मथुरा: श्रीमद्भागवत में राधा नाम है या नहीं को लेकर वृंदावन के संतों में बयानबाजी तेज हो गई है. दरअसल भागवत प्रवक्ता अनिरुद्धाचार्य एक समारोह में मंच से श्रीमद् भागवत कथा के एक श्लोक में राधा नाम का जिक्र कर रहे थे. तभी मंचासीन दूसरे भागवत प्रवक्ता ने उन्हें रोक दिया. श्रीमद्भागवत में राधा नाम है अथवा नहीं. इस को लेकर अब साधु संतों की भी प्रक्रिया आना शुरू हो गई है. किसी संत का कहना है कि भागवत प्रवक्ता द्वारा इस तरह से कहना सनातन धर्म के लिए गलत है.
उन्हें माफी मांगनी चाहिए. वहीं दूसरी ओर कुछ संतों का कहना है कि भागवत प्रवक्ता द्वारा व्याकरण की दृष्टि से गलत कहा गया है लेकिन, भाव की दृष्टि से सही कहा गया है. अगर भाव में आकर इस तरह कुछ कहते हैं तो यह गलत नहीं है और ऐसी बातों को लोगों को तूल नहीं देना चाहिए. कुछ ही लोग बचे हैं जो सनातन धर्म की बातों को करते हैं और धर्म को आगे लेकर आना चाहते हैं.
साधु संतों ने दी प्रतिक्रिया: फूलडोल महाराज ने कहा कि यह बयान बाजी सनातन धर्म के लिए भारतीय संस्कृति के लिए खतरनाक है. भागवत प्रवक्ता का इस तरह से कहना खतरनाक है. भागवत प्रवक्ता को अपनी गलती को स्वीकार करनाी चाहिए वह बालक है, बालक के नाते मैं उसे सुझाव देता हूं. अगर आपने भागवत पढ़ी है तब ही आप भागवत पढ़ें बिना जानकारी के आपको भागवत नहीं बोलनी चाहिए. इतने बड़े विद्वान को चैलेंज देना वृंदावन के साधु-संतों को चैलेंज देना ठीक नहीं है. मेरे द्वारा भी टीवी और मोबाइल पर देखा गया भागवत प्रवक्ता के द्वारा चैलेंज किया गया है.
महंत मोहिनी बिहारी शरण ने कहा कि यह कोई मामला नहीं है. यह दो विद्वानों की साधारण बातें हैं. कहीं न कहीं किसी बिंदु पर अगर कोई बात हुई है ऐसा नहीं है कि कहीं भागवत प्रवक्ता गलत है या त्रिपाठी जी गलत है. पर जिस तरह से इस मामले को दिखाया जा रहा है वह गलत है, क्योंकि सनातन धर्म की बातें वैसे तो सनातन धर्म में कुछ चुनिंदा लोग रह गए हैं. जो धर्म की आवाज को उठा रहे हैं.
अनिरुद्धाचार्य भी वृंदावन की एक सोभा है और सनातन धर्म के स्तंभ के रूप में आप हैं. निश्चित ही उन्होंने जो देखा जो उन्होंने कहा यह सब भाव की बातें हैं. ज्ञान और वैराग्य की जो बातें हैं वह दुनिया से परे हैं. अगर कोई भाव में व्यक्ति आ जाता है तो निश्चित ही वह अपने आप में पूर्ण बात है .अगर किसी को ऐसी कोई बात लगती है तो निश्चित ही ऐसी बातों को तूल नहीं देना चाहिए.
आचार्य बद्रीश ने कहा की भागवत प्रवक्ता द्वारा कहा गया है कि श्रीमद्भागवत में राधा नाम है और वह इसका उदाहरण भी दे रहे थे, तो वहां पर हमारे पंडित राम कृपालु त्रिपाठी जी द्वारा इसका विरोध किया गया उनके द्वारा कहा गया कि इसमें राधा नाम नहीं है ,उनका व्याकरण की दृष्टि से यह कहना बिल्कुल उचित था, क्योंकि यदि कोई व्याकरण की दृष्टि से दुराग्रह करता है तो वह गलत है ,उस शब्दार्थ में राधा शब्द नहीं है ,क्योंकि वहां लिखा हुआ राधा है और पढ़ने में स्पष्ट राधा आता है तो जिन की भावना राधारानी में है इसलिए भाव की दृष्टि से और जो भावना रखता है उसमें कोई दोष नहीं रहता है.
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आपने देखा होगा कि कहीं पर भी मंदिर है तो वह राधा कृष्ण का है. तो राधा कृष्ण का जो पारस्परिक प्रेम है. जो उनका स्थान है भगवान की शक्ति के रूप में है. तो हमारे ब्रज के अनुसार तो सभी लोगों को राधा ही राधा दिखाई देती हैं और व्याकरण की दृष्टि से हमारा कोई दुराग्रह नहीं है. जो अपने विचार रख रहे हैं वह अपनी जगह सही है. लेकिन, अपने तरीके से अगर कोई देखता है तो कोई बुराई भी नहीं है.
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