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आई बरसाने की होली, लट्ठ और ढाल किए जा रहे तैयार

ब्रज की होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है और यहां होली केवल रंग लगाकर नहीं, बल्कि एक अनोखे अंदाज में मनाई जाती है. बरसाना की लट्ठमार होली दुनियाभर में प्रसिद्ध है. इस साल 23 मार्च 2021 को लट्ठमार होली मनाई जाएगी.

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Published : Mar 16, 2021, 8:01 PM IST

Updated : Mar 17, 2021, 6:58 AM IST

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बरसाना में लट्‌ठमार होली

मथुरा: जिले में सदियों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है. राधा रानी की जन्मस्थली बरसाना में लट्ठमार होली को लेकर सभी तैयारियां पूरी की जा रही हैं. नंद गांव के ग्वालों पर बरसाना की गोपियां प्रेम भाव से लाठियां बरसाती हैं. इसका बचाव करने के लिए नंद गांव के ग्वाला रंग बिरंगी ढाले तैयार कर रहे हैं. द्वापर युग से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है. 23 मार्च को बरसाना में धूमधाम से लट्ठमार होली खेली जाएगी.

बरसाना में लट्‌ठमार होली.

इसे भी पढ़ें- ब्रज में होली रे रसिया...धुन पर उड़े अबीर गुलाल


23 मार्च को बरसाना में लट्ठमार होली

कृष्ण की नगरी में होली महोत्सव को लेकर श्रद्धालुओं पर गुलाल और रंगों की खुमारी चढ़ने लगी है. ब्रज में होली के अनेक रंग देखने को मिलते हैं. कहीं फूलों की होली, तो कहीं रंगों की, तो कहीं लट्ठमार होली खेली जाती है. राधा रानी की जन्मस्थली बरसाना में 23 मार्च को लट्ठमार होली बड़े ही धूमधाम के साथ खेली जाएगी, जिसको लेकर तैयारियां पूरी की जा रही हैं.

द्वापर युग से चली आ रही परंपरा

नंदगांव के ग्वाला बरसाना की गोपियों से प्रेम भाव की लट्ठमार होली खेलते आ रहे हैं. पौराणिक मान्यता है कि जब कान्हा बरसाना आए थे तो बरसाना की गोपियों ने कान्हा से नटझोली, राधा कृष्ण ने लीलाएं की. उन्हीं में से एक लट्ठमार होली की परंपरा चली आ रही है. नंद गांव के ग्वाला बरसाना पहुंचते हैं और गोपियों के साथ प्रेम भाव से लट्ठमार होली खेली जाती है.

विशेष पोशाक धारण की जाती है

लट्ठमार होली के दिन नंद गांव के ग्वाला धोती कुर्ता और बगल बंदी, सिर पर टोपी और हाथ में ढाल लेकर बरसाना पहुंचते हैं. वहीं बरसाना की गोपियां लहंगा-चुन्नी सात सिंगार और हाथ में लट्‌ठ रहता है. शुभ मुहूर्त होने पर बरसाना राधा रानी मंदिर पहुंचने के बाद लट्ठमार होली का भव्य नजारा देखने को मिलता है.

बरसाना में तैयार होते हैं ढाल

बरसाना कस्बे में रमेश सैनी का परिवार पिछले कई दशकों से पारंपरिक ढाल तैयार करते आ रहा है. तीन कारीगर मिलकर 2 दिन में एक ढाल तैयार करते हैं. रमेश सैनी का परिवार कई पीढ़ियों से यह काम करता चला आ रहा है.

बुजुर्ग हों या बच्चे सब खेलते हैं लट्ठमार होली

नंद गांव के ग्वाला हुकम चंद गोस्वामी ने बताया पिछले 60 वर्षों से बरसाना में लट्‌ठमार होली खेलते आ रहे हैं. द्वापर युग की चली आ रही इस परंपरा का आज भी निर्वाहन किया जा रहा है. लट्‌ठमार होली खेलने के दिन बुजुर्ग हो या बच्चे सब लोगों में जोश आ जाता है. नंद गांव के ग्वाला बरसाना पहुंचते हैं और राधा रानी मंदिर में दर्शन करने के बाद रंगीली गलियां चौक में धूमधाम से लट्ठमार होली खेलते हैं.

