लखनऊ : सड़क खस्ताहाल होने के चलते ट्रांसपोर्ट नगर स्थित आरटीओ कार्यालय के फिटनेस ग्राउंड तक पहुंचते-पहुंचते वाहन खुद-ब-खुद अनफिट हो जाते हैं. इसके चलते वह वाहन स्वामी जो वाहनों का फिटनेस प्रमाण पत्र लेने के लिए घर से अपना वाहन फिट करवाकर निकलते हैं, बेवजह परेशान होते हैं.
सड़कों की हालत खस्ता होने के चलते वाहनों के सस्पेंशन से लेकर इनकी लाइट और इंडिकेटर डैमेज हो जाते हैं. यही वजह है कि फिटनेस ग्राउंड पर लगी मशीनों तक जब ये वाहन पहुंचते हैं तो फेल हो जाते हैं. अनफिट घोषित होने के बाद वाहन स्वामी को दोबारा वाहन फिट करवाना पड़ता है. ऐसे में उनके पैसे और समय दोनों की ही बर्बादी होती है.
सड़क की हालत बयान कर रही सरकार की नाकामी
आरटीओ कार्यालय से फिटनेस ग्राउंड जाने वाली सड़क पर गड्ढे की बजाए गड्ढों के बीच सड़क नजर आती है. यही सड़क वाहन स्वामियों के लिए सिरदर्द बनी हुई है. चार पहिया वाहनों के यहां तक पहुंचते-पहुंचते उनकी फिटनेस स्वत: ही अनफिट हो जाती है. सबसे बड़ी समस्या लाइट की होती है जिसका बैलेंस इस खराब सड़क के चलते बिगड़ जाती है. दरअसल, यहां मशीनों से अब वाहनों की जांच होने लगी है. ऐसे में वाहनों में लगी लाइट जरा भी ऊपर-नीचे होती है तो कंप्यूटर अनफिट घोषित कर देता है. इससे वाहन स्वामी काफी परेशान होते हैं.
पांच मिनट के लिए खर्च करने पड़ते हैं ₹500
दोष सड़क का और भुगतान करना पड़ रहा है वाहन स्वामियों को. खस्ताहाल सड़क से वाहनों की लाइट गड़बड़ हो जाती है. पार्किंग में एक निजी कंपनी ने लाइट को दुरुस्त करने के लिए बाकायदा मशीन लगाई हुई है. इसके लिए ₹400 फीस वसूली जाती है. साथ ही पार्किंग के अंदर प्रवेश करते ही वाहन स्वामियों को ₹100 बतौर पार्किंग शुल्क अदा करना पड़ता है. वाहन के प्रवेश से लेकर लाइट दुरुस्त होने तक महज पांच मिनट का समय लगता है और इन्हीं पांच मिनटों के लिए वाहन स्वामी को ₹500 चुकाने पड़ रहे हैं.
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फिटनेस ग्राउंड पर मशीनों से होते हैं इतने टेस्ट
फिटनेस ग्राउंड पर मौजूद कंपनी के प्रतिनिधि बताते हैं कि वाहन के फिटनेस ग्राउंड पर आने पर कई मानकों पर खरा होने के बाद ही फिटनेस सर्टिफिकेट जारी किया जाता है. इसमें सबसे पहले फिटनेस के लिए बुकिंग करनी पड़ती है. इसके बाद टोकन जारी होते हैं. वाहन का सत्यापन आरसी के माध्यम से या एनआईसी के माध्यम से किया जाता है. वाहनों पर किए जाने वाले टेस्ट के प्रकार का डाटा अंकित किया जाता है. इसके बाद ही निरीक्षण के लिए वाहन अंदर आते हैं.
वे बताते हैं कि हल्के वाहन के लिए प्रदूषण टेस्ट, आंतरिक दृश्य निरीक्षण, हॉर्न और ध्वनि टेस्ट, स्पीडोमीटर और स्पीड गवर्नर टेस्ट होता है. इसके बाद दूसरे स्टेशन पर साइड स्लिप टेस्ट, फ्रंट और रियर सस्पेंशन टेस्ट, सर्विस ब्रेक और पार्किंग ब्रेक टेस्ट के बाद वाहन का बाहरी निरीक्षण होता है. इसके बाद इसे स्टेशन तीन पर भेजा जाता है. यहां वाहन के निचले हिस्से का निरीक्षण किया जाता है. जॉइंट प्ले टेस्ट होता है, हेड लाइट टेस्ट होता है और फिर वाहन की बाहरी दृश्य निरीक्षण के बाद रिपोर्ट तैयार की जाती है.
खराब रास्ता जिम्मेदार
फिटनेस ग्राउंड पर कोई ऐसा बोर्ड नहीं लगा है जिस पर लिखा हो कि इस तरह से वाहन फिट घोषित होगा. यहां पर बोर्ड लगना चाहिए. इसके अलावा कई बार जरा-जरा सी कमियों पर वापस लौटा दिया जाता है. इससे परेशानी होती है. रास्ता इतना खराब है कि वाहन का इंडिकेटर या लाइट तक टूट जाती है. इसके बाद टेस्ट फेल कर दिया जाता है. यहां यह बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है.
समय की बर्बादी और पैसे का नुकसान भी
वाहन स्वामी कृष्ण मोहन बाजपेई कहते हैं कि घर से बाहर फिट कराकर लाओ लेकिन फिटनेस ग्राउंड तक सड़क खराब होने के चलते कभी लाइट खराब हो जाती है तो कभी इंडिकेटर टूट जाता है. इसके बाद यहां वाहन फेल कर दिया जाता है. इससे काफी समस्या आ रही है. यहां पर कोई ऐसा बोर्ड भी नहीं लगा है जिससे पता लगे कि वाहन में क्या- क्या होना जरूरी है. समय की बर्बादी भी होती है और पैसे का नुकसान भी.
लाइट का फोकस ठीक करने की वसूलते हैं 400 रुपये फीस
मशीन से वाहनों की अपर डीपर लाइट और फोकस सेट करने वाले कर्मचारी संदीप का कहना है कि शायद यहां की सड़कें खराब हैं जिसकी वजह से वाहन की लाइट खराब हो जाती है. सिस्टम गड़बड़ हो जाते हैं. इसके बाद यहां पर लाइट का फोकस सेट किया जाता है. इसके लिए ₹400 फीस वाहन स्वामी से वसूली जाती है.