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मऊ: कोरोना का कहर जारी, धीमी पड़ी औद्योगिक रफ्तार

कोरोना संकट के चलते उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में कई उद्योग धंधे बंद हो गए हैं. कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए लगाए गए लॉकडाउन में 70 प्रतिशत तक उद्योग बंद हो चुके हैं. जो कारखाने चल रहे हैं, वहां आधे से कम मजदूर काम कर रहे हैं.

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कोरोना वायरस ने रोकी औद्योगिक रफ्तार.
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Published : Aug 9, 2020, 7:57 PM IST

मऊ: कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन के चलते जिले में उद्योग पर बुरा असर पड़ा है. देशव्यापी बंदी में जहां कारखाने पूरी तरह से बंद रहे, तो वहीं शहरों में हॉटस्पॉट बन जाने से बाजार बंद हो रहे हैं. इससे उत्पादों की मांग में भारी कमी आई है और इस कारण 70 प्रतिशत तक उद्योग धंधे बंद हो चुके हैं. जो चल भी रहे हैं वहां आधे से कम कारीगर काम करने पहुंच रहे हैं. जिले में छोटी-बड़ी मिलाकर 400 के लगभग इकाइयों से उत्पादन होता है. इन औद्योगिक इकाइयों में 3000 से अधिक लोगों को रोजगार मिलता है. मांग और सप्लाई नहीं होने से अधिकांश कारखाने बंद हो गए हैं, जिससे कामगार बेरोजगार हो चुके हैं. वहीं मालिक आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और मांग नहीं होने से करोड़ों का तैयार माल पड़ा हुआ है.

कोरोना वायरस ने रोकी औद्योगिक रफ्तार.

अधिकांश कारखानों पर लटका ताला
धंधा बंद हो जाने के बाद भी कारखानों पर बैंक के ब्याज और बिजली के बिल की दोहरा मार पड़ रही है. जिले का मुख्य उद्योग साड़ी बुनाई है, ऐसे में 90 प्रतिशत से अधिक कारखाने इसी से संबंधित हैं. इन कारखानों में जरी, इम्ब्रॉइडरी, कैलेंडर और धागा निर्माण होता है. इनमें से अधिंकाश पूरी तरह से बंद पड़े हैं. वहीं बाकी औद्योगिक इकाइयों में चौखट निर्माण, पिकेटिंग मैटेरियल बनता है. यहां काम तो चल रहा है लेकिन मांग कम होने से उत्पादन आधा हो चुका है, जिससे कामगारों की छंटनी की जा रही है.

मार्च से बंद पड़ी मशीनें, करोड़ों का माल डंप
जिले में जरी के 4 बड़े कारखाने हैं. यहां पर साड़ियों के लिए धागा, रोलेक्स का निर्माण होता है जिससे साड़ियों पर डिजाइन बनाई जाती है. यहां से कच्चा माल जिले के सभी कस्बों समेत बनारस, बलिया, देवरिया और बिहार राज्य में सप्लाई होता है. वहीं कोरोना काल में साड़ी की बुनाई बंद हो गई है तो कंपनियों में कच्चा माल पड़ा हुआ है.

करोड़ों का माल हो रहा खराब
प्रमोद जरी इंडस्ट्री के मालिक भरत ने बताया कि मार्च से ही कंपनी पूरी तरह से बंद पड़ी है. बाजार बंद होने से साड़ी की मांग में कमी आई है और बुनाई भी बंद है. ऐसे में मेरे पास 4 करोड़ का कच्चा माल पड़ा है. 4 महीने हो गए हैं अगर सप्लाई नहीं हुई तो इसकी क्वालिटी गिर जाएगी, क्योंकि धागा कच्चा माल होता है और ज्यादा दिन तक नहीं रखा जा सकता है. वहीं हमारे यहां 300 से 400 मजदूर काम करते थे. कंपनी बंद होने से सभी का रोजगार चला गया है और केवल 5-6 लोग इस समय काम पर हैं, जो सिर्फ कंपनी की निगरानी कर रहे हैं.

