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sharad purnima 2021: सोने-चांदी के सिंहासन पर विराजित होंगे ठाकुरजी, कुंज लताओं में गोपियों को रिझायेंगे - बाँकेबिहारी मंदिर

शरद पूर्णिमा के दिन वृंदावन में श्री बांके बिहारी महाराज सोने-चांदी के सिंहासन पर विराजमान होकर दर्शन देंगे. श्रीकृष्ण जन्मस्थान में शरद महोत्सव की तैयारियां शुरू हो गई हैं. शरद पूर्णिमा पर अधिक संख्या में आने वाले भक्तों को लेकर दर्शन के समय को बढ़ाया गया है.

सोने चांदी के सिंहासन पर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देंगे बांके बिहारी
सोने चांदी के सिंहासन पर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देंगे बांके बिहारी
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Published : Oct 18, 2021, 7:47 PM IST

मथुरा: शरद पूर्णिमा के अवसर पर विश्व प्रसिद्ध श्री बांकेबिहारी मंदिर में नटखट कान्हा मोर मुकुट और कटि काछिनी धारण करेंगे. ठाकुरजी सोने और चांदी के सिंहासन पर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देंगे. आराध्य देव के दर्शन के लिए दूर-दराज से भक्तों अगवानी वृंदावन में हो रही है. श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो इसलिए मंदिर प्रशासन ने कुछ नियम बनाए हैं. अब सुबह और शाम एक-एक घंटा अतिरिक्त भक्तों के लिए ठाकुरजी के द्वार खुले रहेंगे.


वृंदावन में शरद पूर्णिमा का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा. जग प्रसिद्ध ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर एवं ठाकुर श्रीराधा सनेह बिहारी मंदिर में 20 अक्टूबर को आयोजित शरद पूर्णिमा पर्व को लेकर विशेष तैयारी की गई हैं. वहीं, मंदिर प्रशासक सिविल जज जूनियर डिविजन के आदेशानुसार शरद पूर्णिमा पर राजभोग एवं शयन भोग सेवा के समय में एक एक घंटा की वृद्धि की गई है. देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा को देखते हुए 20 अक्टूबर को राजभोग आरती दोपहर 11.55 के स्थान पर 12.55 बजे और शयन भोग आरती रात्रि 9.25 बजे के स्थान पर 10.25 बजे होगी.

श्री बांके बिहारी मंदिर में शरद पूर्णिमा की तैयारियां शुरू.


इसे भी पढ़ें-रेल रोको आंदोलन: प्रशासन के आगे बेबस नजर आए किसान, संयुक्त मोर्चा के बीच दिखी गुटबाजी


बता दें कि ठाकुर बांकेबिहारी वर्ष भर में केवल शरद पूर्णिमा के दिन ही मोर मुकुट, कटि-काछनी और बंशी धारण कर स्वर्ण-रजत सिंहासन पर विराजमान होते हैं. इस दिन ठाकुरजी को चन्द्रकला और खीर का विशेष भोग अर्पित किया जाता है. शरद पूर्णिमा पर्व को लेकर मंदिर के सेवायत गोस्वामियों द्वारा भी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है. मंदिर सेवाधिकारी बिट्टू गोस्वामी ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर में महारास लीला की थी. शरद पूर्णिमा की रात्रि बांके बिहारी महाराज के महारास की छवि को दर्शाया जाता है. बिहारी जी सालभर में एक बार बांसुरी धारण करते हैं. कमर में कट काछिनी होती है. कान्हा के मस्तक पर मोर मुकुट होता है और हाथ में छड़ी. बिहारी जी सोने-चांदी के सिंहासन पर विराजमान होकर गोपियों के मध्य कुंज लताओं के बीच अद्भुत और मनोहारी दर्शन देते हैं.

मथुरा: शरद पूर्णिमा के अवसर पर विश्व प्रसिद्ध श्री बांकेबिहारी मंदिर में नटखट कान्हा मोर मुकुट और कटि काछिनी धारण करेंगे. ठाकुरजी सोने और चांदी के सिंहासन पर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देंगे. आराध्य देव के दर्शन के लिए दूर-दराज से भक्तों अगवानी वृंदावन में हो रही है. श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो इसलिए मंदिर प्रशासन ने कुछ नियम बनाए हैं. अब सुबह और शाम एक-एक घंटा अतिरिक्त भक्तों के लिए ठाकुरजी के द्वार खुले रहेंगे.


वृंदावन में शरद पूर्णिमा का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा. जग प्रसिद्ध ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर एवं ठाकुर श्रीराधा सनेह बिहारी मंदिर में 20 अक्टूबर को आयोजित शरद पूर्णिमा पर्व को लेकर विशेष तैयारी की गई हैं. वहीं, मंदिर प्रशासक सिविल जज जूनियर डिविजन के आदेशानुसार शरद पूर्णिमा पर राजभोग एवं शयन भोग सेवा के समय में एक एक घंटा की वृद्धि की गई है. देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा को देखते हुए 20 अक्टूबर को राजभोग आरती दोपहर 11.55 के स्थान पर 12.55 बजे और शयन भोग आरती रात्रि 9.25 बजे के स्थान पर 10.25 बजे होगी.

श्री बांके बिहारी मंदिर में शरद पूर्णिमा की तैयारियां शुरू.


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बता दें कि ठाकुर बांकेबिहारी वर्ष भर में केवल शरद पूर्णिमा के दिन ही मोर मुकुट, कटि-काछनी और बंशी धारण कर स्वर्ण-रजत सिंहासन पर विराजमान होते हैं. इस दिन ठाकुरजी को चन्द्रकला और खीर का विशेष भोग अर्पित किया जाता है. शरद पूर्णिमा पर्व को लेकर मंदिर के सेवायत गोस्वामियों द्वारा भी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है. मंदिर सेवाधिकारी बिट्टू गोस्वामी ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर में महारास लीला की थी. शरद पूर्णिमा की रात्रि बांके बिहारी महाराज के महारास की छवि को दर्शाया जाता है. बिहारी जी सालभर में एक बार बांसुरी धारण करते हैं. कमर में कट काछिनी होती है. कान्हा के मस्तक पर मोर मुकुट होता है और हाथ में छड़ी. बिहारी जी सोने-चांदी के सिंहासन पर विराजमान होकर गोपियों के मध्य कुंज लताओं के बीच अद्भुत और मनोहारी दर्शन देते हैं.

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