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मथुरा: यहां पर गरीबों को प्रशिक्षण देकर बनाया जाता है आत्मनिर्भर

उत्तर प्रदेश के मथुरा में बना दीनदयाल धाम गरीबों को उत्थान की राह दिखा रहा है. यहां पर बनी संस्कार शालाओं में लोग तमाम चीजों का प्रशिक्षण लेकर स्वावलंबी बन रहे हैं. ये सभी अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. यहां काम करने वाले 15 से 20 हजार रुपये काम ले रहे हैं.

दीनदयाल धाम में प्रशिक्षण ले रहे लोग.
दीनदयाल धाम में प्रशिक्षण ले रहे लोग.
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Published : Sep 30, 2020, 5:03 PM IST

मथुरा: देश और दुनिया को अंत्योदय का सपना दिखाने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार उनके पैतृक गांव नगला चंद्रभान में सच हो रहे हैं. यहां पर बना दीनदयाल धाम गरीबों को उत्थान की राह दिखा रहा है. 10 से अधिक सेवा प्रकल्प में सैकड़ों हाथों को काम मिला है. यहां पर गांव में संस्कारशालाएं हैं, जहां लोग अनेकों चीजें सीखकर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. महिलाएं भी विभिन्न कार्य सीखकर स्वयं को स्वावलंबी बना रही हैं और अपने परिवार का पालन पोषण कर रही हैं. दीनदयाल धाम के सहारे क्षेत्र के हजारों परिवारों का गुजारा चल रहा है.

देशभर में जाता है दीनदयाल धाम में बना कुर्ता
नगला चंद्रभान गांव के 35 वर्षीय संतोष रावत दोनों पैरों से दिव्यांग हैं. काम करने में अक्षम संतोष को 20 वर्ष पहले किसी शख्स ने दीनदयाल धाम के सिलाई प्रशिक्षण केंद्र की राह दिखा दी. उन्होंने सिलाई सीखी और उसमें मास्टर बनकर अब दूसरों को हुनरमंद बना रहे हैं. इनका छोटा भाई संजय भी सिलाई का मास्टर है. संतोष 20 हजार रुपये प्रतिमाह कमाकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. दीनदयाल धाम से प्रशिक्षित 3500 लोग सिलाई के काम से जुड़े हैं. इस काम से वह हर माह 15-20 हजार रुपये कमा लेते हैं. बता दें कि दीनदयाल धाम में बना कुर्ता देशभर में भेजा जाता है. आरएसएस कैडर में यह दीनदयाल कुर्ता के नाम से फेमस है.

महिलाओं को घर बैठे मिल रहा रोजगार
दीनदयाल धाम सिलाई केंद्र के पंडित कमल कौशिक ने बताया कि यहां महिलाओं को सिलाई करके घर बैठे रोजगार मिल रहा है. गांव की रहने महिला अनीता ने बताया कि उन्होंने यहीं सिलाई सीखी और यहीं रोजगार मिल गया. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद का सिद्धांत देकर गरीब के उत्थान का सपना देखा था. दीनदयाल उपाध्याय जन्मोत्सव स्मारक समिति यहां इसी सपने को सच कर रही है.

दीनदयाल धाम में प्रशिक्षण ले रहे लोग.

शादी के समय महिलाओं को दी जाती है सिलाई मशीन
जानकारी देते हुए महामंत्री पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति महोत्सव समिति डॉक्टर कमल कौशिक ने बताया कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का विचार था कि गांव के गरीब, किसान, मजदूर और महिलाओं का उत्थान हो, इसके लिए उन्होंने अपने जीवन को समर्पित किया था. पंडित दीनदयाल जी के विचारों को आगे बढ़ाते हुए पंडित दीनदयाल जन्म भूमि स्मारक समिति ने यहां सेवा के बहुत सारे कार्य प्रारंभ किए हैं, जिसमें जैविक खेती होती है, क्षेत्र के बालक बालिकाओं के पठन-पाठन के लिए सीबीएसई के 12वीं तक के स्कूल का संचालन होता है.

