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मानसिक रूप से विकृत लोगों की शिकार होती हैं महिलाएं

उत्तर प्रदेश में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं. पुलिस का कहना है कि दुष्कर्म के मामलों को रोकने के लिए उनके पास कोई तंत्र नहीं है. वहीं साइकोलॉजिस्ट का मानना है कि ज्यादातर ऐसे मामलों को अंजाम देने वाले आरोपी मानसिक रूप से विकृत होते हैं.

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Published : Oct 8, 2020, 2:47 PM IST

महिलाएं कहीं नहीं हैं सुरक्षित.
महिलाएं कहीं नहीं हैं सुरक्षित.

लखनऊ: प्रदेश में बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं. इसके चलते विपक्षीय पार्टी योगी सरकार पर कई सावल खड़े कर रहा है. तमाम प्रयासों के बावजूद भी बच्चियों के साथ होने वाले अपराध पर लगाम लगाने में योगी आदित्यनाथ की सरकार नाकामयाब नजर आ रही है.

महिलाएं कहीं नहीं हैं सुरक्षित.

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, ज्यादातर परिचित ही बच्चियों के साथ दुष्कर्म की वारदात को अंजाम देते हैं. वर्ष 2018 के आंकड़ों की बात करें तो 2018 में उत्तर प्रदेश में 2,023 मामले पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज किए गए थे, जिनमें से 1,794 मामलों में रिश्तेदार और परिचित आरोपी थे. वहीं 229 मामलों के आरोपी अज्ञात थे.

एनसीआरबी के आंकड़ों के तहत साल 2018 में 1,794 में से 84 मामलों में परिवार के सदस्यों ने ही बच्चियों के साथ दुष्कर्म किया. वहीं 1,341 मामलों में पड़ोसियों ने घटना को अंजाम दिया. साथ ही 369 मामलों में दोस्त या ऑनलाइन दोस्ती कर नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म किया.

दुषकर्म के मामले में लखीमपुर खीरी पहले स्थान पर
वर्तमान समय में बच्चियों के साथ हो रहे दुष्कर्म के मामले में लखीमपुर खीरी जिला प्रथम स्थान पर है. यहां 20 दिनों में लखीमपुर जिले में तीन बच्चों के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या किए जाने का मामला सामने आए हैं.

बच्चियों के साथ क्यों हो रही दुर्घटना
आखिर बच्चियों के साथ होने वाले दुष्कर्म पर सरकार क्यों नहीं लगाम लगा पाती है? इस सवाल को लेकर ईटीवी भारत ने कई जानकारों से बातचीत की. प्रदेश सरकार के पूर्व डीजीपी बृजलाल ने बताया कि बच्चियों के साथ दुष्कर्म व हत्या के मामले में पुलिस को सीधे तौर पर कटघरे में खड़ा करना ठीक नहीं है, क्योंकि पुलिस घटना के बाद सिर्फ गुनाहगारों को जेल पहुंचाने के लिए जिम्मेदार हैं. इन अपराधों को रोकने के लिए पुलिस के पास कोई तंत्र मौजूद नहीं है.

उन्होंने बताया कि आए दिन परिवार, रिश्तेदार या दोस्तों द्वारा ही दुष्कर्म किए जाने की घटनाएं सामने आती हैं या फिर कोई आकस्मिक घटना होती है. ऐसे में पुलिस द्वारा इन घटनाओं के बारे में पहले से जानकारी जुटाना लगभग असंभव होता है. अगर महिलाओं के साथ होने वाले दुष्कर्म व अपराधों पर लगाम लगानी है तो एक बेहतर सामाजिक ताना-बाना बनाना होगा.

पूर्व डीजीपी ने बताया कि पुलिस को ऐसी व्यवस्था लागू करनी होगी, जिससे समाज की कनेक्टिविटी पुलिस के साथ बेहतर हो. समाज में रहने वाले लोग आस-पास के संदिग्ध लोगों को चिह्नित कर पुलिस को सूचित करें, ताकि घटना को रोका जा सके. बच्चियों के साथ होने वाले दुष्कर्म की घटनाओं का एक दूसरा पहलू है. कई बार मानसिक रूप से बीमार या पैराफीलिया (अति सेक्स डिजायर) बीमारी से ग्रसित लोग ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं.

