मथुरा: सब जग होरी ब्रज में होरा के साथ बुधवार को ब्रज में 40 दिनों से खेली जाने वाली होली का समापन हो गया. वृंदावन के प्रसिद्ध और दक्षिण भारतीय शैली में बने रंगनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं ने हर्षोल्लास के साथ होली खेली. मंदिर परिसर में 10 दिवसीय कार्यक्रम के अंतिम दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ होली खेलने का आयोजन किया गया. इस दौरान भगवान रंगनाथ को विशाल रथ में बैठा कर कस्बे में भ्रमण कराया गया और श्रद्धालुओं ने भगवान के साथ जमकर होली खेली.
उत्तर भारत के विशालतम भगवान रंगनाथ मंदिर में दस दिवसीय ब्रह्मोत्सव के आखिरी दिन ढोल नगाड़े और बैंड बाजे की धुन पर भगवान रंगनाथ स्वर्ण निर्मित गरुड़ वाहन पर विराजमान हुए. गरुड़ वाहन पर विराजमान भगवान के दर्शन कर श्रद्धालुओं ने भगवान के जयकारे लगाए.
सोने से बना गरुड़ वाहन: ब्रह्मोत्सव कार्यक्रम में सुबह की सवारी गरुड़ वाहन पर भगवान रंगनाथ विराजमान होकर निकले. रथ मंडप से भगवान की सवारी वैदिक मंत्रोच्चार के मध्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों की ध्वनि के साथ पुस्कर्णी द्वार पर पहुंची. यहां करीब एक घंटे तक सवारी खड़ी रखी गई. पुस्कर्णी द्वार पर सवारी खड़ी रहने के पीछे मान्यता है कि प्रति वर्ष दक्षिण भारत में भगवान के अनन्य भक्त दूधा स्वामी जी ब्रह्मोत्सव के अवसर पर दर्शन के लिए जाते थे. लेकिन, एक वर्ष अस्वस्थ होने के कारण वह दर्शन करने नहीं पहुंचे. तो जब भगवान की सवारी शुरू हुई तो भगवान गरुड़ जी को छोड़कर अचानक गायब हो गए. काफी देर तक सवारी पर पर्दा लगाए रखा गया. पुजारी ने प्रार्थना कर भगवान से वापस आने का निवेदन किया, इसके बाद जब पर्दा हटाकर देखा तो भगवान विराजमान थे. बाद में ज्ञात हुआ कि भगवान अपने अनन्य भक्त दूधा स्वामी जी को दर्शन देने उनके स्थान पर गए थे. तभी से करीब एक घंटे के लिए सवारी को द्वार पर खड़ा किया जाता है.
रंगनाथ मंदिर में दस दिवसीय ब्रह्मोत्सव: वृंदावन में स्थित दक्षिण भारतीय शैली के श्री रंगनाथ भगवान के मंदिर में दस दिवसीय ब्रह्मोत्सव कार्यक्रम हर साल आयोजित किया जाता है. इस उत्सव में भगवान सोने व चांदी से बने वाहने पर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देने उनके बीच जाते हैं. वैसे तो मंदिर में वर्ष भर के 365 दिनों में 380 से ज्यादा उत्सव मनाए जाते हैं. लेकिन ब्रह्मोत्सव सबसे खास है इसे मंदिर का वार्षिकोत्सव भी कहा जाता है. उत्तर भारत में यह रथ के मेला के नाम से विख्यात है.
गरुड़ वाहन सवारी के दर्शन से मिलती है पक्षी योनि से मुक्ति: श्रीराज गरुड़ जी वेदों की आत्मा है. उनके पंखों से सामवेद का गायन होता है. स्वर्ण निर्मित ऐसे गरुड़ जी पर वेदवैद्य भगवान विराजते हैं. इसी वाहन पर विराजकर भगवान गजराज को ग्राह के फंदे से मुक्त कराते हैं. इनके दर्शन से क्रूर ग्रहों की शांति होती है और दुस्वप्न दूर होते हैं. वेद परायण का फल प्राप्त होता है और पक्षी योनि से मुक्ति मिल जाती है.
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