लखनऊ : उत्तर प्रदेश पाॅवर कॉरपोरेशन एक बार फिर बैकफुट पर आने को मजबूर हो गया है. प्रदेश के कई जिलों में ग्रामीण विद्युत उपभोक्ताओं को कुछ घंटे ज्यादा बिजली आपूर्ति के नाम पर उनके ग्रामीण फीडर को शहरी फीडर करके बिजली दरों को शहरी दर के आधार पर कर दिया था. इस मामले में उपभोक्ता परिषद की अवमानना याचिका पर विद्युत नियामक आयोग ने प्रबंध निदेशक पावर कॉरपोरेशन से 10 दिन में रिपोर्ट मांगी थी. उसके बाद पाॅवर काॅरपोरेशन के निदेशक वाणिज्य ने विद्युत नियामक आयोग से जवाब देने के लिए चार सप्ताह का अतिरिक्त समय मांगा था.
इस मामले में निदेशक वाणिज्य की तरफ से सभी बिजली कंपनियों के लिए यह निर्देश जारी कर दिए गए थे कि जिन ग्रामीण फीडरों में पूर्व में ग्रामीण शेड्यूल के अनुसार विद्युत आपूर्ति की जा रही थी, लेकिन विद्युत आपूर्ति बढ़ाने या अन्य किसी कारण से शहरी आपूर्ति में बिलिंग शुरू हो गई है, ऐसे सभी फीडरों को शहरी फीडर घोषित कर दिया जाए. अब पाॅवर काॅरपोरेशन के उच्चधिकारियों के निर्देशों के क्रम में प्रदेश की बिजली कंपनियों ने ग्रामीण फीडर पर अधिक बिजली दिए जाने के नाम पर उसे शहरी फीडर घोषित किए जाने के अपने आदेश को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया है. बहरहाल मध्यांचल विद्युत वितरण निगम ने दूसरा संशोधित आदेश जारी कर दिया है. अन्य बिजली कंपनियों ने भी अपने आदेश को स्थगित करना शुरू कर दिया है. अब जो बिजली कंपनियां उपभोक्ता परिषद की अवमानना याचिका की कार्रवाई से बचने के लिए शहरी फीडर घोषित करने की जुगत में लगी थी उन्हें बड़ा धक्का पहुंचा है.
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने बताया कि चाहे वह प्रदेश का विद्युत उपभोक्ता हो या फिर प्रदेश की बिजली कंपनियां, सभी को कानून के दायरे में रहकर अपने दायित्व का निर्वहन करना है. कोई भी कानून के दायरे से बाहर प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं पर कोई भी बोझ नहीं डाल सकता. जहां तक सवाल है ऐसे क्षेत्र जहां पर क्षेत्रीय अभियंताओं ने मनमानी करके शहरी बिलिंग की वसूली की है आने वाले समय में ऐसे सभी क्षेत्रों में उपभोक्ताओं के साथ निश्चित तौर पर न्याय होगा. इस बाबत पाॅवर कॉरपोरेशन रिपोर्ट मंगा रहा है. जैसे ही विद्युत नियामक आयोग को रिपोर्ट सौंपेगा अगले चरण में विद्युत उपभोक्ताओं से अधिक वसूली की धनराशि के समायोजन की मांग की जाएगी.
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