मैनपुरी: शहीद वीरेंद्र सिंह यादव आज यानी बुधवार को पंचतत्व में विलीन हो गए. उनके बड़े बेटे ने मुखाग्नि दी. शहीद के अंतिम संस्कार के दौरान हजारों की संख्या में लोग मौजूद रहे. इस दौरान ग्रामीणों ने भारत माता की जय के नारे भी लगाए.
बता दें, जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूरी पर नानामऊ गांव के रहने वाले थे. उनके गांव से लगभग 15 से अधिक लोग सेना में सर्विस दे रहे हैं. इस परिवार के 8 लोग सेना में अपनी सेवा दे चुके हैं और कुछ दे रहे हैं. हालांकि वीरेंद्र सिंह यादव बाल्यावस्था से ही सरल स्वभाव के थे. बाल्यावस्था में ही पिता का साया सिर से उठ गया और पिता की मौत हो गई. ताऊ की देखरेख में उन्होंने गांव से ही अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरी की.
शहीद वीरेंद्र ने गांव से 10 किलोमीटर दूरी पर कस्बा कुरावली में स्थित देवनागरी इंटर कॉलेज में इंटर तक की शिक्षा ग्रहण की. बाद में उनके परिवार के जो लोग सेना में सर्विस कर रहे थे, उनके पास अपनी आजमाइश के लिए मिजोरम चले गए. वहीं से इनको 1985 के दौरान असम राइफल यूनिट में राइफलमैन पद पर तैनाती मिली और यह लगातार 35 साल तक सर्विस दे चुके थे.
वीरेंद्र करीब 10 माह पहले छुट्टी समाप्त करके गांव से ड्यूटी पर गए था और 20 अक्टूबर 2020 को उनको वापस आना था. रविवार की सुबह वीरेंद्र ने अपनी पत्नी मुकेश से फोन पर बताया कि उनकी ड्यूटी पानी के टैंकर पर लगी हुई है, उस पर जा रहा हैं और फोन काट दिया. इसके बाद कुछ देर बाद यूनिट से फोन आता है और बताया जाता है कि आपके पति जो कि टैंकर पर ड्यूटी कर रहे थे, उग्रवादी हमले में शहीद हो गए हैं.
इसकी सूचना मिलते ही उनकी पत्नी और बेटा चीख-पुकार करने लगे. आवाज सुनकर ग्रामीण भी उनके घर पर इकट्ठा हो गए. शहीद का पार्थिव शरीर पोस्टमार्टम के बाद असम राइफल के हेड क्वार्टर में लाया गया. वहां शहीद को श्रद्धांजलि दी गई. उसके बाद शहीद का पार्थिव शरीर मंगलवार को 3 बजे दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुंचा. एयरपोर्ट से सड़क के रास्ते एंबुलेंस के द्वारा शहीद का शव देर रात 11.30 बजे उनके पैतृक गांव नानामऊ पहुंचा.
यहां गांव में लोगों का हुजूम वीर सपूत की एक झलक देखने के लिए उतावला हो रहा था. ग्रामीणों ने भारत माता की जय के नारे लगाए. वहीं शहीद की पत्नी मुकेश वहीं बेहोश होकर गिर पड़ी. शहीद के बड़े बेटे ने मुखाग्नि दी. शहीद के अंतिम दर्शन के लिए लोगों का पहले से तांता लगा हुआ था. बुधवार सुबह 9 बजे शहीद का अंतिम संस्कार किया गया. शहीद अपने पीछे पत्नी और तीन बेटों को छोड़ गए हैं. शहीद का बड़ा बेटा बबलू एनडीआरएफ में तैनात हैं, दूसरा बेटा किसान और तीसरा बेटा छात्र है.