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लखनऊ के कुकरैल के आसपास का पानी पीने लायक नहीं, शोध में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य - ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय

लखनऊ के कुकरैल इलाके में पानी बेहद दूषित हो चुका है. यहां के पिकनिक स्पाॅट क्षेत्र के वाटर सैंपल में मैग्नीशियम और नाइट्रेट की मात्रा बेहद ज्यादा है जो सेहत के लिए खतरनाक है. इसका खुलासा ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय के एक रिसर्च में आया है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 15, 2023, 11:22 AM IST

भाषा विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. प्रवीण राय ने दी जानकारी

लखनऊ : ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय के एक रिसर्च में राजधानी के विभिन्न क्षेत्रों में अंडरग्राउंड वाटर को लेकर हुए एक शोध में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. विश्वविद्यालय के शोध में जहां आलमबाग, लालबाग व चिनहट क्षेत्र का पानी साफ पाया गया है तो वहीं कुकरैल क्षेत्र के आस-पास का पानी काफी गंदा मिला है. विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. प्रवीण राय व शोध छात्र नजमू साकिब इस शोध पर कम कर रहे हैं. शोध के पहले चरण में जो रिपोर्ट सामने आई है उसके आधार पर उन्होंने एक जनरल प्रकाशित किया है. उनका शोध प्रकाशन स्विट्जरलैंड के प्रतिष्ठित जनरल में हुआ है. जिसका इंपैक्ट फैक्ट 3.4 है.

कुकरैल इलाके में पानी बेहद दूषित
कुकरैल इलाके में पानी बेहद दूषित

शहर के 40 जगहों से अंडरग्राउंड वाटर के सैंपल लिए गए : डॉ. प्रवीण राय ने शोध में लखनऊ शहर के अलग-अलग 40 जगहों से पानी के नमूने लेकर प्रयोगशाला में इसकी जांच कराई है. प्राप्त आंकड़ों में जल गुणवत्ता सूचकांक तैयार हुआ और भौगोलिक सूचना प्रणाली प्रयोग कर मानचित्र बनाए. उन्होंने बताया कि 'शोध से निष्कर्ष निकला है कि राजधानी के आलमबाग, लालबाग, डालीगंज व चिनहट का जल उच्च गुणवत्तापूर्ण है, जबकि कुकरैल के आस-पास के स्थान पर भूमि जल के साथ-साथ जल भी प्रदूषण और पीने योग्य नहीं है. कुछ जगहों के नमूनों में नाइट्रेट मैग्नीशियम अधिक मात्रा में मिला है. इसके अलावा कुकरैल क्षेत्र के टर्बिडिटी की अधिकता से जल की गुणवत्ता प्रभावित हुई है. यहां जल पीने योग्य बनाने के लिए कठोर कदम उठाने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि अभी तक के शोध में पता चला है कि शहरीकरण से भूमि उपयोग बदलने से भूजल की गुणवत्ता काफी प्रभावित हो रही है.'



सभी 40 जगह के सैंपल की होगी जांच : डॉ राय ने बताया कि 'मानसून का मौसम समाप्त होने के बाद हमने जिन 40 जगह से भूमिगत जल का सैंपल लिया है, दोबारा से इन सभी जगह से जल का नमूना लेकर उनमें फिर से इन्हीं सब मिनरल्स की जांच की जाएगी. उन्होंने कहा कि अगर मानसून में जल स्तर में हुए बदलाव के बाद भी अगर सैंपल में ज्यादा बदलाव नहीं आता है तो तो फिर यह सरकार के लिए चिंता का विषय है. उन्होंने बताया कि अंडरग्राउंड वाटर की क्वालिटी को बेहतर बनाए रखने के लिए जितने भी रिजर्व वायर व वेटलैंड हैं उनको संरक्षित करना बहुत जरूरी हो गया है. अगर इसी तरह बिना प्लानिंग के सभी रिजर्वायर और वेटलैंड को समाप्त किया जाएगा तो अंडरग्राउंड वाटर तो खत्म होगा ही साथ ही इस वाटर रिसोर्स में काफी तेजी से हानिकारक तत्व की मात्रा बढ़ेगी.'

