मथुरा: राधा रानी की जन्मस्थली बरसाना में लट्ठमार होली को लेकर तैयारियां शुरू हो गई है. मंदिर परिसर में क्विंटल की तादाद में टेसू के फूलों से रंग बनाए जा रहे हैं तो आगामी 11 मार्च को बरसाना में लट्ठमार होली का भव्य नजारा देखने को मिलेगा. वहीं, दूरदराज से लाखों की संख्या में यहां श्रद्धालु होली की अद्भुत आनंद के लिए हर बार आते हैं. ऐसे में इस बार भी यहां भारी संख्या में श्रद्धालुओं आने की संभावना है. इधर, मंदिर में होली की तैयारियों में लगे सेवायत ने लट्ठमार होली के दौरान यहां इस्तेमाल होने वाले टेसू के फूलों से बने रंगों समेत अन्य कई अहम बातें बताई.
ब्रज में होती है 40 दिनों तक होली
बसंत पंचमी के साथ ही ब्रज में होली उत्सव की शुरुआत हो जाती है. जनपद के अलग-अलग मंदिरों में होली के अलग-अलग रंग देखने को मिलते हैं. मंदिरों में कहीं लड्डू की होली होती है तो कहीं फूलों और रंगों की विश्व विख्यात बरसाना में लट्ठमार होली का आनंद भी देखने को मिलता है. वहीं, लट्ठमार होली में शामिल होने के लिए यहां हर बार लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं.
फूलों से रंग बनाने की परंपरा...
मध्य प्रदेश के शिवपुरी, भिंड और मुरैना में टेसू के फूलों की खेती होती है. टेसू के फूलों से हर्बल कलर बनाए जाते हैं, जो नेचुरल होते हैं और इसका इस्तेमाल वृंदावन में लोग होली के त्यौहार मनाने व लोगों को रंग-गुलाल लगाने में करते हैं. वहीं, ब्रज के मंदिरों में टेसू के फूलों से रंग बनाने का काम एक महीने पहले ही शुरू हो जाता है और क्विंटल की तादाद में इन फूलों को बड़े-बड़े ड्राम में पानी में फूला कर रखा जाता है. जिससे बाद में रंग बनाए जाते हैं.
इसे भी पढ़ें - महाशिवरात्रि पर कैसे करें शिव आराधना, जानें पूजा विधि और महत्व
द्वापर युग से चली आ रही होली
कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और राधा जी की जन्म स्थली बरसाना में क्रीड़ा स्थली गोकुल, लीला स्थली वृंदावन में होली का अद्भुत आनंद और नजारा देखने को मिलता है. बरसाना में लट्ठमार होली खेलने के लिए नंद गांव के हुरियारे और बरसाना की हुरियारने प्रेम भाव की लाठियां बरसाते हैं. करीब 5000 वर्षों से ब्रज में होली खेली जाती है. वहीं, बरसाना की लट्ठमार होली खेलने के बाद दूसरे दिन बरसाना के हुरियारे नंद गांव की हुरियारन नंद चौक पर होली खेलती हैं.
- 5 फरवरी को बसंत पंचमी के दिन बांके बिहारी मंदिर में ठाकुर जी को गुलाल लगाने की परंपरा है.
- 10 मार्च को बरसाना में लड्डू मार होली होती है.
- 11 मार्च को बरसाना में लट्ठमार होली खेली जाती है.
- 12 मार्च को नंद गांव में लट्ठमार होली होती है.
- 14 मार्च को श्रीकृष्ण जन्मभूमि और द्वारकाधीश मंदिर में रंगों की होली होती है.
- 14 मार्च को ही बिहारी जी मंदिर में होली खेली जाती है.
- 16 मार्च को छड़ी मार होली गोकुल में होती है.
- 18 मार्च को होलिका दहन
- 19 मार्च को रंगों की होली होती है.
- 20 मार्च को हुरंगा बलदेव में होली होती है.
स्थानीय निवासी ललित किशोरी बताती हैं कि बरसाना में लट्ठमार होली को लेकर तैयारियां शुरू हो गई है. होली के लिए टेसू के फूलों से रंग बनाए का काम तेज हो गया है. उन्होंने बताया कि बरसाना में लट्ठमार होली के दौरान अगर किसी व्यक्ति को चोट भी लग जाती है तो इस रंग को लगाने मात्र से जख्मी व्यक्ति को पीड़ा से राहत मिलती है. वहीं, सुधा शर्मा नाम की एक महिला ने बताया कि बरसाना में लट्ठमार होली खेलने के लिए पिछले 10 सालों से हम यहां आते हैं. यहां होली के दौरान अलग आनंद की अनुभूति होती है.
इधर, मंदिर के सेवायत प्रेम बिहारी गोस्वामी ने बताया कि राधा रानी की जन्मस्थली बरसाना लाडली जी मंदिर में लट्ठमार होली को लेकर टेसू के फूलों से रंग गुलाल बनाए गए हैं, जो कि क्विंटल की तादाद में हैं और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप