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मेरठ के इस जंगल से टहनी और पत्ता तोड़ना सख्त मना है, 12 गांवों के लोग करते हिफाजत, ये है वजह

आपको बताते हैं मेरठ के एक ऐसे जंगल के बारे में जहां टहनी और पत्ते तोड़ने की मनाही है. आखिर इसकी वजह क्या है चलिए जानते हैं.

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Published : Jul 20, 2023, 5:24 PM IST

मेरठः जिले में एक ऐसा घना जंगल है जहां किसी भी पेड़ की साख और पत्ता कोई नहीं तोड़ सकता है. इसके लिए मंदिर से आज्ञा लेनी पड़ती है. इस जंगल की रखवाली 12 गांवों के लोग करते हैं.

मेरठ में आस्था का बड़ा केंद्र है यह दुर्गा मंदिर.

इस घने जंगल में एक दुर्गा मंदिर है. इस मंदिर की महंत कर्दम मुनि महाराज हैं. उन्होंने बाल्यकाल से ही वैराग्य धारण कर लिया था और वह इसी मंदिर में निवास करती हैं. उन्होंने बताया कि पांडु पुत्र अर्जुन के वंशजों ने जंगल में इस मंदिर का निर्माण कराया था.

कहा जाता है कि पांडु पुत्र अर्जुन के वंशज कृतपाल तोमर किसी रोज शिकार करने के बाद रात्रि विश्राम के बाद इन घने वृक्षों से घिरे जंगल में रुके थे. कृतपाल तोमर को तब स्वप्न में साक्षात मां दुर्गा ने दर्शन दिए थे. सपने में उन्हें मां दुर्गा ने अपनी उपस्थिति वहां होने का संकेत दिया था. इसके बाद कृतपाल तोमर ने वहां स्वयं प्रकट हुई मां दुर्गा की मूर्ति को स्थापित कराया था. उन्होंने बताया कि करीब 1000 साल पुराने इस मंदिर परिसर में कई वृक्ष और पौधे लगे हैं. इनमें कई पेड़ तो औषधीय गुणों से युक्त हैं. यहां कई वृक्षों की आयु तो 100 वर्ष से भी अधिक है. जब मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया तो यहां वृक्षों को काटने के बजाय उनका जीर्णोद्धार कराया गया.

साध्वी बताती हैं कि इस घने जंगल में स्थापित स्वयंभू मां दुर्गा के मंदिर परिसर में हजारों वृक्ष लगे हैं. कोई भी किसी भी वृक्ष से एक पत्ता नहीं तोड़ सकता है. जिस किसी ने भी इस जंगल से टहनी तोड़ने की कोशिश की उसके परिवार को संकट सहना पड़ा. ऐसे लोगों के साथ कोई न कोई दुर्घटना घटी है. ऐसी कई घटनाएं हैं.

विशेष पूजा के बाद ही तोड़ सकते पत्ते
महंत कर्दम मुनि कहती हैं कि अगर किसी को यहां मौजूद औषधीय वृक्षों में से कोई आवश्यकता होती है तो पहले मां दुर्गा के मंदिर में माथा टेककर पूजा अर्चना करे फिर पत्ता तोड़े. इससे वह संकट में नहीं पड़ता है.

ग्रामीण भी करते हैं सुरक्षा
बढ़ला कैथवाडा गांव के पूर्व प्रधान धर्मपाल ने बताया कि ऐसी तमाम घटनाएं हुई हैं, जब लोगों ने यहां के पेड़ों को क्षति पहुंचाने की कोशिश की और उनके परिवारों के साथ अनिष्ट हुआ है. वहीं, बढ़ला कैथवाड़ा गांव के कुंवरपाल बताते हैं कि यहां स्थित मां दुर्गा के मंदिर में 12 गांव की एक खास कम्युनिटी के लोगों की आस्था है. ये ग्रामीण ही मिलकर इस जंगल की सुरक्षा करते हैं. यहां सभी पूजा-अर्चना करने आते हैं.

डीएफओ बोले, वन विभाग भी योजना बना रहा
डीएफओ राजेश कुमार ने बताया कि उन्हें भी इस घने वृक्षों वाले जंगल की जानकारी हुई. ऐसे जंगल बेहद कम मिलते हैं जहां अधिक वृक्ष हो और खूब हरियाली हो. पता चला कि आसपास के 12 गांवों के ग्रामीणों की इस मंदिर में आस्था है. यहां जंगल को सुरक्षित रखा जाता है, वाकई यह प्रयास शानदार है. उन्होंने कहा कि इस जंगल को सुरक्षित रखने के लिए वन विभाग भी योजना बना रहा है.


