लखनऊ : उत्तर प्रदेश की सियासत में साल 2022 अनूठे प्रयोगों वाला रहा. भारतीय जनता पार्टी को कई प्रयोगों के जरिए एक बार फिर से सरकार बनाने का मौका मिला. इसमें सबसे बड़ा प्रयोग बुलडोजर को ब्रांड बनाने का था. योगी आदित्यनाथ का नाम बाबा बुलडोजर को तौर पर मशहूर हुआ. बुलडोजर बाबा के नारे ने भाजपा को जमकर फायदा पहुंचाया. समाजवादी पार्टी ने भी कुछ अभिनव प्रयोगों के जरिए पहले से अधिक कामयाबी हासिल की. ओमप्रकाश राजभर के साथ उनका गठबंधन पूर्वांचल में भाजपा पर भारी पड़ा था. अखिलेश यादव ने भी लोकसभा की सीट को छोड़कर करहल की विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ा. आजम खान ने भी रामपुर लोकसभा सीट से इस्तीफा देकर विधानसभा चुनाव लड़ा. विधानसभा में जीत के बाद दोनों नेताओं ने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया. मगर उनका यह दांव उल्टा पड़ा. उपचुनाव में समाजवादी पार्टी दोनों लोकसभा सीट गंवा बैठी.
विधानसभा चुनाव के बाद बुलडोजर जीत का प्रतीक बन गया. कांग्रेस ने भी यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान 2022 में एक प्रयोग किया. प्रियंका गांधी ने 40 फीसदी टिकट महिलाओं को बांटे. मगर कुल 2 सीटें ही जीत सकी. महिला प्रत्याशी के तौर पर सिर्फ आराधना मिश्रा मोना के हाथ जीत आई. बहुजन समाज पार्टी ने अकेले ही चुनाव मैदान में किस्मत आजमाई थी. मगर मायावती का करिश्मा कम हुआ और बहुजन समाज पार्टी केवल एक ही सीट जीत सकी.
यूपी में योगी आदित्यनाथ की बाबा बुल्डोजर की छवि बनी. 15 अगस्त 2022 को अमेरिका के न्यू जर्सी में आयाजित स्वतंत्रता दिवस समारोह में बाबा बुल्डोजर की झांकी दिखी. 1. योगी आदित्यनाथ को अखिलेश ने बुलडोजर बाबा कहा, भाजपा ने इसे ब्रांड बना दिया : योगी आदित्यनाथ अपने पहले कार्यकाल में भी लगातार भू माफिया के खिलाफ बुलडोजर के जरिए अवैध निर्माण को हटाने का काम करते रहे. पश्चिम उत्तर प्रदेश में चुनाव के पहले चरण की एक जनसभा में अखिलेश यादव ने उनको बुलडोजर बाबा बोल दिया. फिर क्या था भारतीय जनता पार्टी ने इस नाम को ब्रांड की तरह प्रचारित करना शुरू कर दिया. मुख्यमंत्री की जनसभाओं में बुलडोजर खड़े किए जाने लगे. बुलडोजर को माफिया के खिलाफ इस्तेमाल किया जाने वाला हथियार बताया गया. बुलडोजर बाबा की छवि ऐसी निकली कि भारतीय जनता पार्टी को ऐतिहासिक जीत मिली. 270 से अधिक सीटें भाजपा ने जीत लीं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक बार फिर सरकार के सिरमौर बने.विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान यादव परिवार की अपर्णा यादव भाजपाई बन गईं. 2. मुलायम परिवार के कई मेंबर भाजपाई बने, विपक्ष की धार कमजोर हुई : भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा चुनाव के अभियान के दौरान मुलायम सिंह यादव के परिवार को तोड़कर भाजपाई बनाया. उनकी छोटी पुत्र वधू अपर्णा यादव को भाजपा में शामिल किया. मुलायम सिंह यादव के साढू प्रमोद गुप्ता भाजपा में आए. दिवंगत मुलायम सिंह यादव के एक समधी हरिमोहन यादव भी भाजपा में शामिल हुए. भारतीय जनता पार्टी को भले ही इस प्रयोग से फायदा मिला मगर भाजपा में आए हुए नेताओं को कोई खास लाभ अब तक नहीं हो सका है.