लखनऊ. एक तरफ उत्तर प्रदेश की योगी सरकार सरकारी विभागों में वीआईपी कल्चर (VVIP culture in transport department) खत्म कर रही है, वहीं दूसरी तरफ परिवहन विभाग के कार्यालयों में अभी भी वीआइपी कल्चर हावी है. इस विभाग में आम और खास के लिए अलग-अलग नियम हैं. लर्नर ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आम आदमी को टेस्ट के दौर से गुजरना ही पड़ता है, जबकि खास के लिए वीवीआईपी व्यवस्था है. बाकायदा अलग से अभी भी उनके लिए अलग से स्लॉट निर्धारित हैं. आरटीओ कार्यालय में रोजाना पांच वीवीआईपी जाकर अपना लाइसेंस बनवा सकते हैं और उन्हें कोई परीक्षा देने की आवश्यकता ही नहीं होती है. हाल ही में प्रमुख सचिव एल. वेंकटेश्वर लू ने भी लखनऊ आरटीओ कार्यालय (Lucknow RTO Office) में अपना लर्नर लाइसेंस बनवाया और कोई परीक्षा नहीं दी, जबकि ये व्यवस्था लागू करने में उनका ही बड़ा हाथ है.
परिवहन विभाग ने लर्नर लाइसेंस के लिए कुछ माह पहले आवेदकों को घर बैठे परीक्षा देकर लाइसेंस जारी करने की सुविधा दी. हालांकि इसका फायदा आवेदकों को नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि इंटरनेट की कनेक्टिविटी वीक होने और तकनीकी खामियों के चलते वे फेल हो रहे हैं. कई कई बार फेल होने के बाद ज्यादा पैसे खर्च कर जुगाड़ से पास हो पा रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों से ताल्लुक रखने वाले लोग तो ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने का ख्वाब ही छोड़ चुके हैं. आलम यह है कि पहले जहां आरटीओ कार्यालय में प्रतिदिन साढ़े चार सौ लर्नर लाइसेंस जारी होते थे वहीं अब यह आंकड़ा 100 लाइसेंस से नीचे सिमटकर रह गया है. ड्राइविंग लाइसेंस के चक्कर में तमाम आवेदक तो साइबर कैफे में ज्यादा पैसा खर्च कर लूट भी रहे हैं और उनका लाइसेंस जारी होने में भी मुश्किलें आ रही हैं.
अगर बात वीवीआईपी की करें तो लखनऊ आरटीओ कार्यालय में ही पांच स्लॉट निर्धारित हैं. आराम से वीवीआईपी आरटीओ कार्यालय जाते हैं, फोटो क्लिक कराते हैं और पल भर में ही वापस लौट जाते हैं. उनके लिए न कोई टेस्ट का झंझट और न ही किसी अन्य प्रक्रिया से ही गुजरने की जरूरत. कुछ दिन पहले ही परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव व ट्रांसपोर्ट कमिश्नर एल. वेंकटेश्वर लू अपना लर्नर लाइसेंस बनवाने आरटीओ कार्यालय पहुंचे, लेकिन उन्होंने न कोई टेस्ट दिया और न ही किसी अन्य प्रक्रिया को ही पूरा किया. सिर्फ फोटो खिंचाई और लौट आए. अब सवाल यही उठता है कि जब विभाग एक ही है तो आम और खास के लिए अलग-अलग नियम क्यूं? आखिर वीवीआईपी स्लॉट की जरूरत ही क्या है जब घर बैठे ही लाइसेंस जारी हो सकते हैं.
परिवहन विभाग की ऑनलाइन फेसलेस व्यवस्था और वीवीआईपी कल्चर पर सवाल खड़े करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता कर्मवीर आजाद ने न्यायालय में एक याचिका भी दाखिल की है. उनका कहना है कि विभाग में आम और खास के लिए अलग-अलग नियम क्यों? जब लर्नर लाइसेंस की व्यवस्था ऑनलाइन की जा रही थी तो पहले इसके सभी पहलुओं पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया? आम आदमी को परेशान होना पड़ रहा है, जबकि खास आदमी का लाइसेंस आराम से जारी हो जा रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. सरकार को चाहिए कि इस व्यवस्था में परिवर्तन करते हुए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों का विकल्प रखा जाए, जिससे जो कंप्यूटर से वाकिफ नहीं है वह आरटीओ कार्यालय आकर अपना लाइसेंस बनवा सके और जिसे घर बैठे लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया पूरी करनी है वह आराम से घर पर टेस्ट देकर अपना लाइसेंस जारी कर सके. उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि आखिर जो नीति बनाते हैं वही पालन नहीं करते हैं तो आम जनता पर नियम कानून क्यूं थोपते हैं. प्रमुख सचिव ने अपना ही लाइसेंस वीआईपी कोटे में आरटीओ कार्यालय आकर बनवा लिया.
घर बैठे लर्नर लाइसेंस बनवाने के लिए तीन बार टेस्ट देकर फेल हो चुके उमर का कहना है कि परिवहन विभाग को इस तरह की व्यवस्था लागू करने से पहले अपनी व्यवस्थाएं दुरुस्त कर लेनी चाहिए थी. घर बैठे लाइसेंस नहीं बन पा रहा है, जबकि वीवीआईपी आकर बिना कोई टेस्ट दिए ही अपना लाइसेंस बनवा ले रहे हैं. उनके लिए आरटीओ कार्यालय में अलग से स्लॉट भी हैं. आम आदमी की कोई फिक्र नहीं है. मेरी मांग है कि आरटीओ कार्यालय में भी खासकर अशिक्षित लोगों के लिए एक पटल बनाया जाए, जहां वह कार्यालय में आकर अपना लाइसेंस बनवा सके और वीवीआईपी कल्चर पूरी तरह से खत्म होना चाहिए. उनके स्लॉट खत्म होने चाहिए.
प्रमुख सचिव परिवहन व ट्रांसपोर्ट कमिश्नर एल. वेंकटेश्वर लू फेसलेस व्यवस्था को लेकर कुछ भी बोलने से अपना पल्ला ही झाड़ लेते हैं. उनका कहना है मैं काम करता हूं. बाकी परिवहन मंत्री नीति बनाते हैं वही लागू होती है. कुल मिलाकर अपना लर्नर लाइसेंस वीवीआइपी कल्चर के तहत बनाए जाने पर कुछ भी बोलने से इंकार कर रहे.
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