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मलियाना नरसंहार मामले में 35 साल बाद सभी आरोपी बरी, ईटीवी भारत पर झलका संघर्ष का दर्द

23 मई 1987 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ के मलियाना में हुए नरसंहार मामले में शनिवार को कोर्ट ने 35 साल बाद फैसला सुनाते हुए 40 लोगों को बरी कर दिया. कानूनी जंग लड़ते-लड़ते युवा से बुजुर्गियत की दहलीज पर पहुंचे लोगों ने ईटीवी भारत से अपने जीवन के कानूनी और व्यक्तिगत संघर्ष की दास्तां साझा की.

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Published : Apr 3, 2023, 12:28 PM IST

Updated : Apr 3, 2023, 1:43 PM IST

मलियाना नरसंहार मामले में 35 साल बाद सभी आरोपी बरी, ईटीवी भारत पर झलका संघर्ष का दर्द.

मेरठ : 14 अप्रैल 1987 को मेरठ में सांप्रदायिक दंगे हुए थे. यह वह दिन था जिस दिन शब-ए-बारात के दिन मेरठ में दंगे हुए और इन दंगों में 12 लोगों की जान गई. हालांकि शहर में एहतियात के तौर पर तब कर्फ्यू लगाया गया, तनाव बरकरार था. इसी बीच आपसी मतभेद और गुस्से का गुबार ऐसा फूटा की मेरठ में तक रुक-रुक कर दंगे हुए. इसी बीच मई में 22 तारीख को हाशिमपुरा में 42 लोगों की हत्या कर दी गई. इसके बाद 23 मई को हाशिमपुरा से करीब 7 किलोमीटर दूर मलियाना में हिंसा भड़क गई और मलियाना जल उठा था. इसमें 72 जान गई थी. गौर करने वाली बात यह है कि इस नरसंहार में शनिवार को आए फैसले में किसी भी आरोपी को कोई सजा नहीं हुई. करीब 420 महीने में सुनवाई के लिए 800 से ज्यादा तारीखें लगीं.

ईटीवी भारत से बरी हुए लोगों ने बताया कि कोर्ट कचहरी के चक्कर ही काटते काटते यह अहसास ही नहीं हुआ कि कब वे युवा अवस्था से प्रौढ़ता की दहलीज पर पहुंच गए. 35 साल दस महीने के बाद अदालत से बरी हुए ताराचन्द कहते हैं कि उन्हें सिर्फ इतना पता है कि उन्हें झूठा फंसाया गया था. वह कहते हैं कि उस रोज हम खेतों पर काम कर रहे थे. दंगों के बाद 2 महीने तक तो हम लोग जंगलों में दर-बदर भटकते रहे. हमारे घरों में लोगों ने आग लगा दी थी. हमारे और मुस्लिम भाइयों के घर आपास में मिले हुए थे.


सुनील कुमार कहते हैं कि उस वक्त उनकी उम्र करीब 17 से 18 साल थी और 38 साल तक इसी मुकदमे में उलझे रहे. हम पहले भी गांव में भाईचारा बनाकर रहते थे. हमारा आज भी हमारा सबके घर आना जाना है. राकेश कहते हैं कि उस वक्त बहुत छोटे थे. मुृकदमे में फंसे तो समझ नहीं आया कि आरोप काफी गंभीर हैं. थोड़ा बड़े हुए तो समझ आया कि आरोप बेहद गंभीर हैं. इसके बाद जीवन यापन के लिए जो कमाते थे वह अदालत की तारीखों में खर्च हो जाता था. इसके अलावा इस घटना से वर्षों पहले मर चुके लोगों को भी पुलिस ने आरोपी बनाया था. उस दौरान 93 लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए थे.


ब्रह्मपाल ने बताया कि हमें परेशानी तो बहुत हुई. काफी कठिनाइयां झेली हैं, लेकिन अब इंसाफ मिल गया है, बरी होने से सन्तुष्ट हैं. गरीबदास कहते हैं कि बहुत ही कठिनाइयों का दौर झेलना पड़ा. खेतों में रहे जंगलों में रहे और अपमान सहते रहे. हालांकि गांव में सभी से पहले भी भाईचारा था और अब भी बरकरार है. इसी तरह से मुकदमा झेलने वालों में दयाचंद, जुगलकिशोर कहते हैं कि उन्हें सन्तोष इस बात का है कि जो बदनामी का क्रूर दाग उन पर लगा था. अब धुल गया है. गौरतलब है कि कोर्ट ने साक्ष्यों के अभाव में शनिवार को फैसला सुनाते हुए हिंसा के 40 आरोपियों को बेगुनाह मानते हुए बरी कर दिया था.



