लखनऊ: यूपी में सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों की पढ़ाई एनजीओ के जिम्मे की जा रही है. इसके बाद शिक्षकों में रोष देखा जा रहा है. दरअसल, साल 2019 में उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से प्रथम एनजीओ को प्रयागराज के कुछ स्कूलों में कक्षा 2, 4 और 5 के बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई. उन्हें प्रमुख रूप से भाषा और गणित का ज्ञान देने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
फिलहाल, जिन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी गई है उनमें अरविंदो सोसाइटी, संपर्क फाउंडेशन जैसी NGO के नाम प्रमुख हैं. अरविंदो सोसाइटी को शिक्षकों को नवाचार का प्रशिक्षण देने की जिम्मेदारी दी गई है. शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे बदलावों से शिक्षकों को रूबरू कराने और पढ़ने पढ़ाने का तरीका बदलने के बारे में प्रशिक्षण देने का काम दिया गया. जबकि, यह जिम्मेदारी जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान की है. वहीं, संपर्क फाउंडेशन नाम की संस्था को अंग्रेजी से संबंधित प्रशिक्षण देने का जिम्मा दिया गया, वहीं हाल में ही, खान एकेडमी को कस्तूरबा गांधी विद्यालय में बालिकाओं को गणित का पाठ पढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई है.
यह तो चंद उदाहरण हैं. बीते कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश मैं बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से संचालित सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में स्वयंसेवी संस्थाओं का हस्तक्षेप काफी बढ़ा है. उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग का कहना है कि इन संस्थाओं को जोड़ने से पढ़ने-पढ़ाने की गुणवत्ता में काफी सुधार आएगा. हालांकि, शिक्षकों में इसको लेकर काफी नाराजगी है. शिक्षकों का कहना है कि बच्चों को पढ़ाने से लेकर उनके प्रशिक्षण तक की जिम्मेदारी स्वयं सेवी संस्थाओं को सौंपी जा रही है, जो कि गलत है. इस तरह से विभाग अपने शिक्षकों की कार्यप्रणाली पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से करीब 1.35 लाख सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूल चलाए जा रहे हैं. इन स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक-शिक्षिकाओं की संख्या 5 लाख से ज्यादा है. शिक्षा विभाग औसतन 40 से 50 हजार रुपए प्रति माह उन शिक्षकों को वेतन देता. नाम न छापने की शर्त पर एक शिक्षक नेता ने बताया कि प्रदेश के दूरदराज के जिलों में इन स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर तरफ से 12वीं पास लड़कों को शिक्षकों के प्रशिक्षण देने के लिए लगाया गया. क्योंकि, उच्च अधिकारियों का आदेश होता है. इसलिए चुपचाप मानना जरूरी है.
माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश मंत्री डॉक्टर आरपी मिश्रा का कहना है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक को चयन के लिए एक कठिन प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. कई चरणों में अपनी योग्यता साबित करने के बाद वह इस पद पर पहुंचता है. जबकि स्वयंसेवी संस्थाओं में 12वीं और स्नातक पास करने वाले युवकों को इन शिक्षकों को प्रशिक्षण देने का जिम्मा सौंपा जाता है, जो कि सीधे तौर पर इनकी योग्यता पर सवाल खड़े कर रहे हैं. डॉ. आर पी मिश्रा ने कहा कि प्रदेश के सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों की स्थितियां अलग हैं. कहीं बैठने के लिए जगह नहीं है, तो कहीं आज तक बच्चों ने फर्नीचर का मुंह तक नहीं देखा. इन हालातों में स्थितियों को बेहतर बनाने के बजाय जिम्मेदार स्वयंसेवी संस्थाओं को यहां लगाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं.