मेरठ: उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में बड़े पैमाने पर किताबें छापी जाती हैं. ये किताबें न सिर्फ देशभर में बल्कि देश के बाहर भी जाती हैं. इस वर्ष कम से कम 25 फिसदी तक किताबों की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है. इसका असर हर परिवार पर पड़ रहा है. इसकी वजह से प्रकाशक परेशानी में हैं. जबकि पेपर मिलें अपना मुनाफा देख रही हैं. सरकार की तरफ पब्लिशिंग हाउस उम्मीद से देख रहे हैं कि शायद उनकी सुध ली जाए.
पुस्तकों में 25 फीसदी की वृद्धि
देश के मार्केट में समय के साथ-साथ तमाम उतार चढ़ाव होते रहते हैं. लेकिन कुछ आवश्यक उपयोग की चीजों के मूल्य में होने वाली वृद्धि आमजन को अधिक प्रभावित करती है. आज हम बात कर रहे हैं. दुनिया में किसी भी जीवन में प्रकाश फैलाने वाली पुस्तकों की. फिर चाहे वह पुस्तकें नर्सरी में पढ़ने वाले छात्रों के उपयोग की हों चाहे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों से संबंधित हों या फिर प्रतियोगी परीक्षाओं से जुडी या अन्य ज्ञान वर्धक पुस्तकें हों. पिछले एक साल में किताब उद्योग ने आम आदमी की जेब पर सीधा असर डाला है. एक ही साल में पुस्तकों के मूल्य में कम से 25 फीसदी तक वृद्धि हुई है. इस खबर ने उन विषयों को समझने की कोशिश की है जिन कारणों से किताबों की कीमत सातवें आसमान पर हैं.
कोरोना से बढ़ी महंगाई
शहर में अलग-अलग पब्लिशिंग हाउस चलाने वाले मालिकों से ईटीवी संवाददाता ने बात की. जहां मास्टरमाइंड पब्लिकेशन के डायरेक्टर निश्छल रस्तोगी ने बताया कि पहले देश में कोरोना की वजह से स्कूल बंद चल रहे थे. इस कारण किताबें नहीं बिकने की वजह से पब्लिशिंग हाउस को काफी नुकसान हुआ था. उन्होंने बताया कि धीरे-धीरे सब काम पटरी पर आ ही रहा था. इसी दौरान रूस-यूक्रेन युद्ध ने पब्लिशिंग हाउस के लिए आग में घी डालने का काम कर दिया. जिसका काफी असर पब्लिशिंग हाउस पर पड़ा. पब्लिशिंग हाउस में 2 साल से कागज भी नहीं आ रहा है. उन्होंने बताया कि पिछले सत्र में कागज मूल्य बढ़ने की वजह से मूल्य तेजी से बढ़ गए. किताबों में मुख्य कीमत काजग की होती है. जिसकी वजह से किताबों का मूल्य बढ़ना मजबूरी हो गया है.
जीएसटी हटने से मिलेगी राहत
शिक्षा प्रकाशन के एमडी नफीस खान ने बताया कि पब्लिशिंग हाउस मालिकों ने अपने मुनाफे को कम किया है. कागज की कमी को महंगाई बढ़ने का सबसे प्रमुख कारण माना जा रहा है. वहीं, कोरोना के बाद कुछ हद तक ऑनलाइन माध्यम की वजह किताबों की डिमांड भी घटी है. जो कागज का रिम करीब 1200 से 1300 रूपये का मिलता था. आज उसकी कीमत करीब 1900 रूपये तक पहुंच गई है. हर चीज पर निर्माता जीएसटी दे रहे हैं. सरकार अगर GST में छूट दे तो कीमतें कंट्रोल की जा सकती हैं. पब्लिशर्स मानते हैं कि रॉ मेटिरियल में जीएसटी हटे तो राहत मिल सकती है.
सप्लाई कम और डिमांड ज्यादा
रस्तोगी पब्लिकेशन के एमडी वैभव ने बताया कि कोविड के दौरान जो बैन इम्पोर्टेड कागज पर लगाया गया था. उसके बाद से समस्या बढ़ती जा रही है, क्योंकि सप्लाई दोनों तरफ से कम और डिमांड ज्यादा है. उन्होंने बताया कि पहले पेपर मिल से क्रेडिट मिल जाती थी. अब वह खत्म हो गई है. अब एडवांस करने पर ही पेपर आता है. जिसका खर्च भी बढ़ गया है. इसके अलावा आस-पास और कोई पेपर मिल ने होने की वजह से इसका कोई समाधान भी नहीं है.
बाहर निर्यात कर कमाने में लगे हैं मालिक
वहीं, निजी प्रकाशकों ने बताया कि सरकार पेपर का एक्सपोर्ट अधिक करा रही है. जिसका असर किताब, कॉपियों पर सर्वाधिक पड़ रहा है. युद्ध के कारण पहले से ही पर्याप्त पेपर मिलने में समस्या हो रही थी. वहीं, देश के पेपर मिल मालिकों को भी विदेशी बाजार अधिक प्रभावित कर रहा है. क्योंकि देश में कागज पर जीएसटी है और पब्लिशिंग हाउसेज को पेपर खरीदने के लिए भी टैक्स देने होते हैं. पेपर मिलें अन्य देशों को पेपर की सप्लाई करने में मोटा मुनाफा कमा रही हैं. देश को विदेशी मुद्रा मिल रही है. पेपर मिल मालिकों के लालच ने इस संकट को बढ़ा दिया है. इन्हीं कारणों से पेपर इंडस्ट्री में कच्चे माल की भी शॉर्टेज की समस्या पैदा हो रही है.
मजदूरी और प्रिटिंग कॉस्ट बढ़ी
मेरठ स्टेशनरी एसोसिएशन के सचिव संजय ने बताया कि पेपर की कमी से लेकर लेबर की कमी और उसी तरह डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी समेत कुछ और भी ऐसे महत्वपूर्ण कारण हैं. जिसके कारण प्रिटिंग कॉस्ट बढ़ गई है. इसके साथ ही लेबर की मजदूरी भी महंगाई के चलते बढ़ी है. वहीं, पेपर के रेट में हुई बढ़ोत्तरी के कारण किताबें मंहगी हुई हैं.
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