क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक

नेहा आनंद काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट ने बताया कि सामान्यतया दुष्कर्म की घटना को अंजाम देने वाले लोग समाज के साथ तालमेल बिठाकर नहीं चल पाते हैं. ज्यादातर मामलों में आरोपी मानसिक रूप से विकृत होता है, लेकिन सभी मामलों में आरोपी विकृत हो यह आवश्यक नहीं है. पैराफीलिया जैसी बीमारी से ग्रसित लोग ऐसी घटनाओं को अधिक अंजाम देते हैं. यह भी कह सकते हैं कि जिन लोगों का बचपन गलत संगति या गलत माहौल में बीता है, वे भी ऐसी घटनाओं को करने में आगे रहते हैं.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि अधिकतर मामलों में दुष्कर्म की घटना को परिवार रिश्तेदार या आस पड़ोस के लोग ही अंजाम देते होते हैं. ऐसे में आरोपी को इस बात का डर होता है कि बच्चे उनके कृत को समाज में उजागर न कर दें. लिहाजा, इसी डर से ज्यादातर मामलों में दुष्कर्म के बाद बच्चियों की हत्या कर दी जाती है.

लैंगिक अपराध पर लगाम लगाने के लिए मौजूद हैं कठोर नियम कानून
नाबालिग बालिका को वेश्यावृत्ति के लिए बेचना व भाड़े पर देने के अपराध के लिए धारा 372 का प्रावधान है, जिसमें 10 वर्षों की सजा व जुर्माने का प्रावधान है. बच्चों के साथ दुष्कर्म के मामलों पर लगाम लगाने के लिए पॉक्सो एक्ट 2012 (प्रोटक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट 2012) के अंतर्गत उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है. दुष्कर्म के साथ हत्या के मामले में फांसी तक की सजा का प्रावधान है.

बच्चियों के साथ दुष्कर्म जैसे अपराधों पर कैसे लग सकती है लगाम
पूर्व डीजीपी बृजलाल ने बताया कि उन्होंने लॉ एन्ड ऑर्डर कार्यकाल के दौरान ऐसी एक व्यवस्था लागू की थी. व्यवस्था के तहत जिला स्तर सहित स्थानीय स्तर पर जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ मिलकर व क्षेत्र के प्रतिष्ठित लोगों के साथ एक कमेटी तैयार की गई, जो बच्चियों के साथ छेड़छाड़ करने वाले व दूषित मानसिकता वाले लोगों को चिह्नित करते थे. ऐसे लोगों के परिजनों को थाने बुलाकर समझाया जाता था. ऐसा करने से काफी हद तक बच्चियों के साथ दुष्कर्म जैसी घटनाओं में लगाम लगाई गई थी. वर्तमान समय में भी ऐसे ही कुछ व्यवस्था करने की आवश्यकता है.

अपराध पर लगाम के लिए योगी सरकार ने किए कई प्रयास
भले ही प्रदेश में बच्चियों के प्रति होने वाले अपराधों में कोई खास गिरावट दर्ज न की गई हो, लेकिन योगी सरकार अपराध के प्रति गंभीर नजर आ रही है. बीते 3 वर्षों में प्रदेश सरकार ने कई बड़े फैसले दिए हैं. इन फैसलों के तहत बाल अपराधों को रोकने के प्रयास किए गए. बाल अपराध की रोकथाम के लिए जिला स्तर पर आला अधिकारियों को निर्देशित किया गया है. साथ ही इन आरोपियों को समय से सजा मिल सके, इसके लिए पॉस्को फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन के लिए भी योगी सरकार ने प्रयास किए.

2018 में फास्ट ट्रैक कोर्ट को दी अनुमति
वर्ष 2019 के दिसंबर माह में योगी सरकार ने बाल अपराध पर लगाम लगाने के उद्देश्य से प्रदेश में 74 पॉस्को फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन के लिए अनुमति दी थी. बच्चों के साथ होने वाले दुष्कर्म पर लगाम लगाने के लिए योगी सरकार का यह बड़ा फैसला था. कयास लगाए जा रहे थे कि पॉस्को एक्ट के तहत बाल अपराध के आरोपियों को समय रहते सजा मिलेगी तो बच्चों के प्रति अपराध कम होंगे, लेकिन सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी अपराधों में कोई खास कमी देखने को नहीं मिली.

योगी आदित्यनाथ की सरकार ने वर्ष 2019 में 74 पॉस्को को 144 दुष्कर्म फास्ट ट्रैक कोर्ट सहित 218 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की अनुमति दी थी. इसके बाद कुछ जिले में फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया गया है, लेकिन ज्यादातर जिलों में अभी तक पॉस्को फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन नहीं किया जा सका है.

