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मऊ: दुग्ध उत्पादन से बढ़ी आर्थिक आत्मनिर्भरता - मऊ में डेयरी फार्म का संचालन

उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में स्थित है नंदिनी गोधाम, जहां लगभग सौ गायों का एक डेयरी फार्म संचालित है. रोजाना यहां 250 से 300 लीटर दूध का उत्पादन होता है. यहां दूध के साथ-साथ दूध से बनने वाले खाद्य पदार्थों को भी बनाया जाता है. इसके साथ ही गोबर और गोमूत्र का इस्तेमाल आर्गेनिक किसानी के लिए किया जाता है.

दुग्ध उत्पादन से बढ़ी आर्थिक आत्मनिर्भरता
दुग्ध उत्पादन से बढ़ी आर्थिक आत्मनिर्भरता
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Published : Jul 19, 2020, 6:42 PM IST

मऊ: दुग्ध उत्पादन से जुड़े पशुपालक बाजार में दूध के उचित दाम नहीं मिलने से अक्सर परेशान रहते हैं. वहीं दूध को व्यापारी डेयरी फार्म के मनमानी रेट पर बेचने को मजबूर होते हैं, क्योंकि कच्चा माल होने के चलते दूध कुछ ही घंटों में खराब हो जाता है.

इन्ही सब परेशानियों को झेलने के बाद जिले के बस्ती गांव स्थित नंदिनी गोधाम में दुग्ध उत्पाद को विभिन्न तरीके से सीधे ग्राहकों तक पहुंचाने का मॉडल अपनाया. इस माध्यम से दूध सीधे ग्राहकों तक पहुंच रहा है, जिससे ग्राहक और किसान दोनों को लाभ हो रहा है. किसान को दूध का अच्छा दाम मिल रहा है, वहीं ग्राहक को शुद्ध और गुणवत्तापूर्ण दुग्ध उत्पाद मिल रहा है.

जिले के बस्ती गांव में संचालित दूध डेयरी

नंदिनी गोधाम में संचालित डेयरी फार्म

बस्ती गांव स्थित नंदिनी गोधाम में सौ गायों का डेयरी फार्म स्थापित है. यहां पर 250 से 300 लीटर दूध रोजाना उत्पादन होता है, जिसको शहर क्षेत्र में सीधे ग्राहकों को बेचा जाता है. वहीं बचे दूध से डेयरी संचालक पनीर, रसगुल्ला, गुलाब जामुन और दही बनाकर डेयरी फार्म पर बेचते हैं. शहर से 15 किमी की दूरी होने के बावजूद भी यहां ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है. ग्राहकों को सीधे उत्पाद बेचने पर अच्छी खासी कमाई हो जाती है, जिससे पशुपालन लाभकारी जीविकोपार्जन का साधन बन गया है.

कामधेनु योजना के तहत स्थापित गोशाला

गोधाम संचालक शैलेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि पांच वर्ष पूर्व मैंने उत्तर प्रदेश कामधेनु योजना के तहत इस गोशाला को स्थापित किया था. शुरुआती दौर में दूध का उत्पादन होता था तो उसे मिठाई की दुकान, पराग डेयरी और कामधेनु डेयरी फार्म पर बेचते थे, जहां पर दूध का सही दाम नहीं मिलता था, जिससे खर्च तक निकलना कठिन हो गया था. हालात यह थे कि चार से पांच लाख महीने का खर्च आता था और दूध बेचकर 2 लाख रुपए की कमाई करना कठिन हो गया था. दो वर्ष तक लगातार नुकसान होता रहा. इसके बाद फिर आइडिया आया कि क्यों न खुद सीधे ग्राहकों को दूध बेचा जाय. इसी मॉडल को अपनाते हुए मैंने शहर के लोगों को सीधे दूध और पनीर बेचना शुरू किया. शुद्ध और गुणवत्तापूर्ण होने के चलते ग्राहकों का आकर्षण बढ़ाता गया. बिचौलियों को दूर किया तो मुझे फायदा हुआ और ग्राहकों को भी. ग्राहकों का रुझान देख पनीर, रसगुल्ला, दही, पेड़ा का बनना शुरू कर दिया, जिसकी मांग खूब है.

गुणवत्ता और शुद्धता ने बढ़ाया ग्राहकों का आकर्षण
नंदिनी गोधाम मऊ शहर से 15 किमी दूर बस्ती गांव में स्थित है. ग्रामीण क्षेत्र में स्थापित होने के बावजूद शहर के लोगों का आकर्षण यहां बढ़ रहा है. शहर के लोग मिठाई , पनीर और दूध की खरीदारी करने गांव में आ रहे हैं.

