लखनऊ: एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान याची की ओर से पेश अधिवक्ता को काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी. न्यायालय ने पाया कि जिस व्यक्ति की ओर से वह पैरवी कर रहे हैं उसके खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) उसी विषय पर कई जनहित याचिकाएं दाखिल करने पर जांच कराने की बात कह चुका है. न्यायालय ने इस तथ्य का खुलासा न करने का कारण जब याची के अधिवक्ता से पूछा तो उनके पास कोई जवाब नहीं था. हालांकि उन्होंने यह स्वीकार किया कि एनजीटी के उक्त आदेश की जानकारी उन्हें नहीं थी. इस पर न्यायालय ने अधिवक्ता को नसीहत दी कि आगे से उन्हें अपने मुवक्किल की कुचेष्टा के प्रति भी सावधान रहना चाहिए.
दरअसल पर्यावरण से सम्बंधित एक मुद्दे में याचिका दायर की गई थी. मामले की सुनवाई के दौरान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिवक्ता की ओर से बताया गया कि इसी विषय पर इसी याची ने एनजीटी के समक्ष बारी-बारी कई याचिकाएं दाखिल की थीं. जिसके बाद एनजीटी ने याची से उक्त याचिकाओं को दाखिल करने के लिये लगने वाले पैसे का स्रोत पूछा था. एनजीटी ने कहा था कि यदि शपथ पत्र के द्वारा इसकी जानकारी नहीं दी जाती है तो वह याची के खिलाफ जांच कराएगी और उसके ऐसे केस दाखिल करने पर रोक लगा देगी.
जिसके बाद उसी याची ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के समक्ष वर्तमान याचिका उसी विषय पर दाखिल कर दी. याची के अधिवक्ता का कहना था कि उन्हें एनजीटी के आदेश की जानकारी उनके मुवक्किल द्वारा नहीं दी गई थी. इस पर न्यायालय ने कहा कि वह युवा वकील हैं, इसलिए न्यायालय समझती है कि उत्साह में ऐसी गलतियां हो जाती हैं, लेकिन भविष्य में उन्हें मुवक्किलों की कुचेष्टा के प्रति भी सतर्क रहना चाहिए.