लखनऊ : हाल ही में कोटा में बहुत सारे युवा जो पढ़ने जाते हैं वह सुसाइड कर रहे हैं. वजह है कॅरियर में सलेक्शन न हो पाना. ऐसी स्थिति में युवा सुसाइड करते हैं. राजधानी लखनऊ में भी अन्य जिलों से युवा अपना कॅरियर बनाने के लिए आते हैं. जब यहां पर सफलता हासिल नहीं होती है तो उनकी मानसिक स्थिति खराब हो जाती है. इसका जीता जागता उदाहरण है सरकारी अस्पतालों के मनोरोग विभाग में युवाओं की संख्या. आंकड़ों के अनुसार अगर 200 लोगों की ओपीडी हो रही है तो 60 से 80 संख्या में युवा होते हैं जो एंजायटी से पीड़ित होते हैं. एंजायटी युवाओं में होने वाली सबसे बड़ा बीमारी है.
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सिविल अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. दीप्ति सिंह के मुताबिक बहुत से युवा प्रतियोगिता की पढ़ाई करते हैं. 12वीं के बाद जब भी कोई युवा कंपटीशन की पढ़ाई में जुटते हैं तो उन्हें अपने बारे में मालूम होता है कि उनकी क्या क्षमता होती है. अपनी क्षमता के अनुसार वह बच्चा आगे की पढ़ाई को निर्धारित करता है. लेकिन यही बच्चे जब प्रतियोगी परीक्षाओं की पढ़ाई में पीछे होने लगते हैं तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं. बच्चे बाहर पढ़ाई करने के लिए जाते हैं तो वहां पर उनकी न तो अभिभावक होते हैं और न ही बहुत अच्छे दोस्त बन पाते हैं. जिसे वह अपने दिल की बातें साझा कर सके. परीक्षा में लगातार फेल होना या सफलता हासिल न होना एक बड़ी समस्या बन जाती है.
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डॉ. दीप्ति सिंह ने कहा कि वैसे तो हर उम्र के व्यक्तियों में आत्महत्या की प्रवृत्ति देखी जा रही है, लेकिन 15 से 35 वर्ष की आयु के व्यक्तियों में इसकी संख्या अधिक सामने आती है. युवाओं में आत्महत्या करने के कई कारण हैं. इसके मुख्य कारणों में नौकरी का नहीं मिलना या नौकरी छूट जाना मुख्य वजह बन रहा है. परीक्षा पास न हो पाना, वैकेंसी का नहीं आना और बार-बार प्रतियोगी परीक्षा में फेल हो जाना, परीक्षा में हर बार एक या दो अंक से पीछे रह जाना जैसी कई वजहों बड़ी समस्या बन रही है. सामाजिक तौर पर मानसिक तनाव, बच्चों में पढ़ाई का तनाव, किसानों द्वारा बैंकों से लिए गए ऋण का समय पर नहीं चुका पाना, दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों के चलते स्त्रियों पर मानसिक तनाव अथवा छेड़खानी या दुष्कर्म के बाद समाज के तानों से घबराकर भी आत्महत्या कर लेना भी एक मुख्य कारण है.
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डॉ. दीप्ति सिंह ने बताया कि जब भी कोई बच्चा पढ़ने के मकसद से किसी अन्य जिले, राज्य या देश में जाता है तो उसे किसी प्रकार की मानसिक टेंशन न दें. कई बार युवाओं के माता-पिता उनसे इतनी उम्मीदें लगा लेते हैं कि वही बच्चा जब पूरी कोशिश करते हुए भी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल नहीं हो पता है तो वह खुद हताश हो जाता है. उसके मन में आत्महत्या जैसे विचार आने लगते हैं कि वह क्यों और किस वजह से अपने माता-पिता के सपनों को पूरा नहीं कर पाया या फिर यहां रहकर उनके पैसे खर्च कर रहे हैं. इस तरीके के विचार बच्चों को आत्महत्या की खाई में ढकेलते हैं. इसलिए कोशिश करें कि अपने बच्चों की मनोदशा को आप खुद समझें और उसे पहचानें कि बच्चे की व्यवहार में किस तरह से बदलाव हो रहा है. अगर आपको ऐसा महसूस हो रहा है कि बच्चे की बात करने में हताशा नजर आ रही है या फिर वह अधिक शांत रहने लगा है तो कोशिश करें कि उसे हंसाएं. उसके साथ अधिक से अधिक समय बिताएं, ताकि वह अपनी मन की बात को आपसे साझा करें.
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