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मेरठः जिले में एक ऐसा घना जंगल है जहां किसी भी पेड़ की साख और पत्ता कोई नहीं तोड़ सकता है. इसके लिए मंदिर से आज्ञा लेनी पड़ती है. इस जंगल की रखवाली 12 गांवों के लोग करते हैं.

मेरठ में आस्था का बड़ा केंद्र है यह दुर्गा मंदिर.

इस घने जंगल में एक दुर्गा मंदिर है. इस मंदिर की महंत कर्दम मुनि महाराज हैं. उन्होंने बाल्यकाल से ही वैराग्य धारण कर लिया था और वह इसी मंदिर में निवास करती हैं. उन्होंने बताया कि पांडु पुत्र अर्जुन के वंशजों ने जंगल में इस मंदिर का निर्माण कराया था.

कहा जाता है कि पांडु पुत्र अर्जुन के वंशज कृतपाल तोमर किसी रोज शिकार करने के बाद रात्रि विश्राम के बाद इन घने वृक्षों से घिरे जंगल में रुके थे. कृतपाल तोमर को तब स्वप्न में साक्षात मां दुर्गा ने दर्शन दिए थे. सपने में उन्हें मां दुर्गा ने अपनी उपस्थिति वहां होने का संकेत दिया था. इसके बाद कृतपाल तोमर ने वहां स्वयं प्रकट हुई मां दुर्गा की मूर्ति को स्थापित कराया था. उन्होंने बताया कि करीब 1000 साल पुराने इस मंदिर परिसर में कई वृक्ष और पौधे लगे हैं. इनमें कई पेड़ तो औषधीय गुणों से युक्त हैं. यहां कई वृक्षों की आयु तो 100 वर्ष से भी अधिक है. जब मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया तो यहां वृक्षों को काटने के बजाय उनका जीर्णोद्धार कराया गया.

साध्वी बताती हैं कि इस घने जंगल में स्थापित स्वयंभू मां दुर्गा के मंदिर परिसर में हजारों वृक्ष लगे हैं. कोई भी किसी भी वृक्ष से एक पत्ता नहीं तोड़ सकता है. जिस किसी ने भी इस जंगल से टहनी तोड़ने की कोशिश की उसके परिवार को संकट सहना पड़ा. ऐसे लोगों के साथ कोई न कोई दुर्घटना घटी है. ऐसी कई घटनाएं हैं.

विशेष पूजा के बाद ही तोड़ सकते पत्ते
महंत कर्दम मुनि कहती हैं कि अगर किसी को यहां मौजूद औषधीय वृक्षों में से कोई आवश्यकता होती है तो पहले मां दुर्गा के मंदिर में माथा टेककर पूजा अर्चना करे फिर पत्ता तोड़े. इससे वह संकट में नहीं पड़ता है.

ग्रामीण भी करते हैं सुरक्षा
बढ़ला कैथवाडा गांव के पूर्व प्रधान धर्मपाल ने बताया कि ऐसी तमाम घटनाएं हुई हैं, जब लोगों ने यहां के पेड़ों को क्षति पहुंचाने की कोशिश की और उनके परिवारों के साथ अनिष्ट हुआ है. वहीं, बढ़ला कैथवाड़ा गांव के कुंवरपाल बताते हैं कि यहां स्थित मां दुर्गा के मंदिर में 12 गांव की एक खास कम्युनिटी के लोगों की आस्था है. ये ग्रामीण ही मिलकर इस जंगल की सुरक्षा करते हैं. यहां सभी पूजा-अर्चना करने आते हैं.

डीएफओ बोले, वन विभाग भी योजना बना रहा
डीएफओ राजेश कुमार ने बताया कि उन्हें भी इस घने वृक्षों वाले जंगल की जानकारी हुई. ऐसे जंगल बेहद कम मिलते हैं जहां अधिक वृक्ष हो और खूब हरियाली हो. पता चला कि आसपास के 12 गांवों के ग्रामीणों की इस मंदिर में आस्था है. यहां जंगल को सुरक्षित रखा जाता है, वाकई यह प्रयास शानदार है. उन्होंने कहा कि इस जंगल को सुरक्षित रखने के लिए वन विभाग भी योजना बना रहा है.


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