विधानसभा चुनाव के पहले अखिलेश और ओमप्रकाश राजभर गठबंधन के साथी बने. चुनाव के बाद राजभर ने रास्ता अलग कर लिया. 3. चुनाव में अखिलेश और राजभर की जोड़ी बनी, चुनाव के बाद टूटी : समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सुहेलदेव समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया. सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने समाजवादी पार्टी के लिए जमकर मेहनत की. गठबंधन में मिली सीटों के अलावा वे हर जगह समाजवादी पार्टी के साथ कंधे से कंधा मिलाते रहे. जिसका असर यह हुआ कि अंबेडकरनगर से लेकर गाजीपुर और बलिया तक राजभर समाज ने भाजपा का साथ छोड़कर समाजवादी पार्टी का हाथ पकड़ लिया. जिसकी वजह से भाजपा को पूर्वांचल में जमकर नुकसान हुआ. बीजेपी 2017 की 325 सीटों की सफलता को 2022 में नहीं दुहरा पाई. यह बात दीगर है कि चुनाव बाद राजभर फिर से बिदक गए. अब वे भाजपा के नजदीक हो समाजवादी पार्टी से काफी दूर हैं.बीजेपी छोड़ने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्मपाल सैनी से दिग्गज सपा में जाने के बाद चुनाव हार गए. 4. दलबदल के प्रयोग हुआ फेल, गच्चा खा गए भाजपा के पूर्व मंत्री : 2017 में भारतीय जनता पार्टी की जब सरकार बनी तब बसपा से आए स्वामी प्रसाद मौर्य दारा सिंह चौहान और धर्मपाल सैनी मंत्री बनाए गए थे. मगर 2022 के चुनाव के पहले तीनों ने पाला बदला और वे समाजवादी पार्टी में चले गए. जनवरी 2022 में हुए परिवर्तन पर खासा सियासी घमासान हुआ था. मगर जब विधानसभा चुनाव हुए तो दारा सिंह चौहान तो जीत गए मगर स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्मपाल सैनी अपना चुनाव हार गए. जिससे उनकी सियासी ताकत कमजोर हुई. स्वामी प्रसाद मौर्य को समाजवादी पार्टी ने एमएलसी बनाकर फिर भी उनका सम्मान वापस किया.यूपी में कांग्रेस विधानसभा चुनाव हार गई तो हाईकमान ने नए प्रदेश अध्यक्ष को जिम्मेदारी दी. 5. फेल हुआ कांग्रेस का लड़की हूं लड़ सकती हूं का नारा : विधानसभा चुनाव 2022 में कांग्रेस ने लड़की हूं लड़ सकती हूं का नारा दिया था. इस नारे के साथ ही कांग्रेस ने 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को बांटे. इस नारे का जमकर प्रचार किया गया. मगर जब नतीजा आया तो कांग्रेस का प्रदर्शन और भी खराब हो चुका था. पूरे प्रदेश में कांग्रेस ने केवल 2 सीटें ही जीती थीं. जिसमें से 1 सीट महिला प्रत्याशी आराधना मिश्रा मोना को मिली थी. बाकी अधिकांश जगह पर कांग्रेस की जमानत ही जब्त हुई थी. प्रियंका गांधी की यात्रा वाला फार्मूला भी फेल ही साबित हुआ. 6. बसपा अकेले उतरी मैदान में और अकेला ही विधायक बना : 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर चुकी मायावती ने इस बार 'एकला चलो' की राह पकड़ी थी. बीएसपी ने किसी दल से गठबंधन नहीं किया. सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने वाली बहुजन समाज पार्टी ने चुनाव बाद केवल अकेला विधायक ही दिया. बलिया के रसड़ा से उनके विधायक उमाशंकर सिंह जी सदन में पहुंच सके. 