ब्लॉक के प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर शिशु मंदिर से अच्छी शिक्षा देने का काम होता है. साथ ही यहां की महिलाएं कैसे स्वावलंबी बने इसके लिए भी प्रयास किए जाते हैं. उन्होंने बताया कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि गांव उठेगा, महिलाएं उठेंगी तब देश का विकास होगा. इसी को ध्यान में रखकर के यहां सिलाई केंद्र पर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है और प्रशिक्षित होने पर उनको उनका मेहनताना मिलता है. डॉक्टर कमल कौशिक ने बताया कि जब उन बहनों की शादी होती है तो उन्हें एक सिलाई मशीन दी जाती है.

मथुरा: देश और दुनिया को अंत्योदय का सपना दिखाने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार उनके पैतृक गांव नगला चंद्रभान में सच हो रहे हैं. यहां पर बना दीनदयाल धाम गरीबों को उत्थान की राह दिखा रहा है. 10 से अधिक सेवा प्रकल्प में सैकड़ों हाथों को काम मिला है. यहां पर गांव में संस्कारशालाएं हैं, जहां लोग अनेकों चीजें सीखकर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. महिलाएं भी विभिन्न कार्य सीखकर स्वयं को स्वावलंबी बना रही हैं और अपने परिवार का पालन पोषण कर रही हैं. दीनदयाल धाम के सहारे क्षेत्र के हजारों परिवारों का गुजारा चल रहा है.

देशभर में जाता है दीनदयाल धाम में बना कुर्ता
नगला चंद्रभान गांव के 35 वर्षीय संतोष रावत दोनों पैरों से दिव्यांग हैं. काम करने में अक्षम संतोष को 20 वर्ष पहले किसी शख्स ने दीनदयाल धाम के सिलाई प्रशिक्षण केंद्र की राह दिखा दी. उन्होंने सिलाई सीखी और उसमें मास्टर बनकर अब दूसरों को हुनरमंद बना रहे हैं. इनका छोटा भाई संजय भी सिलाई का मास्टर है. संतोष 20 हजार रुपये प्रतिमाह कमाकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. दीनदयाल धाम से प्रशिक्षित 3500 लोग सिलाई के काम से जुड़े हैं. इस काम से वह हर माह 15-20 हजार रुपये कमा लेते हैं. बता दें कि दीनदयाल धाम में बना कुर्ता देशभर में भेजा जाता है. आरएसएस कैडर में यह दीनदयाल कुर्ता के नाम से फेमस है.

महिलाओं को घर बैठे मिल रहा रोजगार
दीनदयाल धाम सिलाई केंद्र के पंडित कमल कौशिक ने बताया कि यहां महिलाओं को सिलाई करके घर बैठे रोजगार मिल रहा है. गांव की रहने महिला अनीता ने बताया कि उन्होंने यहीं सिलाई सीखी और यहीं रोजगार मिल गया. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद का सिद्धांत देकर गरीब के उत्थान का सपना देखा था. दीनदयाल उपाध्याय जन्मोत्सव स्मारक समिति यहां इसी सपने को सच कर रही है.

दीनदयाल धाम में प्रशिक्षण ले रहे लोग.

शादी के समय महिलाओं को दी जाती है सिलाई मशीन
जानकारी देते हुए महामंत्री पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति महोत्सव समिति डॉक्टर कमल कौशिक ने बताया कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का विचार था कि गांव के गरीब, किसान, मजदूर और महिलाओं का उत्थान हो, इसके लिए उन्होंने अपने जीवन को समर्पित किया था. पंडित दीनदयाल जी के विचारों को आगे बढ़ाते हुए पंडित दीनदयाल जन्म भूमि स्मारक समिति ने यहां सेवा के बहुत सारे कार्य प्रारंभ किए हैं, जिसमें जैविक खेती होती है, क्षेत्र के बालक बालिकाओं के पठन-पाठन के लिए सीबीएसई के 12वीं तक के स्कूल का संचालन होता है.

ब्लॉक के प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर शिशु मंदिर से अच्छी शिक्षा देने का काम होता है. साथ ही यहां की महिलाएं कैसे स्वावलंबी बने इसके लिए भी प्रयास किए जाते हैं. उन्होंने बताया कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि गांव उठेगा, महिलाएं उठेंगी तब देश का विकास होगा. इसी को ध्यान में रखकर के यहां सिलाई केंद्र पर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है और प्रशिक्षित होने पर उनको उनका मेहनताना मिलता है. डॉक्टर कमल कौशिक ने बताया कि जब उन बहनों की शादी होती है तो उन्हें एक सिलाई मशीन दी जाती है.

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