यह भी पढ़ें : ज्यादा पानी भी सेहत के लिए है हानिकारक, जानिए उम्र के हिसाब से किसको कितना पानी पीना चाहिए

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भाषा विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. प्रवीण राय ने दी जानकारी

लखनऊ : ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय के एक रिसर्च में राजधानी के विभिन्न क्षेत्रों में अंडरग्राउंड वाटर को लेकर हुए एक शोध में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. विश्वविद्यालय के शोध में जहां आलमबाग, लालबाग व चिनहट क्षेत्र का पानी साफ पाया गया है तो वहीं कुकरैल क्षेत्र के आस-पास का पानी काफी गंदा मिला है. विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. प्रवीण राय व शोध छात्र नजमू साकिब इस शोध पर कम कर रहे हैं. शोध के पहले चरण में जो रिपोर्ट सामने आई है उसके आधार पर उन्होंने एक जनरल प्रकाशित किया है. उनका शोध प्रकाशन स्विट्जरलैंड के प्रतिष्ठित जनरल में हुआ है. जिसका इंपैक्ट फैक्ट 3.4 है.

कुकरैल इलाके में पानी बेहद दूषित
कुकरैल इलाके में पानी बेहद दूषित

शहर के 40 जगहों से अंडरग्राउंड वाटर के सैंपल लिए गए : डॉ. प्रवीण राय ने शोध में लखनऊ शहर के अलग-अलग 40 जगहों से पानी के नमूने लेकर प्रयोगशाला में इसकी जांच कराई है. प्राप्त आंकड़ों में जल गुणवत्ता सूचकांक तैयार हुआ और भौगोलिक सूचना प्रणाली प्रयोग कर मानचित्र बनाए. उन्होंने बताया कि 'शोध से निष्कर्ष निकला है कि राजधानी के आलमबाग, लालबाग, डालीगंज व चिनहट का जल उच्च गुणवत्तापूर्ण है, जबकि कुकरैल के आस-पास के स्थान पर भूमि जल के साथ-साथ जल भी प्रदूषण और पीने योग्य नहीं है. कुछ जगहों के नमूनों में नाइट्रेट मैग्नीशियम अधिक मात्रा में मिला है. इसके अलावा कुकरैल क्षेत्र के टर्बिडिटी की अधिकता से जल की गुणवत्ता प्रभावित हुई है. यहां जल पीने योग्य बनाने के लिए कठोर कदम उठाने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि अभी तक के शोध में पता चला है कि शहरीकरण से भूमि उपयोग बदलने से भूजल की गुणवत्ता काफी प्रभावित हो रही है.'



सभी 40 जगह के सैंपल की होगी जांच : डॉ राय ने बताया कि 'मानसून का मौसम समाप्त होने के बाद हमने जिन 40 जगह से भूमिगत जल का सैंपल लिया है, दोबारा से इन सभी जगह से जल का नमूना लेकर उनमें फिर से इन्हीं सब मिनरल्स की जांच की जाएगी. उन्होंने कहा कि अगर मानसून में जल स्तर में हुए बदलाव के बाद भी अगर सैंपल में ज्यादा बदलाव नहीं आता है तो तो फिर यह सरकार के लिए चिंता का विषय है. उन्होंने बताया कि अंडरग्राउंड वाटर की क्वालिटी को बेहतर बनाए रखने के लिए जितने भी रिजर्व वायर व वेटलैंड हैं उनको संरक्षित करना बहुत जरूरी हो गया है. अगर इसी तरह बिना प्लानिंग के सभी रिजर्वायर और वेटलैंड को समाप्त किया जाएगा तो अंडरग्राउंड वाटर तो खत्म होगा ही साथ ही इस वाटर रिसोर्स में काफी तेजी से हानिकारक तत्व की मात्रा बढ़ेगी.'

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