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मऊः स्वरोजगार के जरिए गांव की 50 महिलाओं को रोजगार दे रहा युवक

यूपी के मऊ जिले में एक युवक ने लघु और स्वरोजगार के बल पर लाखों रुपये का कारोबार खड़ा कर दिया है. युवक न सिर्फ खुद के लिए रोजगार ढूढ़ा बल्कि आज वह 50 महिलाओं को रोजगार देकर युवाओं को स्वारोजगार के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

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बिंदी की पैकिंग करती महिलाएं.
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Published : Jun 25, 2020, 2:38 PM IST

मऊः लॉकडाउन के दौरान शहरों में उद्योग-धंधे बंद हो गए. इससे लाखों मजदूर, कामगार बेरोजगार होकर गांव लौट आए. ऐसे वक्त में ग्रामीण क्षेत्र में लघु और स्वरोजगार को बढ़ावा देने की चर्चाएं तेज हो गईं. वहीं गांव में पहले से ही स्वरोजगार अपनाकर जीविकोपार्जन कर रहें युवा अब लोगों के लिए मॉडल बन गए हैं. जनपद के चकरा गांव निवासी संदीप सिंह ने अपने घर पर बिंदी पैंकिंग और सप्लाई से आज लाखों का कारोबार स्थापित कर चुके हैं. संदीप ने खुद के साथ-साथ गांव की 50 महिलाओं को रोजगार देकर यह प्रमाणित कर दिए हैं कि मेहनत और हिम्मत के दम पर ग्रामीण क्षेत्र में भी पैसे कमाए जा सकते हैं.

बिंदी की पैकिंग करती महिलाएं.

परदेस की नौकरी छोड़ गांव में शुरू किया स्वरोजगार
संदीप सिंह ने बताया कि स्नातक और आईटीआई करने के बाद वह दिल्ली और मुंबई की कंपनियों में काम किया, लेकिन उनका मन नहीं लगा तो वापस गांव लौट आए. गांव आने के बाद यहीं पर कोई काम करने की ठानी. उन्होंने बताया कि पत्नी भी पढ़ी लिखी हैं तो दोनों लोगों ने मिलकर कुछ करने का विचार बनाया और बिंदी पैकिंग और मार्केटिंग का काम शुरू कर दिया.

2018 में शुरू किया था काम

संदीप बताते हैं कि पैसे की कमी थी तो 2018 में मात्र 12 हजार रुपये की पूंजी के साथ बिंदी बनाने के कच्चे माल बनारस से लाकर गांव में पैकिंग और आसपास के बाजार में सप्लाई करते थे. शुरुआत में लोग संदीप पर हंसा करते थे कि पढ़ लिखकर बिंदी बेच रहें हैं, लेकिन उन्होंने सबको अनदेखा कर काम में लगे रहे. आज संदीप लाखों का कारोबार स्थापित कर चुके हैं.

सस्ता होने से बढ़ गई मांग
संदीप ने बताया कि बाजार में बिंदी की मांग सदैव बनी रहती है. बिंदी महिलाओं के जीवन का अभिन्न हिस्सा होने से लॉकडाउन में भी इनके काम पर और मांग पर असर नहीं हुआ. जैसे ही बाजार खुला अधिक मांग होने से वह सप्लाई नहीं दे पा रहे हैं. संदीप बताते हैं कि आस पास के जिले में उनकी बिंदी की मांग ज्यादा है. क्योंकि उनका रेट बनारस के बाजार के बराबर है. इससे दुकानदारों को बैठे-बैठे अपने दुकान पर सस्ते दाम पर बिंदी मिल जा रही है.

मांग बढ़ने से महिलाओं को मिला रोजगार
संदीप बताते हैं कि बाजार में अधिक मांग होने से पैंकिंक का काम भी बढ़ गया था तो गांव की महिलाओं का सहारा लेना पड़ा. आसपास की महिलाओं को घर पर ट्रेनिंग देकर पैंकिंक करना सिखाया जाता है. फिर वह अपने घर पर काम करती हैं. संदीप के साथ 50 महिलाओं को भी गांव में ही घर बैठे काम मिल गया है. ये गृहस्थी के बाद बचे समय में बिंदी पैकिंग का काम करके महीने में 2 से ढाई हजार रुपये कमा लेती हैं.

पत्नी का मिला सहयोग
संदीप सिंह आज गांव में रहकर लाखों का बिजनेस कर रहें हैं. इसमें इनकी पत्नी रानी सिंह का अहम सहयोग है. संदीप घर से बाहर मार्केटिंग का काम देखते हैं तो घर के अंदर रानी पैकेजिंग का पूरा काम संचालित करती हैं. रानी महिलाओं को ट्रेनिंग देती है, महिलाओं को कच्चा सामान देना, मजदूरी देने सहित सभी का हिसाब किताब रखती हैं. इस तरह समाजिक परिवेश को ध्यान में रखते हुए रानी सिंह ने पति के साथ कदम से कदम मिलाकर दे रही हैं.

बदल गया जीवन, महिलाओं हो रहीं आत्मनिर्भर
बिंदी उद्योग से संदीप सिंह ने खुद के साथ-साथ महिलाओं के जीवन में भी खुशियां ला दी हैं. गांव की महिलाएं अब स्वंय के खर्च के लिए घर के पुरुषों पर आश्रित नहीं हैं. खुद कमाती हैं और खुद के मर्जी के हिसाब से खर्च करतीं हैं. बिंदी पैकिंग करने वाली शोभा ने बताया कि गृहस्थी का काम करने के बाद खाली बैठे रहते थे. अब जब भी समय मिलता है, बिंदी पैक करते हैं. घर से बाहर गए बिना ही महीने में डेढ़ से दो हजार कमा लेते हैं. शोभा ने बताया कि पहले वह सिलाई का काम करती थीं तो गांव में काम नहीं मिलता था, लेकिन बिंदी का काम आसान भी है और तुरंत पैसे भी मिल जाते हैं.

