती पर उनका राज होने का हवाला देते हुए दूसरा स्थान मांग लिया.
स्वर्ण स्थान मिलते हुआ कलयुग का उदय
राजा परीक्षित ने कलयुग को कहा कि हिंसा, झूठ, द्युत, परस्त्रीगमन, मद्यपान इन चार स्थानों में असत्य, मद, क्रोध, और काम का वास होता है. इसलिए तुम्हारे लिए ये चारों स्थान उपयुक्त हैं, लेकिन कलयुग ने इन चारों स्थानों को अपर्याप्त बताते हुए दूसरे स्थान की मांग कर दी. जिसके बाद राजा परीक्षित ने स्वर्ण यानि सोने को पांचवे स्थान के रूप में दे दिया. स्वर्ण स्थान मिलते ही कलयुग राजा के सिर पर रखे सोने के मुकुट पर बैठ गया. बताया जाता है कि मुकुट पर कलयुग के वास करते ही राजा परीक्षित की बुद्धि ने काम करना बंद कर दिया.
राजा परीक्षित की बुद्धि हुई भ्रष्ट
मंहत ब्रह्मागिरि बताते है कि बुद्धि भ्रष्ट होने बाद राजा परीक्षित जंगल भ्रमण करते हुए श्रृंगी ऋषि के आश्रम पहुंच गए. ऋषि शमीक तपस्या में विलीन थे. राजा को प्यास लगी तो पानी के लिए कई बार ऋषि शमीक को तपस्या से जगाने की कोशिश की, लेकिन उनका तप नहीं टूटा. जिसके बाद राजा ने क्रोधित होकर मरा हुआ सांप तीर से उठाकर उनके गले में डाल दिया. जिसके बाद ऋषि शमीक के पुत्र श्रृंग ऋषि ने राजा परीक्षित को श्राप दिया कि सात दिनों के भीतर यही मरा हुआ सांप जिंदा होकर राजा की मौत का कारण बनेगा. ठीक सात दिन बाद शुक्रताल में भगवत कथा सुन रहे राजा की सर्प दंश से मृत्यु हो गई.
द्वापर युग के बाद आया कलयुग
बताया जाता है कि श्रृंगी ऋषि आश्रम के कोने में महाभारत कालीन गूलर का पेड़ है. सबसे पहले इस गूलर के पेड़ पर ही कलयुग आकर रुका था. जहां उसने द्वापर युग के अंत का इंतजार किया था. पौराणिक कथाओं के अनुसार सतयुग में धर्म के तप, सत्य, दया एवं पवित्रता चार चरण थे. जबकि त्रेता युग में तीन और द्वापर युग में दो ही चरण रह गए, लेकिन कलयुग के कारण केवल एक ही चरण रह गया है. जिसके चलते पृथ्वी देवी बहुत दुःखी हुई थी. कलयुग के चलते धरती पर न सिर्फ झूठ अधर्म बढ़ जाएगा, बल्कि माता-पिता और गुरुओं के सम्मान की परम्परा भी खत्म होती चली जाएगी.