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यूपी में हथियार रखना बना लोगों का स्टेटस सिंबल - अब्बास अंसारी

देश का कोई भी नागरिक अपनी आत्मरक्षा के लिए आवेदन कर प्रशासन से लाइसेंस लेकर शस्त्र ले सकता है. हालांकि इसके जरिए किसी पर हमला या किसी को धमकाया नहीं जा सकता और न ही सार्वजनिक रूप से इसका प्रदर्शन भी किया जा सकता है, लेकिन आज के दौर में ये लाइसेंसी हथियार कुछ लोगों के स्टेटस सिंबल बन गया है.

हथियार.
हथियार.
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Published : Jan 7, 2021, 7:42 PM IST

लखनऊ: भारत का कोई भी नागरिक अपनी आत्मरक्षा के लिए आवेदन कर प्रशासन से लाइसेंस लेकर शस्त्र ले सकता है. हालांकि इसके जरिए किसी पर हमला या किसी को धमकाया नहीं जा सकता और सार्वजनिक रूप से इसका प्रदर्शन भी नहीं की जा सकता, लेकिन आज के दौर में लाइसेंसी हथियार कुछ लोगों के स्टेटस सिंबल बन गया है तो वहीं दूसरों को डराने का हथियार बन गया है. प्रशासन की अनदेखी के कारण ही ऐसे लाइसेंसी हथियार जघन अपराधों में इस्तेमाल हो रहे हैं.

जानकारी देते संवाददाता.

जिले में हजारों लोगों ने आत्मरक्षा और बदमाशों से खौफ के चलते शस्त्र लाइसेंस लेने के लिए आवेदन किया हुआ है, लेकिन इनकी फाइलें थानों में या फिर कलेक्ट्रेट स्थित असलहा विभाग में धूल फांक रही हैं. उनके आवेदनों पर सुनवाई करने वाला कोई नहीं है, जबकि मुकदमा दर्ज होने के बाद भी अपराधियों के पास शस्त्र लाइसेंस की कोई कमी नहीं है. वह आम लोगों पर रौब दिखाने के लिए लाइसेंसी शस्त्र साथ लेकर चलते हैं. पुलिस-प्रशासन इस बात की जानकारी होने के बावजूद भी खामोश है. वहीं लाइसेंस के मामले की जानकारी देने को लेकर कोई भी अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है.

शस्त्र लाइसेंस के मामले में सबसे आगे यूपी
गौरतलब है कि लाइसेंसी शस्त्र रखने के मामले में यूपी सबसे आगे है. सूबे में शस्त्र लाइसेंस स्टेटस सिंबल है. बता दें कि एक जनवरी 2018 से 15 सितंबर 2020 के बीच अखिल भारतीय वैधता वाले कुल 94,400 शस्त्र लाइसेंस का नवीकरण किया गया, जिनमें से 19,238 उत्तर प्रदेश से थे. केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों में यह उजागर हुआ है.

अपराधियों के पास शस्त्र लाइसेंस की पोल खुली
पिछले दिनों एनकाउंटर में मारे गए कानपुर के हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के पास दो शस्त्र लाइसेंस थे. मामले की पोल खुल जाने पर मुख्यमंत्री ने पुलिस प्रशासन पर गहरी नाराजगी जताते हुए प्रदेश के सभी जिलों में अपराधियों के खिलाफ अभियान शुरू कराया था. इसी तरह बाहुबली मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी पर जनवरी 2020 में आर्म्स एक्ट के तहत केस दर्ज हुआ था. जाने-माने निशानेबाज अब्बास अंसारी ने ऊंची हैसियत के चलते गैरकानूनी तरीके से 7 शास्त्रों की सीमा से ज्यादा आठ शस्त्र लाइसेंस हासिल कर लिए थे. इसके अलावा मौके पर अलग-अलग और प्रतिबंधित बोर के असलहे बरामद किए जाने के साथ मानक से अधिक कारतूस प्राप्त हुए थे. इसी तरह अन्य कई मामलों में मुकदमा दर्ज होने के बाद भी अपराधियों के पास शस्त्र लाइसेंस की पोल खुली है.

अपराधियों के शस्त्र लाइसेंस पकड़ में नहीं आते
पुलिस-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सीधा सवाल ये उठता है कि शस्त्र लाइसेंस धारकों को हर तीन साल में सत्यापन और नवीनीकरण कराना होता है, लेकिन शस्त्र लाइसेंस धारक अपराधी है और उसके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज है तो वह कैसे सत्यापन में पकड़ में नहीं आता. आखिर रिपोर्ट दर्ज होने के बावजूद भी पुलिस कैसे अपराधियों के शस्त्र लाइसेंस के नवीनीकरण पर मुहर लगा देती है. इसकी भी गंभीरता से जांच होनी चाहिए.