सोशल डिस्टेंसिंग का रखा जा रहा ख्याल
बालाजी चौखट के मालिक बालकृष्ण ने बताया कि कोरोना काल के चलते निर्माण का काम आधा हो गया है. लॉकडाउन के दौरान काम पूरी तरह से बंद रहा, लेकिन जबसे काम चालू हुआ तो सोशल डिस्टेंस को देखते हुए आधे से कम मजदूरों को ही काम पर बुलाया जा रहा है. वहीं ट्रांसपोर्ट में अक्सर रुकावट होती है, जिससे सप्लाई भी नहीं हो रही है. मार्च से जुलाई तक 10 लाख से अधिक का घाटा हो चुका है. जो कामगार थे उनका काम छिनने से वे भी परेशान हैं, लेकिन क्या किया जा सकता है.

बैंक कर्ज और बिजली बिल बना मुसीबत
कोरोना संक्रमण के चलते औद्योगिक इकाइयां तो बंद हैं लेकिन इन पर निर्धारित बिजली बिल है उसे जमा करना अनिवार्य है. प्रमोद जरी इंडस्ट्री के मालिक भरत ने बताया कि मार्च से कंपनी पूरी तरह बंद है. माल सप्लाई नहीं होने से आय शून्य हो गई है लेकिन इस दौरान भी डेढ़ लाख रुपए महीने का बिल देना अनिवार्य है. बिजली की खपत शून्य होने के बावजूद भी हमें हर महीने बिल देना ही है. वहीं बैंक का ब्याज 5 लाख रुपए महीने का है और सरकार ने अभी तक कोई भी सहायता नहीं दी है. ऐसे ही चलता रहा तो कंपनी आने वाले समय में पूरी तरह बंद हो जाएगी.

तीन हजार से अधिक कारीगरों का छिना रोजगार
जिले के विभिन्न उद्योगों में तीन हजार से अधिक कामगारों को स्थानीय स्तर पर काम मिल जाता था, लेकिन लॉकडाउन के चलते अधिकांश फैक्ट्रियां बंद हो गई हैं. अब कोरोना संक्रमण के चलते बाजार बंद होने से मांग कम हो गई है. जो कारखाने चल रहे हैं उसमें भी आधे से कम मजदूर काम कर रहे हैं. कारीगर मनीष मौर्य ने बताया कि लॉकडाउन के चलते महीने में 12 से 14 दिन ही काम मिल रहा है जिससे परिवार चलाना कठिन हो गया है. पहले 9 हजार महीने कमा लेता था और अब 5-6 हजार कमाना कठिन हो गया है.

मऊ: कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन के चलते जिले में उद्योग पर बुरा असर पड़ा है. देशव्यापी बंदी में जहां कारखाने पूरी तरह से बंद रहे, तो वहीं शहरों में हॉटस्पॉट बन जाने से बाजार बंद हो रहे हैं. इससे उत्पादों की मांग में भारी कमी आई है और इस कारण 70 प्रतिशत तक उद्योग धंधे बंद हो चुके हैं. जो चल भी रहे हैं वहां आधे से कम कारीगर काम करने पहुंच रहे हैं. जिले में छोटी-बड़ी मिलाकर 400 के लगभग इकाइयों से उत्पादन होता है. इन औद्योगिक इकाइयों में 3000 से अधिक लोगों को रोजगार मिलता है. मांग और सप्लाई नहीं होने से अधिकांश कारखाने बंद हो गए हैं, जिससे कामगार बेरोजगार हो चुके हैं. वहीं मालिक आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और मांग नहीं होने से करोड़ों का तैयार माल पड़ा हुआ है.

कोरोना वायरस ने रोकी औद्योगिक रफ्तार.

अधिकांश कारखानों पर लटका ताला
धंधा बंद हो जाने के बाद भी कारखानों पर बैंक के ब्याज और बिजली के बिल की दोहरा मार पड़ रही है. जिले का मुख्य उद्योग साड़ी बुनाई है, ऐसे में 90 प्रतिशत से अधिक कारखाने इसी से संबंधित हैं. इन कारखानों में जरी, इम्ब्रॉइडरी, कैलेंडर और धागा निर्माण होता है. इनमें से अधिंकाश पूरी तरह से बंद पड़े हैं. वहीं बाकी औद्योगिक इकाइयों में चौखट निर्माण, पिकेटिंग मैटेरियल बनता है. यहां काम तो चल रहा है लेकिन मांग कम होने से उत्पादन आधा हो चुका है, जिससे कामगारों की छंटनी की जा रही है.