शहर से पनीर लेने आए धीरेंद्र ने बताया कि यहां पर शुद्ध मिठाई, पनीर मिलता है, जिसके लिए हम लोग शहर से गांव में लेने आते हैं. धीरेंद्र ने बताया कि शहर में जो मिठाई या दूध मिलता है, उसकी गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं रहती है. वहीं इस समय इतने रोग फैल रहे हैं, जिसको देखते हुए सभी शुद्ध सामान खाना पसन्द कर रहे हैं. ऐसे में अगर शहर से दूर गुणवत्तापूर्ण मिठाई, पनीर मिल रहा है तो खरीदने में कोई परेशानी नहीं. यहां पर बाजार मूल्य से अधिक दाम पर सामान मिलता है फिर भी हम लोग खरीदारी करते हैं.

पशुपालन से ग्रामीण अर्थ व्यवस्था में सुधार
नंदिनी गोधाम संचालक शैलेंद्र सिंह ने बताया कि पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मूल आधार है. इससे जहां दूध का उत्पादन होता है, वहीं जैविक कृषि करके रसायन रहित अन्न उपजा सकते हैं. वर्तमान समय में किसान को उत्पादन का उचित दाम नहीं मिलने से अक्सर निराशा छाई रहती है. दूध के उत्पादन में 20 से 25 रुपए का खर्च है. ऐसे में दूधिया जिस दाम पर दूध खरीदता-बेचता है उससे पशुपालक और ग्राहक दोनों को नुकसान है. मैंने जो मॉडल अपनाया है, उससे गांव में रहकर रोजगारपरक किसानी और पशुपालन किया जा सकता है.

उन्होंने ने बताया कि मैंने दूध का दाम बाजार मूल्य से अधिक रखा है. बाजार में 30 से 35 रुपए लीटर दूध बिकता है. मैं 50 रुपए बेचता हूं, लेकिन गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं करता हूं. लोग मिठाई, पनीर, दूध गांव आकर खरीदते हैं.

गोबर का उपयोग

सौ गायों के होने से यहां पर अधिक मात्रा में गोबर निकलता है. इस गोबर को गैस प्लांट में घोला जाता है. इससे एकत्रित गैस से 30 केवीए का जनरेटर चलाया जाता है. वहीं बचे हुए गोबर से जैविक खाद का निर्माण किया जाता है. शैलेंद्र सिंह ने बताया कि इतनी बड़ी गोशाला से सभी उपकरण गोबर गैस से संचालित होते हैं. वहीं बचे गोबर से जैविक खेती की जा रही है, जिससे उपजे अन्न की भी मांग खूब है. ऐसे में गोशाला से लाभ ही लाभ है.

मऊ: दुग्ध उत्पादन से जुड़े पशुपालक बाजार में दूध के उचित दाम नहीं मिलने से अक्सर परेशान रहते हैं. वहीं दूध को व्यापारी डेयरी फार्म के मनमानी रेट पर बेचने को मजबूर होते हैं, क्योंकि कच्चा माल होने के चलते दूध कुछ ही घंटों में खराब हो जाता है.

इन्ही सब परेशानियों को झेलने के बाद जिले के बस्ती गांव स्थित नंदिनी गोधाम में दुग्ध उत्पाद को विभिन्न तरीके से सीधे ग्राहकों तक पहुंचाने का मॉडल अपनाया. इस माध्यम से दूध सीधे ग्राहकों तक पहुंच रहा है, जिससे ग्राहक और किसान दोनों को लाभ हो रहा है. किसान को दूध का अच्छा दाम मिल रहा है, वहीं ग्राहक को शुद्ध और गुणवत्तापूर्ण दुग्ध उत्पाद मिल रहा है.

जिले के बस्ती गांव में संचालित दूध डेयरी

नंदिनी गोधाम में संचालित डेयरी फार्म

बस्ती गांव स्थित नंदिनी गोधाम में सौ गायों का डेयरी फार्म स्थापित है. यहां पर 250 से 300 लीटर दूध रोजाना उत्पादन होता है, जिसको शहर क्षेत्र में सीधे ग्राहकों को बेचा जाता है. वहीं बचे दूध से डेयरी संचालक पनीर, रसगुल्ला, गुलाब जामुन और दही बनाकर डेयरी फार्म पर बेचते हैं. शहर से 15 किमी की दूरी होने के बावजूद भी यहां ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है. ग्राहकों को सीधे उत्पाद बेचने पर अच्छी खासी कमाई हो जाती है, जिससे पशुपालन लाभकारी जीविकोपार्जन का साधन बन गया है.

