मथुरा: गोवर्धन पूजा का पर्व पूरे देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. गिरिराज जी की नगरी में गोवर्धन पूजा का एक अलग ही महत्व माना जाता है. इसी दिन नटखट कन्हैया ने इंद्र का घमंड तोड़कर अपने ब्रजवासियों की जान बचाई थी. द्वापर युग से चली आ रही यह परंपरा देश में आज भी कायम है. गोवर्धन में अन्नकूट का भोग लगाकर गिरिराज जी की पूजा बड़े धूमधाम के साथ की जा रही है.
दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है. दूरदराज से हजारों की संख्या में श्रद्धालु गोवर्धन महाराज पर्वत की परिक्रमा करने के लिए मथुरा के गोवर्धन पहुंचे हैं. मान्यता है कि द्वापर युग में कृष्ण भगवान ने इंद्रदेव का घमंड तोड़कर ब्रज में अन्नकूट का पर्व प्रारंभ किया था. बृजवासी अपने कन्हैया के लिए 56 तरह के व्यंजन तैयार करके भोग लगाते हैं. गोवर्धन पर्वत पर दूध अभिषेक करके श्रद्धालु अन्नकूट का पर्व मना रहे हैं. 6000 वर्ष पूर्व से चली आ रही यह परंपरा आज भी कायम है.
किस तरह तोड़ा इंद्र का घमंड कृष्ण ने
द्वापर युग में ब्रज में इंद्र की पूजा बृजवासी करते चले आ रहे थे. कृष्ण भगवान ने अपने ब्रजवासियों से कहा कि हम इंद्र की पूजा क्यों करें, कोई दूसरे भगवान की पूजा करते हैं. इसपर ब्रजवासियों ने कहा कि हम अपने कान्हा की ही पूजा करेंगे. यह सुनकर इंद्र क्रोधित हो गए और ब्रज में मूसलाधार बारिश कर दी, जिससे सभी बृजवासी घबरा गए और अपने कान्हा को याद करने लगे. तभी कान्हा ने कन्नी उंगली पर पर्वत को उठाया और बृजवासियों की जान बचाई. कान्हा ने लगातार सात दिन तक पर्वत को उठाए रखा. जिसके बाद ब्रजवासियों ने नटखट कन्हैया को प्रसन्न करने के लिए अपने हाथ से 56 तरह के व्यंजन तैयार किए और भोग लगाया.
पर्वत ने भगवान कृष्ण से कहा
पर्वत ने भगवान कृष्ण से कहा कि हे प्रभु पूरे ब्रज में आपकी बृजवासी पूजा करते रहेंगे, तो मेरी पूजा कब होगी? यह सुनकर कृष्ण प्रसन्न हो गए और कहा कि दिवाली के अगले दिन इस पर्वत की पूजा की जाएगी. जिसे गोवर्धन पूजा के नाम से जाना जाएगा. सभी ब्रजवासी अलग-अलग व्यंजन तैयार करके इस पर्वत का भोग लगाएंगे, जिसे अन्नकूट पर्व के नाम से जाना जाएगा.
द्वापर युग से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है. इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए कृष्ण भगवान ने अपने ब्रजवासियों की जान बचाई, तभी से गोवर्धन अन्नकूट का पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. बृजवासी अपने हाथ से 56 तरह के व्यंजन तैयार करते हैं और यहां पर पर्वत सिला का भोग लगाते हैं. 21 किलोमीटर के दायरे में फैले हुए पर्वत की श्रद्धालु परिक्रमा भी लगाते हुए नजर आते हैं.
-महेश कौशिक, सेवायत