महोबा: इस्लाम की खातिर अपना सिर कटाने वाले इमाम हुसैन को यूं तो सारी दुनिया में अपने-अपने तरीके से याद किया जाता है लेकिन महोबा जनपद के कस्बा चरखारी में मुहर्रम की सातवीं तारीख पर इमाम हुसैन की दुलदुल सवारी पाक घोड़ा पिछले 166 सालों से निकाला जा रहा है. जी हां हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक इस जुलूस से सभी धर्मों के लोगों का खासा लगाव है. ऐसी मान्यता है कि इमाम हुसैन का घोड़ा जिस अकीदतमंत का प्रसाद खा लेता है उसकी मुराद पूरी हो जाती है और अकीदतमंद चांदी का नीबू सवारी में चढ़ाता है. यहां 70 से 80 हजार की भीड़ इमाम हुसैन के जुलूस का दीदार करने आती है. वहीं, डीएम और एसपी ने घोड़ें को जलेबी खिलाकर जुलूस का शुभारंभ किया.
दरअसल, इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हसन और हुसैन ने सच्चाई और अपनी उम्मत के लिए अपनी जान कि परवाह नहीं की और इमाम हुसैन कर्बला के मैदान में शहीद हो गए. उनकी इस शहादत को इस्लाम के लोग ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के लोग मुहर्रम को याद करते है. इसी के चलते चरखारी में पिछले 166 सालों से इमाम हुसैन को याद करने के लिए इमाम हुसैन की सवारी दुलदुल निकाली जाती है. माना जाता है कि इमाम हुसैन दुलदुल नाम के अपने इसी घोड़े पर बैठ कर कर्बला के मैदान में यजीदी फौज से अपनी उम्मत और सच्चाई के लिए जंग करने गए थे और नमाज के वक्त सजदे में सिर कटाकर अपने आप को दीन की खातिर शहीद कर दिया था. इसी याद को ताजा करने के लिए इस गम के माहौल में जुलूस निकाला जाता है.
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वहीं, ये सवारी चरखारी कसबे के मुकेरीपुरा मुहाल से दुलदुल सजाकर निकाली गई. कसबे के विभिन्न इमाम चौकों पर पहुंच कर हाजरी दी गई. वर्षों से इसी श्रद्धा के साथ जुलूस निकलता है, जिसमें मुरादे करने जनपद के ही नहीं बल्कि नजदीकी प्रदेश से भी अकीदतमंद अपनी मन्नते लेकर पहुंचते है और पाक घोड़े को जलेबी खिलाकर प्रसाद चढ़ाते है. डीएम मनोज कुमार और एसपी सुधा सिंह ने इमाम हुसैन की सवारी घोड़े को जलेबी खिलाकर जुलूस को रवाना किया, जो सुबह तक कस्बे में निर्धारित स्थानों में घूमता रहा. इस मौके पर डीएम मनोज कुमार ने कहा कि सच्चाई के रास्ते पर हुसैन ने अपने आप को कुर्बान कर दिया. सत्य के लिए सबकुछ लुटा दिया. उनकी इस सीख को सभी के जीवन मे उतारना है और जो सत्य के विपरीत काम करें उनके खिलाफ खड़ा होना चाहिए.
बताया जाता है कि इमाम हुसैन के इस जुलूस में जो भी अकीदतमंत मन्नत मांगता है, उसे अपनी मन्नत के लिए घोड़े के शरीर में लगे तीरों में नीबू लगाने पड़ता है. जब अकीदतमंत कि मन्नत पूरी हो जाती है तो अकीदतमंत अगले साल इसी नीबू कि जगह चांदी और सोने का नीबू अपनी श्रद्धा के अनुसार चढ़ाता है. यहां सोने के दूकानदार हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करते हुए इमाम की सवारी में लगने वाले चांदी के नीबू की बिक्री के लिए पूरा सहयोग करते है. इनका मानना है कि आने वाले अकीदतमंद सवारी में चांदी का नीबू चढ़ाने के लिए यहां आकर नीबू खरीदते है. हजरत इमाम हुसैन की इस सवारी में हिन्दू भाइयों द्वारा लंगर का इंतजाम भी किया जाता है, जिसे यहां आने वाले लोग प्रसाद के रूप में खाते है. वहीं, लोगों कि मान्यता है कि इमाम के घोड़े को जलेबी प्रसाद के रूप में खिलाने से उनकी सारी मन्नतें पूरी हो जाती है. शायद यही वजह है कि यहां जलेबी की दुकाने बड़ी तादाद में लगती है और अकीदतमंत घोड़े को खिलाने में लग जाते है. कहा जाता है कि जिस अकीदतमंत का पाक घोड़ा प्रसाद खाता है मानो उसका यहां आना ही सफल हो जाता है.
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