मथुराः भगवान की भक्ति में लोग अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते हैं. कण-कण में भगवान देखने वाले व्यक्ति ईश्वर से ऐसा नाता जोड़ लेते हैं जिसकी मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है. ऐसे ही एक भक्त रामगोपाल तिवारी हैं जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को ही बेटा मान लिया है. पिछले 4 वर्षों से वह भगवान श्री कृष्ण को आम छात्रों की तरह सांदीपनि मुनि स्कूल में पढ़ाने के लिए जाते हैं.
अन्य बच्चों की तरह ही स्कूल प्रशासन द्वारा भगवान श्रीकृष्ण को सारी सुविधाएं मुहैया कराई जातीं हैं. लड्डू गोपाल अपना स्कूल का होमवर्क भी करते हैं. स्कूल में उन्हें उनके साथी बच्चे मुक्षु गोपाल के नाम से जानते हैं. मुक्षु गोपाल प्रतिदिन रोज सुबह अपने पिता के साथ स्कूल पहुंचते हैं. स्कूल समय तक उनके पिता बाहर उनका इंतजार करते रहते हैं और छुट्टी होने के बाद वह उन्हें अपने साथ ही घर लेकर जाते हैं.
कैसे मिला स्कूल में दाखिला?
धार्मिक प्रवत्ति के रामगोपाल की यही दिनचर्या है कि वह अपने लाडले लड्डूगोपाल जिनको वह अपना पुत्र मानते हैं, के लालन-पालन में अपना समय बिताते हैं. एक दिन अचानक उनके मन मे सवाल उठा कि सब बच्चे स्कूल पढ़ने जाते हैं तो उनके लड्डू गोपाल क्यों नहीं पढ़ सकते. वह सीधे जा पहुंचे वृंदावन के सांदीपनि मुनि स्कूल और उन्होंने अपने लड्डू के एडमिशन कराने की गुहार लगा डाली. प्रधानाचार्या ने पहले तो मना कर दिया लेकिन जिद देखकर आधारकार्ड व जन्मप्रमाण मांग लिया. रामगोपाल तो अपनी जिद पर अड़े रहे. थकहार कर संचालक रूपा रघुनाथ दास ने एडमिशन की अनुमति दे दी.
तीसरी कक्षा में पढ़ते हैं लड्डूगोपाल : अब चार साल से स्कूल जाने वाले मुक्षु लड्डूगोपाल तीसरी कक्षा के छात्र हैं जो कि दुनिया के एकमात्र ऐसे छात्र हैं जिनका किसी की कोख से जन्म तो नहीं हुआ लेकिन अपने भक्त के भाव से शिक्षा जरूर ग्रहण कर रहे हैं. बाकायदा रोज अपने पिता रूपी भक्त के साथ स्कूल जाते हैं. क्लास में सामान्य बच्चों की तरह उन्हें सीट पर बैठाया जाता है. आम लोगों के लिए यह कौतूहल का विषय हो सकता है लेकिन रामगोपाल तिवारी के लिए प्रभु की मूरत उनके बच्चे से ज्यादा कुछ नहीं है.
स्कूल प्रधानाचार्य ने से मिली जानकारी : स्कूल प्रधानाचार्य दीपिका शर्मा ने बताया कि भगवान हमारे स्कूल में पढ़ने आते हैं. हम उनको एक विद्यार्थी की तरह ही मानते हैं. वह विद्यार्थी की तरह ही स्कूल आते हैं. उनका नाम मुक्षु गोपाल है. उनका एडमिशन आज से 4 साल पहले हमारे विद्यालय में हुआ था. जब उनके पिता जी उनको यहां लेकर आए थे. उस समय एडमिशन में हम लोगों को काफी समस्याएं आईं थी. जब एक नॉर्मल एडमिशन होता है तो उसके लिए आधार कार्ड जाति प्रमाण पत्र आदि सभी चीजों की आवश्यकता होती है. हमने पहले उनके पिता से यही कहा था कि जाति प्रमाण और आधार कार्ड नहीं होगा तो एडमिशन नहीं हो पाएगा.
वह पूरी यूनिफॉर्म में अपनी वाटर बोतल के साथ लंच बॉक्स लेकर आते हैं. इस समय वह थर्ड क्लास में हैं. इस साल उनके थर्ड क्लास के एग्जाम होंगे. उनके एग्जाम भी वैसे ही देंगे जैसे अन्य बच्चे देते हैं. कोरोना काल के समय बस वह स्कूल नहीं आ पाए थे लेकिन उन्हें प्रमोट किया गया था. जैसे अन्य विद्यार्थियों को प्रमोट किया गया था.
क्या कहना है रामगोपाल तिवारी का? : रामगोपाल तिवारी कहते हैं, 'यह भगवान नहीं है, यह मेरे बेटे हैं. इनकी प्रेरणा है कि मुझे स्कूल में पढ़ने जाना है तो मैं इनको स्कूल लेकर जाता हूं. इन चीजों का प्रमाण नहीं दिया जा सकता केवल अनुभव किया जा सकता है. इन्होंने जो अनुभव कराया, मैंने वही किया. स्कूल टाइम तक मैं खुद भी विद्यालय में बैठा रहता हूं, अपने बच्चे के लिए हर आदमी मेहनत करता है. यह मेरा बेटा है मेरे बेटे को हर चीज बढ़िया से बढ़िया पसंद है'.
वह आगे कहते हैं, ' हर साल बैग बढ़िया नया लाओ पानी की बोतल नई लाओ. मेरे शरीर में मेरे घुटनों में थोड़ी परेशानी है. उसके लिए मेरे बेटे ने अपने कंधे मुझे दे दिए हैं. यह कहता है मेरे कंधे पर हाथ रख कर चलो तो मैं जब उसके कंधे पर हाथ रखता हूं तो मुझे पता ही नहीं चलता कि मैं कितनी दूर चला'.
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