लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार धार्मिक-आध्यात्मिक क्षेत्र में लगातार काम कर रही है. इसी को ध्यान में रखते हुए जहां अयोध्या में ऐतिहासिक दीपावली मनाई गई. वहीं 100 वर्ष पूरे होने पर चौरी-चौरा शताब्दी वर्ष भी मनाया जा रहा है. इसी कड़ी में प्रदेश सरकार और पर्यटन विभाग कबीर उत्सव मनाने जा रहा है. इसका मुख्य मकसद युवाओं को संत-महात्माओं के बारे में उनकी शिक्षाओं के बारे में जागरुक करना है. ताकि वह संत महात्माओं के आदर्शों पर चल सकें.
प्रदेश सरकार ने चौरी-चौरा घटना के 100 वर्ष पूरे होने पर गोरखपुर के चौरी-चौरा में शताब्दी वर्ष मनाया. इस कार्यक्रम का शुभारंभ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअल तरीके से किया. वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चौरी-चौरा पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि भी दी. यह महोत्सव वर्ष भर मनाया जाएगा. इसके तहत प्रदेश के सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के जनपदों और स्थलों पर वर्ष पर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. इसका मुख्य मकसद यह है कि युवा पीढ़ी के साथ-साथ आने वाली नई पीढ़ी को देश के लिए किए गए बलिदानों और बलिदानियों के कार्यों के बारे में जागरूक किया जा सके. वहीं अब प्रदेश सरकार 22 फरवरी से कबीर उत्सव मनाने जा रही है. 3 दिनों तक चलने वाले इस कबीर उत्सव में कबीरदास के जन्म स्थान वाराणसी के लहरतारा से लेकर मगहर तक कार्यक्रम किए जाएंगे. इन कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं को कबीरदास द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी भी दी जाएगी.
क्या कहते हैं प्रमुख सचिव संस्कृति
प्रदेश सरकार द्वारा 22 फरवरी से 25 फरवरी तक मनाए जाने वाले कबीर उत्सव के बारे में प्रमुख सचिव संस्कृति मुकेश मेश्राम ने ईटीवी भारत को जानकारी दी. बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार आध्यात्मिक और धार्मिक क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण कार्य कर रही है. प्रदेश के पर्यटन स्थलों को लगातार विकसित किया जा रहा है. इसके साथ ही प्रदेश के 250 स्थल ऐसे हैं जहां पर मेले लगते हैं. ऐसे सभी स्थलों पर मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था की जा रही है. जिससे यहां आने वाले पर्यटकों को किसी तरह की समस्या ना हो.
'कबीर दास ने जाति धर्म से उठकर दिया सामाजिक समरसता का संदेश'
प्रमुख सचिव संस्कृति मुकेश मेश्राम का कहना है कि हमारे प्रदेश में बहुत से ऐसे संत-महात्मा हुए हैं, जिन्होंने जाति धर्म से ऊपर उठकर सामाजिक समरसता का संदेश दिया. इन संतो के काम को युवाओं के बीच में कैसे पहुंचाया जाए, इसीको ध्यान में रखते हुए कबीर उत्सव मनाया जा रहा है. मुकेश मेश्राम ने बताया कि कबीरदास के जन्म स्थान वाराणसी के लहरतारा से शुरू होकर जिन रास्तों से कबीर दास मगहर पहुंचे, उसे कबीर पथ का नाम दिया गया है. 22 फरवरी से शुरू होने वाले इस कबीर उत्सव में इस पूरे पथ पर झांकियों के माध्यम से और म्यूजिक के नए कलेवर के साथ कबीर दास की घटनाओं साखी, सबद रमैनी और दोहे के बारे में लोगों को जागरूक किया जाएगा. ताकि युवा पीढ़ी कबीर दास के संदेश को समझ सके.