लाइसेंस की प्रक्रिया जटिल
जानकारों का मानना है कि लाइसेंस की प्रक्रिया काफी जटिल होती है. हालांकि लाइसेंस मिलने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है. यह अलग-अलग हथियार के लिए अलग-अलग होती है. कई लोगों को एक महीने में लाइसेंस मिल जाता है तो कई लोगों का पूरा साल चला जाता है.

लाइसेंस पाने की ये है प्रक्रिया

  • सबसे पहले डीएम या कमिश्नर के ऑफिस में एप्लीकेशन देनी होती है. इसमें हथियार रखने की वजह बतानी होती है.
  • इसके बाद पुलिस जांच के लिए एप्लीकेशन को एसपी ऑफिस में भेज दिया जाता है.वहां से एप्लीकेशन आवेदक के क्षेत्रीय थाने में जाती है.
  • थाने से आवेदक का सत्यापन किया जाता है इसमें उसके स्थाई पता, बैकग्राउंड,कामकाज और अपराधिक रिकॉर्ड के बारे में पूरी जानकारी पुलिस पता करती है. सत्यापन के बाद एप्लीकेशन को जिला क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो में भेजा जाता है. वहां आवेदक के अपराधिक रिकॉर्ड का पता लगाया जाता है. थाने से रिपोर्ट को दोबारा चेक किया जाता है. जांच के बाद एप्लीकेशन के साथ रिपोर्ट को वापस एसपी ऑफिस भेज दिया जाता है.
  • एसपी ऑफिस से कुछ आवश्यक कागजी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद फ़ाइल को डीएम या पुलिस कमिश्नर के ऑफिस लौटा दिया जाता है.
  • इसके साथ ही आवेदक के बारे में एलआईयू (लोकल इंटेलिजेंस यूनिट) भी जांच करता है.
  • पुलिस और एलआईयू से मिली रिपोर्ट के आधार पर डीएम आवेदक को लाइसेंस देने या न देने का फैसला करता है.

इन आधार पर रद्द हो सकता है लाइसेंस

  • किसी विवाह, पार्टी या उत्सव के समय खुशी जताने में इसका उपयोग नहीं हो सकता.
  • किसी को डराने धमकाने के लिए लाइसेंसी हथियार काम में नहीं लिया जा सकता.
  • शिकार, मनोरंजन के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते.
  • प्रशासन के आदेश पर चुनाव आदि विशेष अवसरों पर हथियार को थाने, पुलिस लाइन या गन स्टोर आदि में जमा कराना होता है.
  • किसी को बेचा नहीं जा सकता है.
  • जिस व्यक्ति के नाम पर लाइसेंस है केवल वही उसे आत्मरक्षा में चला सकता है.

इसे भी पढ़ें- ड्राइविंग लाइसेंस के लिए हो रहा ये खेल, पकड़े जाने पर होगी जेल

लखनऊ: भारत का कोई भी नागरिक अपनी आत्मरक्षा के लिए आवेदन कर प्रशासन से लाइसेंस लेकर शस्त्र ले सकता है. हालांकि इसके जरिए किसी पर हमला या किसी को धमकाया नहीं जा सकता और सार्वजनिक रूप से इसका प्रदर्शन भी नहीं की जा सकता, लेकिन आज के दौर में लाइसेंसी हथियार कुछ लोगों के स्टेटस सिंबल बन गया है तो वहीं दूसरों को डराने का हथियार बन गया है. प्रशासन की अनदेखी के कारण ही ऐसे लाइसेंसी हथियार जघन अपराधों में इस्तेमाल हो रहे हैं.

जानकारी देते संवाददाता.

जिले में हजारों लोगों ने आत्मरक्षा और बदमाशों से खौफ के चलते शस्त्र लाइसेंस लेने के लिए आवेदन किया हुआ है, लेकिन इनकी फाइलें थानों में या फिर कलेक्ट्रेट स्थित असलहा विभाग में धूल फांक रही हैं. उनके आवेदनों पर सुनवाई करने वाला कोई नहीं है, जबकि मुकदमा दर्ज होने के बाद भी अपराधियों के पास शस्त्र लाइसेंस की कोई कमी नहीं है. वह आम लोगों पर रौब दिखाने के लिए लाइसेंसी शस्त्र साथ लेकर चलते हैं. पुलिस-प्रशासन इस बात की जानकारी होने के बावजूद भी खामोश है. वहीं लाइसेंस के मामले की जानकारी देने को लेकर कोई भी अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है.

शस्त्र लाइसेंस के मामले में सबसे आगे यूपी
गौरतलब है कि लाइसेंसी शस्त्र रखने के मामले में यूपी सबसे आगे है. सूबे में शस्त्र लाइसेंस स्टेटस सिंबल है. बता दें कि एक जनवरी 2018 से 15 सितंबर 2020 के बीच अखिल भारतीय वैधता वाले कुल 94,400 शस्त्र लाइसेंस का नवीकरण किया गया, जिनमें से 19,238 उत्तर प्रदेश से थे. केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों में यह उजागर हुआ है.

