मेरठः विलुप्तप्राय गिद्ध की संख्या लगातार घटती ही जा रही है. यूपी के कई इलाकों में तो अब गिद्ध दिखाई भी नहीं देते. एक तरफ राज्य सरकारों ने रहे गिद्धों को संरक्षित करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं, तो वहीं केंद्र सरकार ने भी अब गिद्धों को संजीवनी देने का फैसला लिया है. गिद्ध संरक्षण के लिए सरकार ने गजट जारी कर कुछ दवाओं को प्रतिबंध किया है. इसके पालन के लिए यूपी के अफसरों को भी पत्र जारी किया गया है.
दरअसल, गिद्धों को पर्यावरण के सच्चे प्राकृतिक सफाईकर्मी के तौर पर जाना जाता है. लेकिन, इनके तेजी से विलुप्त होने को लेकर सरकार और पक्षी प्रेमियों में चिंता बना हुई है. लेकिन, केंद्र सरकार ने एक शोध के बाद जुलाई के आखिर में जानवरों के उपयोग के लिए केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनाक दवाओं और उनके फॉर्मूलेशन की बिक्री, निर्माण और वितरण पर प्रतिबंध लगा दिया है. शोध के मुताबिक गिद्ध के लिए केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनाक मवेशियों के लिए हानिकारक दवा मानी गई है. ऐसे में शोध में बताया गया कि जब कोई गिद्ध उन जानवरों के शवों को खाते हैं, जिन्हें ये दवाएं दी गई थीं, तो वो भी मर सकते हैं.
प्रदेश सरकार ने भारत सरकार की तरफ से जारी नोटिफिकेशन को जिला मुख्यालयों पर संबंधित विभागों को भेज दिया है. डीएफओ राजेश कुमार ने बताया कि यह बहुत ही अच्छी पहल की गई है, सरकार ने गजट नोटिफिकेशन में ड्रग एवं कॉस्मेटिक्स एक्ट में केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनाक को प्रतिबंधित कर दिया है. ये वे दवाएं हैं, जो कि पशुपालन विभाग के चिकित्सक पशुओं के उपचार के दौरान इस्तेमाल करते हैं. अब इनके निर्माण और बिक्री पर तत्काल प्रतिबंध लगा दिया गया है.
गिद्धों की संख्या बढ़ने की उम्मीदः डीएफओ ने बताया कि इसका सर्वाधिक असर गिद्धों पर पड़ा है. इसको देखते हुए ही यह आदेश दिया गया है. उम्मीद है कि अगर आदेश का पालन ठीक से हुआ तो निश्चित ही गिद्धों की जो संख्या लुप्त होने के कगार पर आ गई थी उसमें इजाफा होगा.
गिद्ध बचाने के लिए चलेंगे जागरूकता कार्यक्रमः डीएफओ ने बताया कि इस बारे में प्रचार-प्रसार के माध्यम से लोगों को जागरूक करेंगे, ताकि इन दवाइयों का इस्तेमाल न हो. जो इको सिस्टम का बिगड़ रहा था. पशुपालन विभाग और जिला प्रशासन के साथ समन्वय स्थापित करते हुए इसको लेकर व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार के माध्यम से लागू कराने की कोशिश करेंगे. ताकि, सरकार की जो मंशा है कि जो दवाइयां प्रतिबंधित की गई हैं. उनकी किसी भी रूप में बिक्री न हो और गिद्ध की घटती संख्या को फिर से बढ़ा सकें.
गिद्ध माने जाते हैं सफाईकर्मचारीः गौरतलब है कि गिद्ध मृत प्राणियों के अवशेषों को खाकर पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखने में बेहद ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं. इस प्रकार ये अप्रतक्ष्य रूप से मनुष्यों की सहायता करते हैं. गिद्धों के बारे में प्रचलित है कि ये कई तरह की गंभीर संक्रामक बीमारियों से ये मनुष्यों की सुरक्षा करते हैं. पुराने जमाने में ये गिद्ध एक अच्छे सफाई कर्मचारी के रूप में हुआ करते थे, जिससे बहुत सी बिमारियों और रोगों से सभी लोग बचे रहते थे.
दर्द निवारक के रूप में दी है दवाः मेरठ के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी अखिलेश कुमार गर्ग ने बताया कि गिद्ध संरक्षण के लिए केंद्र सरकार ने जानवरों के उपयोग के लिए केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनाक दवाओं और उनके फॉर्मूलेशन की बिक्री, निर्माण और वितरण पर प्रतिबंध लगाकर गिद्ध संरक्षण के लिए अच्छी पहल की है. वह बताते हैं कि केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनाक मवेशियों के लिए सूजन रोधी तथा दर्द निवारक दवा के रूप में दी जाती है. शोध में भी यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि ऐसे मरे हुए मवेशियों के शव जब गिद्ध खाते हैं, जिन्हें ये दो दवाएं दी गई होती हैं, तो वे भी मर सकते हैं.
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