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Hariyali Teej 2023: स्वर्ण-रजत हिंडोले में विराजेंगे बांके बिहारी, 5 साल में 20 किलो और एक कुंतल से हुआ था तैयार

वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी जी हरियाली तीज के पर्व पर अनोखे हिंडोले झूले पर विराजमान होते हैं. इस झूले में 20 किलो सोना और 100 किलो चांदी का इस्तेमाल हुआ है.

चांदी के झूले पर विराजमान होते हैं बिहारी जी
चांदी के झूले पर विराजमान होते हैं बिहारी जी
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Published : Aug 18, 2023, 5:09 PM IST

Updated : Aug 19, 2023, 7:04 PM IST

20 किलो सोने और 100 किलो चांदी के झूले पर विराजमान होते हैं बिहारी जी

मथुरा: ब्रज में हरियाली तीज को लेकर विशेष तैयारी की जाती हैं. महिलाएं सोलह श्रृंगार करके हरियाली तीज मानती हैं. वहीं, वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में हरियाली तीज के मौके पर ठाकुर बांके बिहारी जी अद्भुत झूले में विराजमान होते हैं. अनोखे हिंडोले में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देते हैं. यह परंपरा आजादी के साल से चली आ रही है.

वृंदावन में सुरक्षा के व्यापक इंतजामः 19 अगस्त को हरियाली तीज को लेकर जिला प्रशासन ने सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए हैं. क्योंकि बांके बिहारी मंदिर दर्शन करने के लिए दूरदराज से लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का आवागमन वृंदावन मथुरा में हो रहा है. जिला प्रशासन द्वारा हरियाली तीज को लेकर श्रद्धालुओं की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर बैठक की गई है. जिसमें सभी चेकप्वाइंट पर अतिरिक्त पुलिस बल के साथ बैरिकेडिंग लगाकर श्रद्धालुओं के मार्ग सुगम बनाए गए हैं.

10 घंटे में सेट होता है झूलाः वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी जी हरियाली तीज के पर्व पर जिस अद्भुत अनोखे हिंडोले पर विराजमान होकर श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं, वह उत्तराखंड के टनकपुर की लकड़ियों से बनाया गया था. जिसमें 20 किलो सोना और 100 किलो चांदी का इस्तेमाल हुआ था. हिंडोले को प्रतिवर्ष मंदिर प्रांगण में सेट करने में 8 से 10 घंटे का समय लगता है. दर्जनों कारीगर इस हिंडोले को एक दूसरे की कड़ियों को जोड़ते हैं. हरियाली तीज के पर्व पर इसी हिंडोले में विराजमान होकर बिहारी जी भक्तों को दर्शन देते हैं.

15 अगस्त 1947 को पहली बार दिए दर्शन: सेठ हर गुलाब बेरीवाला परिवार के लोगों ने बांके बिहारी जी के लिए झूला बनवाने का प्रण लिया था. इसके बाद बनारस के कुशल कारीगर द्वारा 1942 में हिंडोला बनवाने के लिए उत्तराखंड के टनकपुर के जंगलों से शीशम की लकड़ियां मंगवाई गई. 2 वर्ष तक इन लकड़ियों को धूप में सुखाया गया. 3 वर्ष तक कारीगरों ने झूला बनाने का कार्य किया और आजादी के दिन 15 अगस्त 1947 को पहली बार बांके बिहारी जी ने इस अद्भुत हिंडोले में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन दिए थे.

यह भी पढ़ें: बांके बिहारी मंदिर की सुरक्षा में तैनात निजी सुरक्षाकर्मी आपस में भिड़े, देखें VIDEO

यह भी पढ़ें: बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधक ने नहीं माना कोर्ट का आदेश, पुराने समय पर ही खोले गेट

20 किलो सोने और 100 किलो चांदी के झूले पर विराजमान होते हैं बिहारी जी

मथुरा: ब्रज में हरियाली तीज को लेकर विशेष तैयारी की जाती हैं. महिलाएं सोलह श्रृंगार करके हरियाली तीज मानती हैं. वहीं, वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में हरियाली तीज के मौके पर ठाकुर बांके बिहारी जी अद्भुत झूले में विराजमान होते हैं. अनोखे हिंडोले में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देते हैं. यह परंपरा आजादी के साल से चली आ रही है.

वृंदावन में सुरक्षा के व्यापक इंतजामः 19 अगस्त को हरियाली तीज को लेकर जिला प्रशासन ने सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए हैं. क्योंकि बांके बिहारी मंदिर दर्शन करने के लिए दूरदराज से लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का आवागमन वृंदावन मथुरा में हो रहा है. जिला प्रशासन द्वारा हरियाली तीज को लेकर श्रद्धालुओं की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर बैठक की गई है. जिसमें सभी चेकप्वाइंट पर अतिरिक्त पुलिस बल के साथ बैरिकेडिंग लगाकर श्रद्धालुओं के मार्ग सुगम बनाए गए हैं.

10 घंटे में सेट होता है झूलाः वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी जी हरियाली तीज के पर्व पर जिस अद्भुत अनोखे हिंडोले पर विराजमान होकर श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं, वह उत्तराखंड के टनकपुर की लकड़ियों से बनाया गया था. जिसमें 20 किलो सोना और 100 किलो चांदी का इस्तेमाल हुआ था. हिंडोले को प्रतिवर्ष मंदिर प्रांगण में सेट करने में 8 से 10 घंटे का समय लगता है. दर्जनों कारीगर इस हिंडोले को एक दूसरे की कड़ियों को जोड़ते हैं. हरियाली तीज के पर्व पर इसी हिंडोले में विराजमान होकर बिहारी जी भक्तों को दर्शन देते हैं.

15 अगस्त 1947 को पहली बार दिए दर्शन: सेठ हर गुलाब बेरीवाला परिवार के लोगों ने बांके बिहारी जी के लिए झूला बनवाने का प्रण लिया था. इसके बाद बनारस के कुशल कारीगर द्वारा 1942 में हिंडोला बनवाने के लिए उत्तराखंड के टनकपुर के जंगलों से शीशम की लकड़ियां मंगवाई गई. 2 वर्ष तक इन लकड़ियों को धूप में सुखाया गया. 3 वर्ष तक कारीगरों ने झूला बनाने का कार्य किया और आजादी के दिन 15 अगस्त 1947 को पहली बार बांके बिहारी जी ने इस अद्भुत हिंडोले में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन दिए थे.

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Last Updated : Aug 19, 2023, 7:04 PM IST
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