अपराधियों के पास शस्त्र लाइसेंस की पोल खुली
पिछले दिनों एनकाउंटर में मारे गए कानपुर के हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के पास दो शस्त्र लाइसेंस थे. मामले की पोल खुल जाने पर मुख्यमंत्री ने पुलिस प्रशासन पर गहरी नाराजगी जताते हुए प्रदेश के सभी जिलों में अपराधियों के खिलाफ अभियान शुरू कराया था. इसी तरह बाहुबली मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी पर जनवरी 2020 में आर्म्स एक्ट के तहत केस दर्ज हुआ था. जाने-माने निशानेबाज अब्बास अंसारी ने ऊंची हैसियत के चलते गैरकानूनी तरीके से 7 शास्त्रों की सीमा से ज्यादा आठ शस्त्र लाइसेंस हासिल कर लिए थे. इसके अलावा मौके पर अलग-अलग और प्रतिबंधित बोर के असलहे बरामद किए जाने के साथ मानक से अधिक कारतूस प्राप्त हुए थे. इसी तरह अन्य कई मामलों में मुकदमा दर्ज होने के बाद भी अपराधियों के पास शस्त्र लाइसेंस की पोल खुली है.

अपराधियों के शस्त्र लाइसेंस पकड़ में नहीं आते
पुलिस-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सीधा सवाल ये उठता है कि शस्त्र लाइसेंस धारकों को हर तीन साल में सत्यापन और नवीनीकरण कराना होता है, लेकिन शस्त्र लाइसेंस धारक अपराधी है और उसके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज है तो वह कैसे सत्यापन में पकड़ में नहीं आता. आखिर रिपोर्ट दर्ज होने के बावजूद भी पुलिस कैसे अपराधियों के शस्त्र लाइसेंस के नवीनीकरण पर मुहर लगा देती है. इसकी भी गंभीरता से जांच होनी चाहिए.

लाइसेंस की प्रक्रिया जटिल
जानकारों का मानना है कि लाइसेंस की प्रक्रिया काफी जटिल होती है. हालांकि लाइसेंस मिलने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है. यह अलग-अलग हथियार के लिए अलग-अलग होती है. कई लोगों को एक महीने में लाइसेंस मिल जाता है तो कई लोगों का पूरा साल चला जाता है.

लाइसेंस पाने की ये है प्रक्रिया

  • सबसे पहले डीएम या कमिश्नर के ऑफिस में एप्लीकेशन देनी होती है. इसमें हथियार रखने की वजह बतानी होती है.
  • इसके बाद पुलिस जांच के लिए एप्लीकेशन को एसपी ऑफिस में भेज दिया जाता है.वहां से एप्लीकेशन आवेदक के क्षेत्रीय थाने में जाती है.
  • थाने से आवेदक का सत्यापन किया जाता है इसमें उसके स्थाई पता, बैकग्राउंड,कामकाज और अपराधिक रिकॉर्ड के बारे में पूरी जानकारी पुलिस पता करती है. सत्यापन के बाद एप्लीकेशन को जिला क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो में भेजा जाता है. वहां आवेदक के अपराधिक रिकॉर्ड का पता लगाया जाता है. थाने से रिपोर्ट को दोबारा चेक किया जाता है. जांच के बाद एप्लीकेशन के साथ रिपोर्ट को वापस एसपी ऑफिस भेज दिया जाता है.
  • एसपी ऑफिस से कुछ आवश्यक कागजी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद फ़ाइल को डीएम या पुलिस कमिश्नर के ऑफिस लौटा दिया जाता है.
  • इसके साथ ही आवेदक के बारे में एलआईयू (लोकल इंटेलिजेंस यूनिट) भी जांच करता है.
  • पुलिस और एलआईयू से मिली रिपोर्ट के आधार पर डीएम आवेदक को लाइसेंस देने या न देने का फैसला करता है.

इन आधार पर रद्द हो सकता है लाइसेंस

  • किसी विवाह, पार्टी या उत्सव के समय खुशी जताने में इसका उपयोग नहीं हो सकता.
  • किसी को डराने धमकाने के लिए लाइसेंसी हथियार काम में नहीं लिया जा सकता.
  • शिकार, मनोरंजन के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते.
  • प्रशासन के आदेश पर चुनाव आदि विशेष अवसरों पर हथियार को थाने, पुलिस लाइन या गन स्टोर आदि में जमा कराना होता है.
  • किसी को बेचा नहीं जा सकता है.
  • जिस व्यक्ति के नाम पर लाइसेंस है केवल वही उसे आत्मरक्षा में चला सकता है.

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