मथुरा: ब्रज के मंदिरों में गोवर्धन पूजा बड़े ही धूमधाम से की गई. मथुरा शहर के कोतवाल कहे जाने वाले द्वारकाधीश मंदिर में गोवर्धन पूजा बड़े ही हर्षोल्लास के साथ की गई. दूरदराज से पहुंचे लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने गोवर्धन पूजा का आनंद लिया. गोवर्धन पूजा के दौरान मंदिर परिसर में लोगों ने गोवर्धन महाराज के जयकारे लगाए.
धूमधाम से मनाया गया गोवर्धन पूजा
देश भर में सोमवार को गोवर्धन पूजा बड़े ही धूमधाम के साथ की जा रही है. ब्रज के मंदिर और कान्हा की नगरी मथुरा के मंदिरों में गोवर्धन पूजा अलग-अलग अंदाज में की गई. शहर के द्वारकाधीश मंदिर में जो शहर के कोतवाल कहे जाते हैं, मंदिर परिसर में गाय के गोबर से गोवर्धन महाराज बनाए गए. फिर गोवर्धन महाराज का जलाभिषेक, दूध अभिषेक, रोड़ी, चंदन-हल्दी लगाकर पूजा की गई. इस दौरान मंदिर प्रांगण गिरिराज गोवर्धन महाराज के जयकारे से गूंज उठा.
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छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर बारिश से की थी ब्रजवासियों की रक्षा
पौराणिक मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान इंद्र की पूजा ब्रज में की जाती थी. भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया और नटखट कान्हा की लीलाओं ने लोगों का मन मोह लिया. इसके बाद बृजवासी भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने लगे. इंद्रलोक के राजा इंद्र ने ब्रज में देखा कि बृजवासी अब उनकी पूजा नहीं कर रहे हैं. एक छोटे से बालक कृष्ण की पूजा करते नजर आ रहे हैं. इंद्र क्रोधित हो गए और धरती लोक पर ब्रज में मूसलाधार बारिश की.
भगवान श्रीकृष्ण ने सात साल की आयु में सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया और ब्रजवासियों की रक्षा की. इस नजारे को देखकर इंद्र का घमंड टूट गया और इंद्र धरती लोक पर आए. उन्होंने भगवान कृष्ण से कहा कि प्रभु इस धरती पर ब्रज में आप ही की पूजा की जाएगी. तब नटखट कन्हैया को ब्रजवासियों ने अपने हाथ से अलग-अलग व्यंजन तैयार किए, जिसको अन्नकूट भी कहा जाता है. इसलिए पूरे ब्रज में और देश भर में गोवर्धन पूजा अन्नकूट के नाम से भी जानी जाती है.
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गोबर से क्यों तैयार किया जाता है गोवर्धन महाराज
दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. बताया जाता है कि गो का मतलब गोपाल, ब का मतलब ग्वाल बाल, र का मतलब ग्वाल वालों के संग भगवान ने रास किया. तीनों को मिलाकर गोबर शब्द बनता है और 33 करोड़ देवी-देवता गाय माता में विराजमान होते हैं, इसलिए गाय का शुद्ध गोबर से गोवर्धन महाराज की पूजा की जाती है.