विपक्ष ने सरकार को घेरा
उत्तर प्रदेश में जिस तरह से बच्चियों के साथ दुष्कर्म व हत्या की घटनाएं सामने आ रही हैं, इसको लेकर विपक्ष भी लगातार योगी सरकार पर निशाना साध रहा है. समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता जूही सिंह ने बताया कि बच्चियों के प्रति होने वाले अपराध पर लगाम लगाने में प्रदेश सरकार पूरी तरह से फेल हो चुकी है. महिलाओं की सुरक्षा के लिए डायल 100, वूमेन पावर लाइन 1090 की शुरुआत की गई थी, लेकिन यह व्यवस्था भी योगी सरकार में चौपट हो गई है.

एडीजी महिला एवं बाल सुरक्षा के नवीन पद के गठन को दी गई मंजूरी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महिला अपराधों पर लगाम लगाने के लिए 'महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन' व 'अपर पुलिस महानिदेशक महिला एवं बाल सुरक्षा' के पद के गठन को स्वीकृति दी है. इसके बाद अब महिला अपराध पर लगाम के लिए महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन काम करेगा. वर्तमान में पुलिस विभाग में कार्यरत महिला उत्पीड़न संबंधित सभी इकाइयां जैसे महिला सम्मन प्रकोष्ठ, महिला सहायता प्रकोष्ठ, वूमेन पावर लाइन 1090 'महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन' के अंतर्गत काम करेंगे.

महिला व बल अपराधों पर त्वरित कार्रवाई के लिए अपर पुलिस महानिदेशक महिला एवं बाल विकास सुरक्षा नवीन पद बनाया जाएगा. यह पद जिलों में होने वाले महिला व बाल अपराधों पर निगरानी रखेगा. साथ ही एक व्यवस्था बनाई जाएगी, जिससे महिलाओं व बच्चों के प्रति होने वाले अपराधों पर लगाम लगाई जा सके.

सभी प्रकोष्ठ की मॉनिटरिंग करेगा महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन
प्रदेश में महिला व बच्चों के लिए काम करने वाले सभी संगठन व इकाइयां 'महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन' के अंतर्गत काम करेंगे. महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन मॉनिटरिंग बॉडी होगी, जो विभिन्न इकाइयों व प्रकोष्ठों के कार्यों की समीक्षा करेगी. उत्तर प्रदेश की सभी प्रकोष्ठ इकाई महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन को रिपोर्ट करेंगे.

लखनऊ: प्रदेश में बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं. इसके चलते विपक्षीय पार्टी योगी सरकार पर कई सावल खड़े कर रहा है. तमाम प्रयासों के बावजूद भी बच्चियों के साथ होने वाले अपराध पर लगाम लगाने में योगी आदित्यनाथ की सरकार नाकामयाब नजर आ रही है.

महिलाएं कहीं नहीं हैं सुरक्षित.

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, ज्यादातर परिचित ही बच्चियों के साथ दुष्कर्म की वारदात को अंजाम देते हैं. वर्ष 2018 के आंकड़ों की बात करें तो 2018 में उत्तर प्रदेश में 2,023 मामले पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज किए गए थे, जिनमें से 1,794 मामलों में रिश्तेदार और परिचित आरोपी थे. वहीं 229 मामलों के आरोपी अज्ञात थे.

एनसीआरबी के आंकड़ों के तहत साल 2018 में 1,794 में से 84 मामलों में परिवार के सदस्यों ने ही बच्चियों के साथ दुष्कर्म किया. वहीं 1,341 मामलों में पड़ोसियों ने घटना को अंजाम दिया. साथ ही 369 मामलों में दोस्त या ऑनलाइन दोस्ती कर नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म किया.

दुषकर्म के मामले में लखीमपुर खीरी पहले स्थान पर
वर्तमान समय में बच्चियों के साथ हो रहे दुष्कर्म के मामले में लखीमपुर खीरी जिला प्रथम स्थान पर है. यहां 20 दिनों में लखीमपुर जिले में तीन बच्चों के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या किए जाने का मामला सामने आए हैं.

