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मथुरा का हुरंगा : गोपियों ने बरसाए कोड़े तो ग्वालों ने मला गुलाल

मथुरा के बलदेव में होली के अगले दिन हुरंगा खेला गया. इस दौरान गोपियों ने ग्वालों पर कोड़े बरसाए तो वहीं ग्वालों ने गोपियों पर रंग और गुलाल मला.

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गोपियों और ग्वालों ने खेली हुरंगा होली.
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Published : Mar 11, 2020, 6:13 PM IST

मथुराः ब्रज के राजा बलदाऊ की नगरी बलदेव में बड़ी धूमधाम के साथ हुरंगा खेला गया. दूरदराज से हजारों की संख्या में आए श्रद्धालुओं ने हुरंगा का आनंद लिया. सदियों से चली आ रही इस परंपरा का आज भी लोग निर्वाहन कर रहे हैं. कृष्ण और बलराम रूपी ग्वालों को गोपियों ने प्रेम भाव के साथ कोड़ा मारकर हुरंगा खेला.

गोपियों और ग्वालों ने खेला हुरंगा.

मथुरा की होली पूरे भारत में ही नहीं विश्व में मशहूर है. ब्रज की होली हो या वृंदावन की होली, लोग पूरे आंनद के साथ मनाते हैं. गुरुवार को ब्रजवासी बलदाऊ की नगरी बलदेव में हुरंगा हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया. मंदिर परिसर में चारों तरफ रंग और गुलाल उड़ता रहा.

इसे भी पढ़ें- मथुरा: धूमधाम से मनाया जा रहा होली का त्योहार, देखें वीडियो

इस दौरान कृष्ण-बलदाऊ के रूप में सजे ग्वालों के साथ गोपियों ने कोड़ा मारकर होली खेली. बलदेव में यह होली सदियों से परंपरागत तौर पर खेली जा रही है. हुरंगा में गोपियां ग्वालों को कोड़े मारती हैं. उसके बदले में पुरुष गोपियों को रंग और गुलाल लगाते हैं.

मंदिर रिसीवर आरसी पांडे ने बताया कि ब्रज में होली होती है, लेकिन ब्रज के राजा बलदाऊ की नगरी में हुरंगा खेला जाता है. 500 सालों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है. मंदिर परिसर में बड़े हर्ष उल्लास के साथ हुरंगा खेला जा रहा है.

मथुराः ब्रज के राजा बलदाऊ की नगरी बलदेव में बड़ी धूमधाम के साथ हुरंगा खेला गया. दूरदराज से हजारों की संख्या में आए श्रद्धालुओं ने हुरंगा का आनंद लिया. सदियों से चली आ रही इस परंपरा का आज भी लोग निर्वाहन कर रहे हैं. कृष्ण और बलराम रूपी ग्वालों को गोपियों ने प्रेम भाव के साथ कोड़ा मारकर हुरंगा खेला.

गोपियों और ग्वालों ने खेला हुरंगा.

मथुरा की होली पूरे भारत में ही नहीं विश्व में मशहूर है. ब्रज की होली हो या वृंदावन की होली, लोग पूरे आंनद के साथ मनाते हैं. गुरुवार को ब्रजवासी बलदाऊ की नगरी बलदेव में हुरंगा हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया. मंदिर परिसर में चारों तरफ रंग और गुलाल उड़ता रहा.

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इस दौरान कृष्ण-बलदाऊ के रूप में सजे ग्वालों के साथ गोपियों ने कोड़ा मारकर होली खेली. बलदेव में यह होली सदियों से परंपरागत तौर पर खेली जा रही है. हुरंगा में गोपियां ग्वालों को कोड़े मारती हैं. उसके बदले में पुरुष गोपियों को रंग और गुलाल लगाते हैं.

मंदिर रिसीवर आरसी पांडे ने बताया कि ब्रज में होली होती है, लेकिन ब्रज के राजा बलदाऊ की नगरी में हुरंगा खेला जाता है. 500 सालों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है. मंदिर परिसर में बड़े हर्ष उल्लास के साथ हुरंगा खेला जा रहा है.

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