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यूपी रोडवेज के चालक-परिचालकों का दर्द छलका, मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मांगा न्याय

यूपी रोडवेज इम्प्लाइज यूनियन (UP Roadways Employees Union) ने परिचालकों की परेशानियों को लेकर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है. इस पत्र में उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के ड्राइवरों और कंडक्टरों ने अपनी परेशानियां बतायी हैं.

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Published : May 10, 2023, 8:24 AM IST

लखनऊ: गोरखपुर से लखनऊ आ रही उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (Uttar Pradesh State Road Transport Corporation) की हैदरगढ़ डिपो की बस दो दिन पहले पेड़ से जा टकराई थी. बताया गया कि ड्राइवर को हल्की झपकी आने से ऐसा हुआ था. इस हादसे में बस के परखच्चे उड़ गए थे. गनीमत यह रही कि बस में सवार 15 यात्रियों में से मात्र चार को ही मामूली चोट आईं. इस घटना में परिवहन निगम के अधिकारी ड्राइवर को दोषी ठहरा रहे हैं. इससे नाराज ड्राइवरों और कंडक्टरों ने मुख्यमंत्री, परिवहन मंत्री और परिवहन निगम के अधिकारियों को पत्र लिखकर अपनी व्यथा जाहिर की है.


यूपी रोडवेज के ड्राइवरों और कंडक्टरों की परेशानी को लेकर चालक-परिचालकों का कहना है कि साफ निर्देश है कि बस चलाते समय अगर नींद आ रही है, तो बस को तत्काल खड़ी करें और निकट ढाबे पर चाय पियें. थोड़ी देर के आराम के बाद वहां से रवाना हों. लेकिन, कई रूटों पर अनुबंधित ढाबे नहीं होने के कारण सामान्य जगह रुकने पर दो हजार रुपए का चालान काट दिया जाता है. ऐसे में कंडक्टर और ड्राइवर क्या करें? सुरक्षित बस का सफर करायें या अपने वेतन की कटौती कराएं.


यूपी रोडवेज इम्प्लाइज यूनियन (UP Roadways Employees Union) के शाखाध्यक्ष प्रदीप कुमार पांडेय ने पत्र लिखकर न्याय की मांग की है. उन्होंने बताया कि लखनऊ से गोरखपुर मार्ग की दूरी 308 किलोमीटर अप-डाउन में यह 616 किलोमीटर हो जाता है. लखनऊ से 90 किमी दूर भिटरिया में अनुबन्धित ढाबा है, उसके बाद करीब 220 किमी की गोरखपुर तक की दूरी में कोई अनुबंधित ढाबा नहीं है.

ऐसे में इस 220 किमी की दूरी में चालक कहां पर बस रोके? प्राइवेट ढाबे पर बस रोकने पर सम्बन्धित रूट के टीआई और टीएस 2000 रुपये का जुर्माना लगा देते हैं. इसमें से ड्राइवर और कंडक्टर को एक-एक हजार रुपए देने पड़ते हैं. उनका कहना है कि जिस बस का हादसा हुआ है, उसका चालक पेनाल्टी ना कटे, इसीलिए लगातार बस चलाता रहा. शाखा अध्यक्ष प्रदीप कुमार पांडेय का कहना है कि ऐसा ही हाल कई रूटों पर है, जिस पर अधिकारियों को विचार करने की आवश्यकता है.


उन्होंने कहा है कि या तो अनुबंधित ढाबे की अनिवार्यता समाप्त कर दी जाए या फिर हर 30 से 40 किलोमीटर की दूरी पर ढाबों से अनुबंध किया जाए. उनका मानना है कि इस प्रयास से तकरीबन 60-70 प्रतिशत तक दुर्घटनाओं पर कंट्रोल किया जा सकता है. मुख्यमंत्री, परिवहन मंत्री को भेजे गए पत्र में उन्होंने उम्मीद जाहिर की है कि चालक परिचालकों के दर्द को मुख्यमंत्री और परिवहन मंत्री जरूर समझेंगे और न्याय करेंगे.

ये भी पढ़ें- कानपुर ग्रीनपार्क स्टेडियम में लिफ्ट का शुभारंभ करेंगे सुनील गावस्कर

लखनऊ: गोरखपुर से लखनऊ आ रही उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (Uttar Pradesh State Road Transport Corporation) की हैदरगढ़ डिपो की बस दो दिन पहले पेड़ से जा टकराई थी. बताया गया कि ड्राइवर को हल्की झपकी आने से ऐसा हुआ था. इस हादसे में बस के परखच्चे उड़ गए थे. गनीमत यह रही कि बस में सवार 15 यात्रियों में से मात्र चार को ही मामूली चोट आईं. इस घटना में परिवहन निगम के अधिकारी ड्राइवर को दोषी ठहरा रहे हैं. इससे नाराज ड्राइवरों और कंडक्टरों ने मुख्यमंत्री, परिवहन मंत्री और परिवहन निगम के अधिकारियों को पत्र लिखकर अपनी व्यथा जाहिर की है.


यूपी रोडवेज के ड्राइवरों और कंडक्टरों की परेशानी को लेकर चालक-परिचालकों का कहना है कि साफ निर्देश है कि बस चलाते समय अगर नींद आ रही है, तो बस को तत्काल खड़ी करें और निकट ढाबे पर चाय पियें. थोड़ी देर के आराम के बाद वहां से रवाना हों. लेकिन, कई रूटों पर अनुबंधित ढाबे नहीं होने के कारण सामान्य जगह रुकने पर दो हजार रुपए का चालान काट दिया जाता है. ऐसे में कंडक्टर और ड्राइवर क्या करें? सुरक्षित बस का सफर करायें या अपने वेतन की कटौती कराएं.


यूपी रोडवेज इम्प्लाइज यूनियन (UP Roadways Employees Union) के शाखाध्यक्ष प्रदीप कुमार पांडेय ने पत्र लिखकर न्याय की मांग की है. उन्होंने बताया कि लखनऊ से गोरखपुर मार्ग की दूरी 308 किलोमीटर अप-डाउन में यह 616 किलोमीटर हो जाता है. लखनऊ से 90 किमी दूर भिटरिया में अनुबन्धित ढाबा है, उसके बाद करीब 220 किमी की गोरखपुर तक की दूरी में कोई अनुबंधित ढाबा नहीं है.

ऐसे में इस 220 किमी की दूरी में चालक कहां पर बस रोके? प्राइवेट ढाबे पर बस रोकने पर सम्बन्धित रूट के टीआई और टीएस 2000 रुपये का जुर्माना लगा देते हैं. इसमें से ड्राइवर और कंडक्टर को एक-एक हजार रुपए देने पड़ते हैं. उनका कहना है कि जिस बस का हादसा हुआ है, उसका चालक पेनाल्टी ना कटे, इसीलिए लगातार बस चलाता रहा. शाखा अध्यक्ष प्रदीप कुमार पांडेय का कहना है कि ऐसा ही हाल कई रूटों पर है, जिस पर अधिकारियों को विचार करने की आवश्यकता है.


उन्होंने कहा है कि या तो अनुबंधित ढाबे की अनिवार्यता समाप्त कर दी जाए या फिर हर 30 से 40 किलोमीटर की दूरी पर ढाबों से अनुबंध किया जाए. उनका मानना है कि इस प्रयास से तकरीबन 60-70 प्रतिशत तक दुर्घटनाओं पर कंट्रोल किया जा सकता है. मुख्यमंत्री, परिवहन मंत्री को भेजे गए पत्र में उन्होंने उम्मीद जाहिर की है कि चालक परिचालकों के दर्द को मुख्यमंत्री और परिवहन मंत्री जरूर समझेंगे और न्याय करेंगे.

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