बच्चियों के साथ क्यों हो रही दुर्घटना
आखिर बच्चियों के साथ होने वाले दुष्कर्म पर सरकार क्यों नहीं लगाम लगा पाती है? इस सवाल को लेकर ईटीवी भारत ने कई जानकारों से बातचीत की. प्रदेश सरकार के पूर्व डीजीपी बृजलाल ने बताया कि बच्चियों के साथ दुष्कर्म व हत्या के मामले में पुलिस को सीधे तौर पर कटघरे में खड़ा करना ठीक नहीं है, क्योंकि पुलिस घटना के बाद सिर्फ गुनाहगारों को जेल पहुंचाने के लिए जिम्मेदार हैं. इन अपराधों को रोकने के लिए पुलिस के पास कोई तंत्र मौजूद नहीं है.

उन्होंने बताया कि आए दिन परिवार, रिश्तेदार या दोस्तों द्वारा ही दुष्कर्म किए जाने की घटनाएं सामने आती हैं या फिर कोई आकस्मिक घटना होती है. ऐसे में पुलिस द्वारा इन घटनाओं के बारे में पहले से जानकारी जुटाना लगभग असंभव होता है. अगर महिलाओं के साथ होने वाले दुष्कर्म व अपराधों पर लगाम लगानी है तो एक बेहतर सामाजिक ताना-बाना बनाना होगा.

पूर्व डीजीपी ने बताया कि पुलिस को ऐसी व्यवस्था लागू करनी होगी, जिससे समाज की कनेक्टिविटी पुलिस के साथ बेहतर हो. समाज में रहने वाले लोग आस-पास के संदिग्ध लोगों को चिह्नित कर पुलिस को सूचित करें, ताकि घटना को रोका जा सके. बच्चियों के साथ होने वाले दुष्कर्म की घटनाओं का एक दूसरा पहलू है. कई बार मानसिक रूप से बीमार या पैराफीलिया (अति सेक्स डिजायर) बीमारी से ग्रसित लोग ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं.

क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक

नेहा आनंद काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट ने बताया कि सामान्यतया दुष्कर्म की घटना को अंजाम देने वाले लोग समाज के साथ तालमेल बिठाकर नहीं चल पाते हैं. ज्यादातर मामलों में आरोपी मानसिक रूप से विकृत होता है, लेकिन सभी मामलों में आरोपी विकृत हो यह आवश्यक नहीं है. पैराफीलिया जैसी बीमारी से ग्रसित लोग ऐसी घटनाओं को अधिक अंजाम देते हैं. यह भी कह सकते हैं कि जिन लोगों का बचपन गलत संगति या गलत माहौल में बीता है, वे भी ऐसी घटनाओं को करने में आगे रहते हैं.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि अधिकतर मामलों में दुष्कर्म की घटना को परिवार रिश्तेदार या आस पड़ोस के लोग ही अंजाम देते होते हैं. ऐसे में आरोपी को इस बात का डर होता है कि बच्चे उनके कृत को समाज में उजागर न कर दें. लिहाजा, इसी डर से ज्यादातर मामलों में दुष्कर्म के बाद बच्चियों की हत्या कर दी जाती है.

लैंगिक अपराध पर लगाम लगाने के लिए मौजूद हैं कठोर नियम कानून
नाबालिग बालिका को वेश्यावृत्ति के लिए बेचना व भाड़े पर देने के अपराध के लिए धारा 372 का प्रावधान है, जिसमें 10 वर्षों की सजा व जुर्माने का प्रावधान है. बच्चों के साथ दुष्कर्म के मामलों पर लगाम लगाने के लिए पॉक्सो एक्ट 2012 (प्रोटक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट 2012) के अंतर्गत उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है. दुष्कर्म के साथ हत्या के मामले में फांसी तक की सजा का प्रावधान है.

बच्चियों के साथ दुष्कर्म जैसे अपराधों पर कैसे लग सकती है लगाम
पूर्व डीजीपी बृजलाल ने बताया कि उन्होंने लॉ एन्ड ऑर्डर कार्यकाल के दौरान ऐसी एक व्यवस्था लागू की थी. व्यवस्था के तहत जिला स्तर सहित स्थानीय स्तर पर जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ मिलकर व क्षेत्र के प्रतिष्ठित लोगों के साथ एक कमेटी तैयार की गई, जो बच्चियों के साथ छेड़छाड़ करने वाले व दूषित मानसिकता वाले लोगों को चिह्नित करते थे. ऐसे लोगों के परिजनों को थाने बुलाकर समझाया जाता था. ऐसा करने से काफी हद तक बच्चियों के साथ दुष्कर्म जैसी घटनाओं में लगाम लगाई गई थी. वर्तमान समय में भी ऐसे ही कुछ व्यवस्था करने की आवश्यकता है.