90 के दशक के बाद बहुजन समाज पार्टी का उत्तर प्रदेश में यह सबसे खराब प्रदर्शन रहा.रामपुर से जीतने वाले बीजेपी के आकाश सक्सेना पहले हिंदू विधायक बने. उन्होंने आजम खान के उम्मीदवार को हराया. 7. लोकसभा छोड़ने का दांव समाजवादी पार्टी पर पड़ा भारी : विधानसभा चुनाव 2022 के बाद करहल से विधायक बने अखिलेश यादव और रामपुर से विधायक बने आजम खान ने अपनी अपनी लोकसभा सीटें छोड़कर विधानसभा में जाना उचित समझा. जिसके बाद हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने दोनों सीटें हार कर इसका खामियाजा भुगता. भारतीय जनता पार्टी ने रामपुरा आजमगढ़ लोकसभा सीटें जीती और उनकी लोकसभा में संख्या और अधिक बढ़ गई.मैनपुरी लोकसभा के उपचुना से पहले अखिलेश यादव परिवार को एकजुट करने में कामयाब रहे. 8. कामयाब रहा सपा का डिंपल यादव को मैनपुरी में लड़ाने का दांव : समाजवादी पार्टी का डिंपल यादव को मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव के दिवंगत हो जाने के बाद खाली हुई सीट पर चुनाव लड़ाने का दांव कामयाब रहा. डिंपल यादव ने यह सीट पौने तीन लाख के करीब वोटों से जीती. जिससे समाजवादी पार्टी को पिछले काफी नुकसानों की भरपाई होती हुई नजर आई. यही नहीं भाजपा से खतौली की सीट भी समाजवादी पार्टी ने छीन ली. भाजपा के लिए बस इतनी राहत रही कि आजादी के बाद पहली बार उनको रामपुर विधानसभा सीट पर जीत हासिल हुई.बीजेपी ने ब्राह्मण चेहरे के तौर पर ब्रजेश पाठक को यूपी का उपमुख्यमंत्री बनाया. लखनऊ के डॉ दिनेश शर्मा की छुट्टी कर दी गई. 9. भाजपा ने किया मंत्रियों के बदलाव और डिप्टी सीएम के परिवर्तन का प्रयोग: 2022 विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने मंत्रालय में कही अहम बदलाव किए. 5 साल तक डिप्टी सीएम रहे डॉ दिनेश शर्मा को मंत्रालय में जगह नहीं मिली. उनकी जगह ब्राह्मण चेहरा बृजेश पाठक को डिप्टी सीएम बनाया गया. चुनाव हारने के बावजूद केशव प्रसाद मौर्य डिप्टी सीएम रहे मगर उनको अपेक्षाकृत कमजोर विभाग देकर संगठन एक अलग संकेत दिया. श्रीकांत शर्मा, डॉ महेंद्र सिंह और सिद्धार्थ नाथ सिंह जैसे बड़े चेहरे दोबारा मंत्री नहीं बने.2022 में यूपी भाजपा को नया प्रदेश अध्यक्ष और नया धर्मपाल सिंह को महामंत्री संगठन मिला. दोनों वेस्टर्न यूपी से हैं. 10. संगठन में भाजपा ने खेला पश्चिम उत्तर प्रदेश का कार्ड : भारतीय जनता पार्टी ने संगठन में महत्वपूर्ण बदलाव किए. अनेक कयासों को किनारे करते हुए भाजपा ने इस बार अनूठा प्रयोग किया. महामंत्री संगठन और प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पश्चिम उत्तर प्रदेश के चेहरों पर ही भरोसा किया गया. बिजनौर के धर्मपाल सिंह को महामंत्री संगठन बनाया गया. जबकि मुरादाबाद के भूपेंद्र सिंह चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया. जबकि माना जा रहा था कि भाजपा इस बार किसी ब्राह्मण या दलित को प्रदेश अध्यक्ष बनाएगी.पढ़ें : आजम खान बोले, योगीजी मेरे पूरे परिवार को विधानसभा के सामने गोली मरवा दें