कामधेनु योजना के तहत स्थापित गोशाला

गोधाम संचालक शैलेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि पांच वर्ष पूर्व मैंने उत्तर प्रदेश कामधेनु योजना के तहत इस गोशाला को स्थापित किया था. शुरुआती दौर में दूध का उत्पादन होता था तो उसे मिठाई की दुकान, पराग डेयरी और कामधेनु डेयरी फार्म पर बेचते थे, जहां पर दूध का सही दाम नहीं मिलता था, जिससे खर्च तक निकलना कठिन हो गया था. हालात यह थे कि चार से पांच लाख महीने का खर्च आता था और दूध बेचकर 2 लाख रुपए की कमाई करना कठिन हो गया था. दो वर्ष तक लगातार नुकसान होता रहा. इसके बाद फिर आइडिया आया कि क्यों न खुद सीधे ग्राहकों को दूध बेचा जाय. इसी मॉडल को अपनाते हुए मैंने शहर के लोगों को सीधे दूध और पनीर बेचना शुरू किया. शुद्ध और गुणवत्तापूर्ण होने के चलते ग्राहकों का आकर्षण बढ़ाता गया. बिचौलियों को दूर किया तो मुझे फायदा हुआ और ग्राहकों को भी. ग्राहकों का रुझान देख पनीर, रसगुल्ला, दही, पेड़ा का बनना शुरू कर दिया, जिसकी मांग खूब है.

गुणवत्ता और शुद्धता ने बढ़ाया ग्राहकों का आकर्षण
नंदिनी गोधाम मऊ शहर से 15 किमी दूर बस्ती गांव में स्थित है. ग्रामीण क्षेत्र में स्थापित होने के बावजूद शहर के लोगों का आकर्षण यहां बढ़ रहा है. शहर के लोग मिठाई , पनीर और दूध की खरीदारी करने गांव में आ रहे हैं.

शहर से पनीर लेने आए धीरेंद्र ने बताया कि यहां पर शुद्ध मिठाई, पनीर मिलता है, जिसके लिए हम लोग शहर से गांव में लेने आते हैं. धीरेंद्र ने बताया कि शहर में जो मिठाई या दूध मिलता है, उसकी गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं रहती है. वहीं इस समय इतने रोग फैल रहे हैं, जिसको देखते हुए सभी शुद्ध सामान खाना पसन्द कर रहे हैं. ऐसे में अगर शहर से दूर गुणवत्तापूर्ण मिठाई, पनीर मिल रहा है तो खरीदने में कोई परेशानी नहीं. यहां पर बाजार मूल्य से अधिक दाम पर सामान मिलता है फिर भी हम लोग खरीदारी करते हैं.

पशुपालन से ग्रामीण अर्थ व्यवस्था में सुधार
नंदिनी गोधाम संचालक शैलेंद्र सिंह ने बताया कि पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मूल आधार है. इससे जहां दूध का उत्पादन होता है, वहीं जैविक कृषि करके रसायन रहित अन्न उपजा सकते हैं. वर्तमान समय में किसान को उत्पादन का उचित दाम नहीं मिलने से अक्सर निराशा छाई रहती है. दूध के उत्पादन में 20 से 25 रुपए का खर्च है. ऐसे में दूधिया जिस दाम पर दूध खरीदता-बेचता है उससे पशुपालक और ग्राहक दोनों को नुकसान है. मैंने जो मॉडल अपनाया है, उससे गांव में रहकर रोजगारपरक किसानी और पशुपालन किया जा सकता है.

उन्होंने ने बताया कि मैंने दूध का दाम बाजार मूल्य से अधिक रखा है. बाजार में 30 से 35 रुपए लीटर दूध बिकता है. मैं 50 रुपए बेचता हूं, लेकिन गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं करता हूं. लोग मिठाई, पनीर, दूध गांव आकर खरीदते हैं.

गोबर का उपयोग

सौ गायों के होने से यहां पर अधिक मात्रा में गोबर निकलता है. इस गोबर को गैस प्लांट में घोला जाता है. इससे एकत्रित गैस से 30 केवीए का जनरेटर चलाया जाता है. वहीं बचे हुए गोबर से जैविक खाद का निर्माण किया जाता है. शैलेंद्र सिंह ने बताया कि इतनी बड़ी गोशाला से सभी उपकरण गोबर गैस से संचालित होते हैं. वहीं बचे गोबर से जैविक खेती की जा रही है, जिससे उपजे अन्न की भी मांग खूब है. ऐसे में गोशाला से लाभ ही लाभ है.

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