लखनऊ : क्षय रोग यानि टीबी ( ट्यूबरक्लोसिस) से हर साल देश में करीब पांच लाख लोग दम तोड़ देते हैं. यह मौत टीबी के साथ अन्य बीमारियों से होती हैं. टीबी से रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ते ही एचआईवी, डायबिटीज व कई अन्य बीमारियों के साथ मानसिक समस्याएं घेर लेती हैं. ऐसे में टीबी की पुष्टि होते ही अन्य जरूरी जांच कराकर जोखिम का पता लगाना जरूरी है. यह बातें केजीएमयू के पलमोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. वेदप्रकाश ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहीं.
उन्होंने बातचीत के दौरान कहा कि केजीएमयू के द्वारा राजधानी लखनऊ के कई गांवों को गोद लिया गया है. इसके अलावा बहुत से बच्चों को भी गोद लिया गया है. इन लोगों को गोद लेने का उद्देश्य मात्र इतना है कि टीवी से पीड़ित मरीजों को समय से समुचित इलाज मिल सके. भरण-पोषण हो सके, क्योंकि टीवी का इलाज बहुत लंबा चलता है. इलाज लंबा होने के कारण बहुत से मरीजों आर्थिक तौर से कमजोर हैं, वह अधूरे में ही इलाज छोड़ देते हैं. इसलिए केजीएमयू की ओर से छोटे बच्चों को गोद लिया गया है. वहीं भारत सरकार के द्वारा क्षह रोग उन्मूलन के तहत पीड़ित मरीज के अकाउंट में 500 रुपये धनराशि भी दी जाती है ताकि वह अपने खान-पान का ख्याल रख सकें. उन्होंने बताया कि टीबी के साथ कुपोषण, उच्च रक्तचाप, पैरों में सूजन, रेस्परेटरी रेट, ब्लड सुगर, हीमोग्लोबिन, पल्स रेट, चेस्ट एक्स-रे, ऑक्सीजन सेचुरेशन और बॉडी मॉस इंडेक्स का असामान्य होना, एचआईवी, बलगम में खून और असामान्य तापमान जैसी असामान्यताएं स्थिति को गंभीर बना सकती हैं. टीबी की दवाओं से ठीक हो जाएगा या उसे अतिरिक्त देखभाल की जरूरत है. जिससे मरीज को काफी राहत मिलेगी.
केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में आने वाले 361 पल्मोनरी टीबी के मरीजों पर यह शोध किया गया. अध्ययन में पाया गया कि इनमें से 13 प्रतिशत मरीजों में कोरोना संक्रमण था. कुल मरीजों के 69 प्रतिशत मरीजों में समय से इलाज न मिलने के कारण ड्रग रजिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस के मामले सामने आए. 49 प्रतिशत मरीजों को एंग्जाइटी, 23 प्रतिशत मरीजों में डर और 67 प्रतिशत मरीजों में अवसाद के लक्षण मिले. टीबी के इलाज में देरी के 58 प्रतिशत मामले भी सामने आए. रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि अध्ययन में यह बात सामने आई कि कोरोना संक्रमण के दौरान टीबी के मरीजों को हर कदम पर कोरोना की जांच करवानी पड़ती थी. इसके अलावा चिकित्सकों की अनुपलब्धता और इलाज में होने वाले देरी के कारण उनमें अवसाद अधिक पाया गया. निक्षय पोर्टल पर 5 लाख 23 हजार 188 मरीज पंजीकृत हैं. इनमें से 3 लाख 73 हजार 302 मरीज सरकारी और 1 लाख 49 हजार 886 मरीज प्राइवेट डॉक्टरों से इलाज करा रहें हैं.
समय पर जांच और इलाज से होगा टीबी का सफाया : ब्रजेश पाठक
विश्व टीबी दिवस पर उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि प्रदेश से टीबी को खात्मा तय समय पर होगा. प्रधानमंत्री के निर्देशन में टीबी मुक्त भारत बनाना है. टीबी के सफाए के लिए समय पर बीमारी की पहचान जरूरी है. स्वास्थ्य विभाग इस काम को बखूबी निभा रहा है. उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में यूपी में करीब पांच लाख 23 हजार टीबी के मरीज हैं. करीब 8,000 गर्भवती महिलाओं में टीबी के लक्षण पाए जाते हैं. एक अप्रैल 2018 से हर माह पंजीकृत टीबी मरीज के बैंक खाते में 500 रुपये भेजे जा रहे हैं. अब तक 16 लाख 18 हजार टीबी मरीजों के बैंक खाते में यह रकम भेजी जा चुकी है. कुल चार करोड़ 20 लाख का भुगतान किया जा चुका है. उप मुख्यमंत्री ने कहा कि यूपी में मरीजों की सुविधाओं के लिए 2500 केंद्रों टीबी जांच व इलाज की सुविधा है. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर मेडिकल संस्थान तक शामिल हैं. सरकारी अस्पतालों में टीबी की जांच मुफ्त हो रही है. टीबी की सटीक जांच के लिए 150 सीबी नॉट मशीनें स्थापित की गई हैं. 448 ट्रूनॉट मशीन भी लगाई गई हैं.