मथुरा : धर्म नगरी वृंदावन में बुधवार को बिहार पंचमी पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया. ठाकुर बांकेबिहारी महाराज के प्राकट्य उत्सव के मौके पर उनकी प्राकट्यस्थली श्रीनिधिवनराज मन्दिर में प्रात: से ही भक्तों की भीड़ उमड़ने लगी. जहां भक्तों ने मंदिर परिसर में सोहनी सेवा की. वहीं मन्दिर के सेवायत गोस्वामियों के साथ-साथ भक्तों द्वारा केलिमाल पदों व बधाई गायन के साथ दूध, दही आदि पंचामृत से अपने आराध्य के प्राकट्य स्थल का अभिषेक कर पुण्यलाभ अर्जित किया. साथ ही आनन्दित भक्तजन जयघोष करते हुए अपनी खुशी का इजहार करने लगे, जिससे सम्पूर्ण मन्दिर परिसर जयघोष एवं बधाई गायन से गुंजायमान हो उठा.
क्या है बिहार पंचमी
आखिर क्या है यह बिहार पंचमी और क्या है इसका महत्व. आपको बता दें कि संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास जी ने अपनी संगीत साधना के माध्यम से मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पंचमी को ठाकुर बांकेबिहारी जी महाराज का प्राकट्य किया था. तभी से इस तिथि को बिहार पंचमी के रूप में जाना जाता है और भक्त अपने आराध्य ठाकुर बांकेबिहारी का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाते हैं.
मंदिर सेवायत ने जानकारी दी
मंदिर सेवायत रोहित गोस्वामी ने जानकारी देते हुए बताया कि जैसा कि आपने देखा कि श्रद्धालु भक्तों का सुबह 4 बजे से आना शुरू हुआ है. पहले उन्होंने दीपदान किया निधिवन राज मंदिर में उसके बाद में ठाकुर बांके बिहारी यहां प्रकट हुए थे, तो प्राकट्य स्थली है निधि राज मंदिर उधर का पंचामृत अभिषेक हुआ है. 151 किलो दूध, दही, शहद, इत्र, घी सबसे अभिषेक हुआ है. इसके बाद में बधाई गायन होगा. दूर-दूर से जो संत महात्मा आते हैं, वह पहले बधाई गाते हैं, उसके बाद समाज गायन होता है. समाज गायन के बाद में यहां पर स्वामी हरिदास जी की आरती होती है.
स्वामी हरिदास जी की आरती के बाद यहां से दिव्य शोभा यात्रा निकलती है. स्वामी हरिदास जी अपने लाडले ठाकुर बांके बिहारी जी को बधाई देने के लिए अपने चांदी के रथ में विराजमान होकर भ्रमण करते हुए बांके बिहारी मंदिर पहुंचते हैं. स्वामी हरिदास जी ने जो मूर्तियां प्रकट की थीं, वह दो मूर्तियां थीं. एक कृष्ण भगवान की थी और राधा जी की थी.
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जब स्वामी हरिदास जी राधा जी की सेवा करने लगे तो बिहारी जी रूठ कर बैठ गए और जब स्वामी हरिदास जी बिहारी जी की सेवा करने लगे तो राधा जी रूठ कर बैठ गईं, तो वह दोनों एक दूसरे में सम्मिलित हो गए. जब हम दर्शन करते हैं ठाकुर बांके बिहारी का तो हम एक प्राण दो देह के दर्शन करते हैं. उसमें राधा जी के भी दर्शन है और कृष्ण भगवान के भी दर्शन हैं.
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