बरसाना स्थानीय निवासी पदम सिंह ने बताया कि बरसाना में लट्ठमार होली सदियों से खेली जा रही है. ऐसा कहा जाता है कि बरसाना में जब लट्ठमार होली खेली जाती है तो स्वर्गलोक से 84 करोड़ देवी देवता धरती पर पधारते हैं और होली का अद्भुत आनंद लेते हैं.

मथुरा: जिले में सदियों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है. राधा रानी की जन्मस्थली बरसाना में लट्ठमार होली को लेकर सभी तैयारियां पूरी की जा रही हैं. नंद गांव के ग्वालों पर बरसाना की गोपियां प्रेम भाव से लाठियां बरसाती हैं. इसका बचाव करने के लिए नंद गांव के ग्वाला रंग बिरंगी ढाले तैयार कर रहे हैं. द्वापर युग से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है. 23 मार्च को बरसाना में धूमधाम से लट्ठमार होली खेली जाएगी.

बरसाना में लट्‌ठमार होली.

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23 मार्च को बरसाना में लट्ठमार होली

कृष्ण की नगरी में होली महोत्सव को लेकर श्रद्धालुओं पर गुलाल और रंगों की खुमारी चढ़ने लगी है. ब्रज में होली के अनेक रंग देखने को मिलते हैं. कहीं फूलों की होली, तो कहीं रंगों की, तो कहीं लट्ठमार होली खेली जाती है. राधा रानी की जन्मस्थली बरसाना में 23 मार्च को लट्ठमार होली बड़े ही धूमधाम के साथ खेली जाएगी, जिसको लेकर तैयारियां पूरी की जा रही हैं.

द्वापर युग से चली आ रही परंपरा

नंदगांव के ग्वाला बरसाना की गोपियों से प्रेम भाव की लट्ठमार होली खेलते आ रहे हैं. पौराणिक मान्यता है कि जब कान्हा बरसाना आए थे तो बरसाना की गोपियों ने कान्हा से नटझोली, राधा कृष्ण ने लीलाएं की. उन्हीं में से एक लट्ठमार होली की परंपरा चली आ रही है. नंद गांव के ग्वाला बरसाना पहुंचते हैं और गोपियों के साथ प्रेम भाव से लट्ठमार होली खेली जाती है.

विशेष पोशाक धारण की जाती है

लट्ठमार होली के दिन नंद गांव के ग्वाला धोती कुर्ता और बगल बंदी, सिर पर टोपी और हाथ में ढाल लेकर बरसाना पहुंचते हैं. वहीं बरसाना की गोपियां लहंगा-चुन्नी सात सिंगार और हाथ में लट्‌ठ रहता है. शुभ मुहूर्त होने पर बरसाना राधा रानी मंदिर पहुंचने के बाद लट्ठमार होली का भव्य नजारा देखने को मिलता है.

बरसाना में तैयार होते हैं ढाल

बरसाना कस्बे में रमेश सैनी का परिवार पिछले कई दशकों से पारंपरिक ढाल तैयार करते आ रहा है. तीन कारीगर मिलकर 2 दिन में एक ढाल तैयार करते हैं. रमेश सैनी का परिवार कई पीढ़ियों से यह काम करता चला आ रहा है.

बुजुर्ग हों या बच्चे सब खेलते हैं लट्ठमार होली

नंद गांव के ग्वाला हुकम चंद गोस्वामी ने बताया पिछले 60 वर्षों से बरसाना में लट्‌ठमार होली खेलते आ रहे हैं. द्वापर युग की चली आ रही इस परंपरा का आज भी निर्वाहन किया जा रहा है. लट्‌ठमार होली खेलने के दिन बुजुर्ग हो या बच्चे सब लोगों में जोश आ जाता है. नंद गांव के ग्वाला बरसाना पहुंचते हैं और राधा रानी मंदिर में दर्शन करने के बाद रंगीली गलियां चौक में धूमधाम से लट्ठमार होली खेलते हैं.

बरसाना स्थानीय निवासी पदम सिंह ने बताया कि बरसाना में लट्ठमार होली सदियों से खेली जा रही है. ऐसा कहा जाता है कि बरसाना में जब लट्ठमार होली खेली जाती है तो स्वर्गलोक से 84 करोड़ देवी देवता धरती पर पधारते हैं और होली का अद्भुत आनंद लेते हैं.

Last Updated : Mar 17, 2021, 6:58 AM IST
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