अपराध पर लगाम के लिए योगी सरकार ने किए कई प्रयास
भले ही प्रदेश में बच्चियों के प्रति होने वाले अपराधों में कोई खास गिरावट दर्ज न की गई हो, लेकिन योगी सरकार अपराध के प्रति गंभीर नजर आ रही है. बीते 3 वर्षों में प्रदेश सरकार ने कई बड़े फैसले दिए हैं. इन फैसलों के तहत बाल अपराधों को रोकने के प्रयास किए गए. बाल अपराध की रोकथाम के लिए जिला स्तर पर आला अधिकारियों को निर्देशित किया गया है. साथ ही इन आरोपियों को समय से सजा मिल सके, इसके लिए पॉस्को फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन के लिए भी योगी सरकार ने प्रयास किए.

2018 में फास्ट ट्रैक कोर्ट को दी अनुमति
वर्ष 2019 के दिसंबर माह में योगी सरकार ने बाल अपराध पर लगाम लगाने के उद्देश्य से प्रदेश में 74 पॉस्को फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन के लिए अनुमति दी थी. बच्चों के साथ होने वाले दुष्कर्म पर लगाम लगाने के लिए योगी सरकार का यह बड़ा फैसला था. कयास लगाए जा रहे थे कि पॉस्को एक्ट के तहत बाल अपराध के आरोपियों को समय रहते सजा मिलेगी तो बच्चों के प्रति अपराध कम होंगे, लेकिन सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी अपराधों में कोई खास कमी देखने को नहीं मिली.

योगी आदित्यनाथ की सरकार ने वर्ष 2019 में 74 पॉस्को को 144 दुष्कर्म फास्ट ट्रैक कोर्ट सहित 218 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की अनुमति दी थी. इसके बाद कुछ जिले में फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया गया है, लेकिन ज्यादातर जिलों में अभी तक पॉस्को फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन नहीं किया जा सका है.

विपक्ष ने सरकार को घेरा
उत्तर प्रदेश में जिस तरह से बच्चियों के साथ दुष्कर्म व हत्या की घटनाएं सामने आ रही हैं, इसको लेकर विपक्ष भी लगातार योगी सरकार पर निशाना साध रहा है. समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता जूही सिंह ने बताया कि बच्चियों के प्रति होने वाले अपराध पर लगाम लगाने में प्रदेश सरकार पूरी तरह से फेल हो चुकी है. महिलाओं की सुरक्षा के लिए डायल 100, वूमेन पावर लाइन 1090 की शुरुआत की गई थी, लेकिन यह व्यवस्था भी योगी सरकार में चौपट हो गई है.

एडीजी महिला एवं बाल सुरक्षा के नवीन पद के गठन को दी गई मंजूरी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महिला अपराधों पर लगाम लगाने के लिए 'महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन' व 'अपर पुलिस महानिदेशक महिला एवं बाल सुरक्षा' के पद के गठन को स्वीकृति दी है. इसके बाद अब महिला अपराध पर लगाम के लिए महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन काम करेगा. वर्तमान में पुलिस विभाग में कार्यरत महिला उत्पीड़न संबंधित सभी इकाइयां जैसे महिला सम्मन प्रकोष्ठ, महिला सहायता प्रकोष्ठ, वूमेन पावर लाइन 1090 'महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन' के अंतर्गत काम करेंगे.

महिला व बल अपराधों पर त्वरित कार्रवाई के लिए अपर पुलिस महानिदेशक महिला एवं बाल विकास सुरक्षा नवीन पद बनाया जाएगा. यह पद जिलों में होने वाले महिला व बाल अपराधों पर निगरानी रखेगा. साथ ही एक व्यवस्था बनाई जाएगी, जिससे महिलाओं व बच्चों के प्रति होने वाले अपराधों पर लगाम लगाई जा सके.

सभी प्रकोष्ठ की मॉनिटरिंग करेगा महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन
प्रदेश में महिला व बच्चों के लिए काम करने वाले सभी संगठन व इकाइयां 'महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन' के अंतर्गत काम करेंगे. महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन मॉनिटरिंग बॉडी होगी, जो विभिन्न इकाइयों व प्रकोष्ठों के कार्यों की समीक्षा करेगी. उत्तर प्रदेश की सभी प्रकोष्ठ इकाई महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन को रिपोर्ट करेंगे.

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