मेरठ में बनती हैं 500 तरह की कैंची. मेरठ : पश्चिमी यूपी के मेरठ में कैंची दशकों से बन रही है. यहां की कैंची की डिमांड पूरे देश में थी. वक्त के साथ कैंची कारोबार में उतार चढ़ाव भी आए, मगर आज भी मेरठ के गुदड़ी बाजार की तंग गलियों में घरों में लोग कैंची बनाते दिख जाते हैं. कैंची निर्माता मोहम्मद इरफान ने बताया कि पहले वे सिर्फ कैंची बनाते थे, डिमांड और कारोबार में कमी के बाद कटलरी भी बनाना शुरू कर दिया है.
मेरठ के गुदड़ी बाजार इलाके के घरों में लोग कैंची बनाने के काम से जुड़े हैं. इरफान बताते हैं कि 1955 से उनका परिवार कैंची बनाता आ रहा है. उनके दादा ने पहले लकड़ी की कटलरी बनाई थी. अब उनका कुनबा कैंची के साथ साथ कटिलरी भी बना रहा है. मेरठ के कैंची क्लस्टर के उपाध्यक्ष शरीफ अहमद ने बताया कि मेरठ की कैंची का इतिहास साढ़े तीन सौ साल पुराना है. यहीं से उनके पूर्वजों ने कैंची की शुरुआत की थी. फिलहाल सातवीं पीढ़ी इस कैंची उद्योग से जुड़ी है. मेरठ जिले के करीब 25 से 30 हजार लोग कैंची इंडस्ट्री से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हैं.
मेरठ जिले में कैंची बनाने वाली 225 से ज्यादा इकाइयां काम कर रही हैं शरीफ अहमद के मुताबिक मेरठ जिले में कैंची बनाने वाली 225 से ज्यादा इकाइयां काम कर रही हैं. चीनी प्रोडक्ट की सेंधमारी के बाद मेरठ की कैंची में बदलाव आया है. कैंचियों के मॉडल्स और मैटीरियल में भी बदलाव आया है. चीनी प्रोडक्ट के कारण देश के कैंची बाजार में प्रभाव पड़ा है. उन्होंने बताया कि मेरठ के कैंची कारोबारियों ने भी चीन से हुए नुकसान से उबरने के लिए प्रयास किए हैं. सरकार की क्लस्टर योजना भी चल रही है. भरोसा है कि आने वाले समय में अपनी विरासत को संभालकर चीन को पीछे करेंगे. शरीफ बताते के अनुसार, कारोबारी चाहते हैं कि मेरठ की कैंची इंडस्ट्री को सरकार की ODOP स्कीम में शामिल कर लिया जाए. ODOP के तहत मेरठ की स्पोर्ट्स इंडस्ट्री को फायदा मिल रहा है. ऐसा फायदा कैंची इंडस्ट्री को भी मिलना चाहिए. अगर ऐसा होता है तो उसका फायदा छोटे व्यापारी और छोटे कारोबारियों को भी मिलेगा. वे मैन्युफैक्चरिंग में बड़े लेवल पर आ जाएंगे.
मेरठ में करीब 500 तरह की कैंचियां बनती हैं : मेरठ में अभी 500 तरह की कैंचियां मेरठ में बन रही हैं . यहां 50 पैसे से लेकर एक हजार रुपये कीमत तक की कैंचियां यहां तैयार हो रही हैं. कैंची का मार्केट पूरे भारत में है और यह विदेशों में एक्सपोर्ट भी हो रही हैं. हालांकि मेरठ से अभी indirect way में कैंचियों का निर्यात किया जा रहा है. मेरठ की कैंची बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यंमार, सऊदी अरब तक मेरठ की कैंची जा रही है.
कोरोना काल में ऊंचाइयां छू गया था कैंची उद्योग : कोरोना काल में मेरठ का कैंची उद्योग सौ गुना तक बढ़ गया था, क्योंकि उस वक्त चाइना से आने वाले माल पर प्रतिबंध लगा था. शरीफ अहमद मानते हैं कि अगर चीन से आने वाली कैंची पर प्रतिबंध लग जाता है तो मेरठ की कैंची का व्यापार बहुत ऊंचे लेवल पर पहुंच जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो 70 करोड़ सालाना के टर्नओवर वाली कैंची इंडस्ट्री तीन सौ करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगी.
कैंची कारोबार से लगातार जुड़ रहे लोग : शरीफ बताते हैं कि कैंची बनाना रेगुलर अर्निंग से जुड़ा काम है. कैंची के कारीगर कभी खाली नहीं बैठते हैं. करीब 50 साल पहले जहां 40 से 50 इंडस्ट्री हुआ करती थीं, अभी करीब सवा तीन सौ से अधिक मेरठ में हो गई हैं. इस सेक्टर में भी अब नई तकनीक आ गई है. पहले हाथ से ग्राइंडिंग का काम हुआ करता था, वह अब मशीनों पर आ रहा है. कुछ रॉ मेटीरियल चेंज हुए हैं. कुछ फोर्जिंग यूनिट्स आई हैं और डाई पर अब वर्क शुरू हो गया है.उपायुक्त उद्योग दीपेंद्र कुमार कहते हैं मेरठ के कैंची उद्योग को जीआई टैग भी मिला हुआ है. हम लोग विभागीय योजनाओं का का लाभ देने की कोशिश करते हैं. प्रमोशन के लिए जी आई पेवलियन, जीआई महोत्सव आयोजित करते हैं, जिनमें मेरठ के कैंची निर्माता पार्टिसिपेट करते हैं.
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