यह भी पढ़ें : पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में गरज चमक के साथ बारिश का अलर्ट

मलियाना नरसंहार मामले में 35 साल बाद सभी आरोपी बरी, ईटीवी भारत पर झलका संघर्ष का दर्द.

मेरठ : 14 अप्रैल 1987 को मेरठ में सांप्रदायिक दंगे हुए थे. यह वह दिन था जिस दिन शब-ए-बारात के दिन मेरठ में दंगे हुए और इन दंगों में 12 लोगों की जान गई. हालांकि शहर में एहतियात के तौर पर तब कर्फ्यू लगाया गया, तनाव बरकरार था. इसी बीच आपसी मतभेद और गुस्से का गुबार ऐसा फूटा की मेरठ में तक रुक-रुक कर दंगे हुए. इसी बीच मई में 22 तारीख को हाशिमपुरा में 42 लोगों की हत्या कर दी गई. इसके बाद 23 मई को हाशिमपुरा से करीब 7 किलोमीटर दूर मलियाना में हिंसा भड़क गई और मलियाना जल उठा था. इसमें 72 जान गई थी. गौर करने वाली बात यह है कि इस नरसंहार में शनिवार को आए फैसले में किसी भी आरोपी को कोई सजा नहीं हुई. करीब 420 महीने में सुनवाई के लिए 800 से ज्यादा तारीखें लगीं.

ईटीवी भारत से बरी हुए लोगों ने बताया कि कोर्ट कचहरी के चक्कर ही काटते काटते यह अहसास ही नहीं हुआ कि कब वे युवा अवस्था से प्रौढ़ता की दहलीज पर पहुंच गए. 35 साल दस महीने के बाद अदालत से बरी हुए ताराचन्द कहते हैं कि उन्हें सिर्फ इतना पता है कि उन्हें झूठा फंसाया गया था. वह कहते हैं कि उस रोज हम खेतों पर काम कर रहे थे. दंगों के बाद 2 महीने तक तो हम लोग जंगलों में दर-बदर भटकते रहे. हमारे घरों में लोगों ने आग लगा दी थी. हमारे और मुस्लिम भाइयों के घर आपास में मिले हुए थे.


सुनील कुमार कहते हैं कि उस वक्त उनकी उम्र करीब 17 से 18 साल थी और 38 साल तक इसी मुकदमे में उलझे रहे. हम पहले भी गांव में भाईचारा बनाकर रहते थे. हमारा आज भी हमारा सबके घर आना जाना है. राकेश कहते हैं कि उस वक्त बहुत छोटे थे. मुृकदमे में फंसे तो समझ नहीं आया कि आरोप काफी गंभीर हैं. थोड़ा बड़े हुए तो समझ आया कि आरोप बेहद गंभीर हैं. इसके बाद जीवन यापन के लिए जो कमाते थे वह अदालत की तारीखों में खर्च हो जाता था. इसके अलावा इस घटना से वर्षों पहले मर चुके लोगों को भी पुलिस ने आरोपी बनाया था. उस दौरान 93 लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए थे.


ब्रह्मपाल ने बताया कि हमें परेशानी तो बहुत हुई. काफी कठिनाइयां झेली हैं, लेकिन अब इंसाफ मिल गया है, बरी होने से सन्तुष्ट हैं. गरीबदास कहते हैं कि बहुत ही कठिनाइयों का दौर झेलना पड़ा. खेतों में रहे जंगलों में रहे और अपमान सहते रहे. हालांकि गांव में सभी से पहले भी भाईचारा था और अब भी बरकरार है. इसी तरह से मुकदमा झेलने वालों में दयाचंद, जुगलकिशोर कहते हैं कि उन्हें सन्तोष इस बात का है कि जो बदनामी का क्रूर दाग उन पर लगा था. अब धुल गया है. गौरतलब है कि कोर्ट ने साक्ष्यों के अभाव में शनिवार को फैसला सुनाते हुए हिंसा के 40 आरोपियों को बेगुनाह मानते हुए बरी कर दिया था.



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Last Updated : Apr 3, 2023, 1:43 PM IST
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