मार्च से बंद पड़ी मशीनें, करोड़ों का माल डंप
जिले में जरी के 4 बड़े कारखाने हैं. यहां पर साड़ियों के लिए धागा, रोलेक्स का निर्माण होता है जिससे साड़ियों पर डिजाइन बनाई जाती है. यहां से कच्चा माल जिले के सभी कस्बों समेत बनारस, बलिया, देवरिया और बिहार राज्य में सप्लाई होता है. वहीं कोरोना काल में साड़ी की बुनाई बंद हो गई है तो कंपनियों में कच्चा माल पड़ा हुआ है.

करोड़ों का माल हो रहा खराब
प्रमोद जरी इंडस्ट्री के मालिक भरत ने बताया कि मार्च से ही कंपनी पूरी तरह से बंद पड़ी है. बाजार बंद होने से साड़ी की मांग में कमी आई है और बुनाई भी बंद है. ऐसे में मेरे पास 4 करोड़ का कच्चा माल पड़ा है. 4 महीने हो गए हैं अगर सप्लाई नहीं हुई तो इसकी क्वालिटी गिर जाएगी, क्योंकि धागा कच्चा माल होता है और ज्यादा दिन तक नहीं रखा जा सकता है. वहीं हमारे यहां 300 से 400 मजदूर काम करते थे. कंपनी बंद होने से सभी का रोजगार चला गया है और केवल 5-6 लोग इस समय काम पर हैं, जो सिर्फ कंपनी की निगरानी कर रहे हैं.

सोशल डिस्टेंसिंग का रखा जा रहा ख्याल
बालाजी चौखट के मालिक बालकृष्ण ने बताया कि कोरोना काल के चलते निर्माण का काम आधा हो गया है. लॉकडाउन के दौरान काम पूरी तरह से बंद रहा, लेकिन जबसे काम चालू हुआ तो सोशल डिस्टेंस को देखते हुए आधे से कम मजदूरों को ही काम पर बुलाया जा रहा है. वहीं ट्रांसपोर्ट में अक्सर रुकावट होती है, जिससे सप्लाई भी नहीं हो रही है. मार्च से जुलाई तक 10 लाख से अधिक का घाटा हो चुका है. जो कामगार थे उनका काम छिनने से वे भी परेशान हैं, लेकिन क्या किया जा सकता है.

बैंक कर्ज और बिजली बिल बना मुसीबत
कोरोना संक्रमण के चलते औद्योगिक इकाइयां तो बंद हैं लेकिन इन पर निर्धारित बिजली बिल है उसे जमा करना अनिवार्य है. प्रमोद जरी इंडस्ट्री के मालिक भरत ने बताया कि मार्च से कंपनी पूरी तरह बंद है. माल सप्लाई नहीं होने से आय शून्य हो गई है लेकिन इस दौरान भी डेढ़ लाख रुपए महीने का बिल देना अनिवार्य है. बिजली की खपत शून्य होने के बावजूद भी हमें हर महीने बिल देना ही है. वहीं बैंक का ब्याज 5 लाख रुपए महीने का है और सरकार ने अभी तक कोई भी सहायता नहीं दी है. ऐसे ही चलता रहा तो कंपनी आने वाले समय में पूरी तरह बंद हो जाएगी.

तीन हजार से अधिक कारीगरों का छिना रोजगार
जिले के विभिन्न उद्योगों में तीन हजार से अधिक कामगारों को स्थानीय स्तर पर काम मिल जाता था, लेकिन लॉकडाउन के चलते अधिकांश फैक्ट्रियां बंद हो गई हैं. अब कोरोना संक्रमण के चलते बाजार बंद होने से मांग कम हो गई है. जो कारखाने चल रहे हैं उसमें भी आधे से कम मजदूर काम कर रहे हैं. कारीगर मनीष मौर्य ने बताया कि लॉकडाउन के चलते महीने में 12 से 14 दिन ही काम मिल रहा है जिससे परिवार चलाना कठिन हो गया है. पहले 9 हजार महीने कमा लेता था और अब 5-6 हजार कमाना कठिन हो गया है.

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