मऊः लॉकडाउन के दौरान शहरों में उद्योग-धंधे बंद हो गए. इससे लाखों मजदूर, कामगार बेरोजगार होकर गांव लौट आए. ऐसे वक्त में ग्रामीण क्षेत्र में लघु और स्वरोजगार को बढ़ावा देने की चर्चाएं तेज हो गईं. वहीं गांव में पहले से ही स्वरोजगार अपनाकर जीविकोपार्जन कर रहें युवा अब लोगों के लिए मॉडल बन गए हैं. जनपद के चकरा गांव निवासी संदीप सिंह ने अपने घर पर बिंदी पैंकिंग और सप्लाई से आज लाखों का कारोबार स्थापित कर चुके हैं. संदीप ने खुद के साथ-साथ गांव की 50 महिलाओं को रोजगार देकर यह प्रमाणित कर दिए हैं कि मेहनत और हिम्मत के दम पर ग्रामीण क्षेत्र में भी पैसे कमाए जा सकते हैं.

बिंदी की पैकिंग करती महिलाएं.

परदेस की नौकरी छोड़ गांव में शुरू किया स्वरोजगार
संदीप सिंह ने बताया कि स्नातक और आईटीआई करने के बाद वह दिल्ली और मुंबई की कंपनियों में काम किया, लेकिन उनका मन नहीं लगा तो वापस गांव लौट आए. गांव आने के बाद यहीं पर कोई काम करने की ठानी. उन्होंने बताया कि पत्नी भी पढ़ी लिखी हैं तो दोनों लोगों ने मिलकर कुछ करने का विचार बनाया और बिंदी पैकिंग और मार्केटिंग का काम शुरू कर दिया.

2018 में शुरू किया था काम

संदीप बताते हैं कि पैसे की कमी थी तो 2018 में मात्र 12 हजार रुपये की पूंजी के साथ बिंदी बनाने के कच्चे माल बनारस से लाकर गांव में पैकिंग और आसपास के बाजार में सप्लाई करते थे. शुरुआत में लोग संदीप पर हंसा करते थे कि पढ़ लिखकर बिंदी बेच रहें हैं, लेकिन उन्होंने सबको अनदेखा कर काम में लगे रहे. आज संदीप लाखों का कारोबार स्थापित कर चुके हैं.

सस्ता होने से बढ़ गई मांग
संदीप ने बताया कि बाजार में बिंदी की मांग सदैव बनी रहती है. बिंदी महिलाओं के जीवन का अभिन्न हिस्सा होने से लॉकडाउन में भी इनके काम पर और मांग पर असर नहीं हुआ. जैसे ही बाजार खुला अधिक मांग होने से वह सप्लाई नहीं दे पा रहे हैं. संदीप बताते हैं कि आस पास के जिले में उनकी बिंदी की मांग ज्यादा है. क्योंकि उनका रेट बनारस के बाजार के बराबर है. इससे दुकानदारों को बैठे-बैठे अपने दुकान पर सस्ते दाम पर बिंदी मिल जा रही है.

मांग बढ़ने से महिलाओं को मिला रोजगार
संदीप बताते हैं कि बाजार में अधिक मांग होने से पैंकिंक का काम भी बढ़ गया था तो गांव की महिलाओं का सहारा लेना पड़ा. आसपास की महिलाओं को घर पर ट्रेनिंग देकर पैंकिंक करना सिखाया जाता है. फिर वह अपने घर पर काम करती हैं. संदीप के साथ 50 महिलाओं को भी गांव में ही घर बैठे काम मिल गया है. ये गृहस्थी के बाद बचे समय में बिंदी पैकिंग का काम करके महीने में 2 से ढाई हजार रुपये कमा लेती हैं.

पत्नी का मिला सहयोग
संदीप सिंह आज गांव में रहकर लाखों का बिजनेस कर रहें हैं. इसमें इनकी पत्नी रानी सिंह का अहम सहयोग है. संदीप घर से बाहर मार्केटिंग का काम देखते हैं तो घर के अंदर रानी पैकेजिंग का पूरा काम संचालित करती हैं. रानी महिलाओं को ट्रेनिंग देती है, महिलाओं को कच्चा सामान देना, मजदूरी देने सहित सभी का हिसाब किताब रखती हैं. इस तरह समाजिक परिवेश को ध्यान में रखते हुए रानी सिंह ने पति के साथ कदम से कदम मिलाकर दे रही हैं.

बदल गया जीवन, महिलाओं हो रहीं आत्मनिर्भर
बिंदी उद्योग से संदीप सिंह ने खुद के साथ-साथ महिलाओं के जीवन में भी खुशियां ला दी हैं. गांव की महिलाएं अब स्वंय के खर्च के लिए घर के पुरुषों पर आश्रित नहीं हैं. खुद कमाती हैं और खुद के मर्जी के हिसाब से खर्च करतीं हैं. बिंदी पैकिंग करने वाली शोभा ने बताया कि गृहस्थी का काम करने के बाद खाली बैठे रहते थे. अब जब भी समय मिलता है, बिंदी पैक करते हैं. घर से बाहर गए बिना ही महीने में डेढ़ से दो हजार कमा लेते हैं. शोभा ने बताया कि पहले वह सिलाई का काम करती थीं तो गांव में काम नहीं मिलता था, लेकिन बिंदी का काम आसान भी है और तुरंत पैसे भी मिल जाते हैं.

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