लखनऊ: साल 2013 से प्रत्येक वर्ष 3 मार्च को यानि आज के दिन विश्व वन्यजीव दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन देश और दुनिया में लोगों को अलग-अलग थीम के माध्यम से प्रकृति से विलुप्त हो रहे जीव, जंगलों के संरक्षण करने में प्राकृतिक संसाधनों के स्थाई उपयोग और टिकाऊ प्रबंध को सुनिश्चित करने में जैविक विविधता के नुकसान को रोकने के लिए जागरूक किया जाता है. हर वर्ष इसकी अलग-अलग थीम होती है और इस वर्ष के वन्यजीव दिवस की थीम है 'आजीविका लोग और ग्रह'.
पर्यावरणविद सुशील द्विवेदी ने बताया कि जानवरों के लगातार हो रहे शिकार और मानव एवं वन्यजीवों के बीच चल रहे संघर्ष ने कई जातियों के अस्तित्व को संकट में डाल दिया है. वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की एक नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार मनुष्य और वन्यजीवों के बीच टकराव तथा संघर्ष लगातार बढ़ रहा था. इंसानी आबादी का बढ़ता दबाव वन्यजीवों के लिए मुसीबत बनता जा रहा है, क्योंकि जंगल कम हो रहे हैं. विशेषज्ञों के अनुसार विश्व के कार्बन उत्सर्जन का 80% समुद्र एवं जंगल सोकते हैं. धरती के फेफड़े कहे जाने वाले अमेजन एवं ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग से जैव विविधता को बहुत नुकसान हुआ है. बढ़ते वैश्विक ताप के कारण पहाड़ों की बर्फ पिघलने से समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है, जो समुद्र तटीय देशों के अस्तित्व पर एक संकट के रूप में खड़ा है. मनुष्य की आर्थिक संसाधनों को जुटाने की लालसा में वनस्पतियों का अंधाधुंध दोहन किया गया है.
जंगलों के खत्म होने से भारत के राष्ट्रीय पशु समेत कई वन्यजीव या तो लुप्त हो चुके हैं या फिर लुप्त होने की कगार पर हैं. दांत, खाल, नाखून , सींग और हड्डियों के लिए हाथी, बाघ, हिरण, गैंडा, मोर आदि का खूब शिकार किया गया. गोरैया भी अब बहुत कम ही दिखाई पड़ती है. खेतों से अधिकाधिक फसल उत्पादन लेने के लिए अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग के कारण न केवल मृदा जीवन हीन हुई है, बल्कि केंचुआ और मेंढक भी गहराई में समाहित हो गए हैं.